लखनऊ। "हमारे गांव में पानी का लेवल साल दर साल कम हो रहा है। 10 से 15 साल पहले 30 से 40 फीट पर हैंडपंप लगते थे और उनसे साफ पानी आता था, लेकिन अब साफ पानी के ल‍िए 100 से 150 फीट की बोरिंग करनी पड़ रही है," लखनऊ जिले के तारा का पुरवां गांव के रहने वाले 32 वर्षीय मनीष श्रीवास्‍तव कहते हैं।

मनीष का गांव लखनऊ के इंडस्ट्रियल एरिया से जुड़ा हुआ है। इसलिए गांव के लोगों को लगता है कि कंपनियों की वजह से भूजल तेजी से नीचे जा रहा है, साथ ही पानी खराब भी हो रहा है। हालांकि भूजल का स्‍तर कम होने की समस्‍या केवल इस गांव की नहीं बल्‍कि पूरे लखनऊ में देखी जा रही है।

इस समस्‍या के मद्देनजर 4 जून को द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्‍टीट्यूट (टेरी) का एक अध्‍ययन जारी किया गया। इसके मुताबिक, लखनऊ शहर में गोमती नदी और बारिश से ज‍ितना भूजल रिचार्ज होता है, उससे 17 गुना ज्‍यादा भूजल का दोहन हो रहा है। अगर इसी तरह पानी का दोहन होता रहा तो साल 2031 तक (10 साल में) लखनऊ शहर के बीच के इलाकों में भूजल का स्‍तर 20 से 25 मीटर नीचे चला जाएगा।

यह मैप लखनऊ का है ज‍िसे टेरी के अध्‍ययन में शामिल किया गया है। इसमें 2031 में भूजल के स्‍तर में गिरावट के बारे में दर्शाया गया है।
मैप: टेरी स्टडी

टेरी ने यह अध्‍ययन दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के साथ मिलकर किया है। इसे उत्‍तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग ने विश्‍व बैंक की सहायता से कराया है। अध्‍ययन में लखनऊ शहर के भूजल का ऑडिट किया गया। ऑड‍िट में भूजल की उपलब्‍धता, मांग, दोहन और उपयोग का आंकलन हुआ है।

अध्‍ययन में बताया गया कि लखनऊ में करीब 72% परिवारों में भूजल का इस्‍तेमाल होता है। वहीं, होटल, अस्‍पताल, स्‍कूल, ऑफिस, मॉल्‍स जैसे 70% व्‍यावसाय‍िक उपभोक्‍ताओं की निर्भरता भी भूजल पर है। इन व्‍यवसासिक उपभोक्‍ताओं में से करीब 25% ने बताया कि बोरवेल के पहली बार खुदने से लेकर 'टेरी' के सर्वेक्षण तक वॉटरटेबल नीचे जाने की वजह से बोरवेल की गहराई 100 फीट तक बढ़ा चुके हैं।

लखनऊ के रहने वाले मो. सलमान रइनी (45) समाजसेवी हैं। वो बताते हैं, "फिरंगी महल दरवाजे के पास एक बहुत पुराना हैंडपंप था। उसका पानी इतना साफ था कि दूर-दूर से लोग उसका पानी पीने आते थे। आस-पास की दुकानों की निर्भरता भी उसी हैंडपंप पर थी, लेकिन यह हैंडपंप वॉटरटेबल नीचे जाने से खराब हो गया। लोगों ने कई बार इसे बनावाया, लेकिन यह चल न सका।"

फिरंगी महल के पास ही मो. अहमद (28) चिकन के कपड़े का कारोबार करते हैं। अहमद बताते हैं, "हैंडपंप खराब होने के बाद एक टंकी लगी है, लेकिन उसका पानी उतना अच्‍छा नहीं ज‍ितना हैंडपंप से आता था। पानी का लेवल तो कम हो ही रहा है। हमने हैंडपंप एक बार रिबोर भी कराया, लेकिन पानी तेजी से नीचे जा रहा, ऐसे में यह फिर खराब हो गया। अभी 100 से 120 फीट पर अच्‍छा पानी मिल रहा है, कुछ साल पहले तक 50-60 फीट पर साफ पानी मिल जाता था।"

लखनऊ में पानी की समस्‍या को लेकर टेरी के अध्‍ययन में कई सुझाव भी द‍िए गए हैं। जैसे - रेनवॉटर हार्वेस्टिंग, भूजल के उपयोग को सिमित करना, वेस्टवॉटर को रिसाइकल करना आद‍ि।

अध्‍ययन में बताया गया है कि रेनवॉटर हॉर्वेस्टिंग से हर साल 1,500 एमएल (मिल‍ियन लीटर) पानी हर साल जुटाया जा सकता है। इसके लिए लगभग 40 मिलियन वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाली जमीन और लगभग 41 करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। इसी तरह वॉटर सेविंग फिक्सर्स का इस्तेमाल करके भूजल के इस्‍तेमाल को एक तिहाई तक कम किया जा सकता है। इसके लिए 2 लाख परिवारों में कम से कम 3 वॉटर फिक्सर्स प्रति परिवार लगाने होंगे। इन वॉटर फिक्सर्स को लगाने के लिए 30 करोड़ रुपए की जरूरत होगी।

टेरी के सीनियर फेलो और अध्ययन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले श्रेष्ठ तायल कहते हैं, "लखनऊ को हमने पांच ज़ोन में बांटा था। हर ज़ोन की स्‍थ‍ित‍ि अलग-अलग है, सबसे ज्‍यादा खराब स्‍थ‍ित‍ि सेंट्रल लखनऊ की है। ऐसे में सरकार को जल्‍द से जल्‍द कदम उठाना जरूरी है। स्‍टडी में बताए गए सुझाव लागू किए जाएं तो हालात कुछ बेहतर होंगे।"

श्रेष्ठ कहते हैं, "हमारे सर्वेक्षण से ये भी पता चला कि भूजल का लखनऊ की अर्थव्यवस्था में कुल रुपये 8,400 करोड़ का योगदान होता है, जो शहर की कुल जीडीपी का लगभग एक तिहाई है। जैसे होटल, हॉस्‍प‍िटल में अगर पानी की दिक्‍कत हो तो वो पूरी तरह प्रभाव‍ित होंगे और इनके व्‍यापार पर असर होगा। ऐसे में पानी अर्थव्‍यवस्‍था से भी जुड़ा हुआ है।"

लखनऊ के ग‍िरते भूजल स्‍तर पर बाबासाहब भीमराव अंबेडकर विश्‍वविद्यालय, लखनऊ के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर वेंकटेश दत्‍ता भी चिंता जाह‍िर करते हैं। वो कहते हैं, "लखनऊ के शहरी क्षेत्र में पानी का बहुत ज्‍यादा दोहन हो रहा है। मेरा अनुमान है कि हर रोज प्रति वर्ग किलो मीटर पर 10 लाख लीटर पानी का दोहन हो रहा है। ऐसे में हर साल भूजल स्‍तर एक मीटर तक नीचे जा रहा है, कुछ हिस्‍सों में इससे ज्‍यादा भी हो रहा होगा। अगर यही हाल रहा तो लखनऊ का हाल द‍िल्‍ली, फरीदाबाद जैसा हो जाएगा।"

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