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नई दिल्ली: प्रदूषकों के बारे में नियमित जानकारी और कानूनी सीमा से अधिक उत्सर्जन करने वाले उद्योग के संबंध में जनता को जानकारी प्रदान करें।

भारत भर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पांच ‘सबूत-आधारित’ सलाहों में से ये दो हैं, जिन्हें शिकागो विश्वविद्यालय के ‘एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ (ईपीआईसी) के शोधकर्ताओं और बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल में ‘एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन’ (ईपीओडी) के शोधकर्ताओं ने वर्ष 2018 के पॉलिसी ब्रीफ में जगह दी है।

16 अगस्त, 2018 को जारी किए गए पॉलिसी ब्रीफ में अन्य तीन सलाह हैं: उद्योगों को कथित रूप से स्वतंत्र लैब्रटोरी को उनके चिमनी की जांच के लिए भुगतान से रोकना, रीयल-टाइम उत्सर्जन डेटा के साथ नियामकों को प्रदान करना और उद्योगों को अपने उत्सर्जन के व्यापार की अनुमति देना।

660 मिलियन से अधिक भारतीय उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 देश के मानक (40 μg / m3 वार्षिक और 24 घंटे के लिए 60 μg / m3) से अधिक है। पीएम 2.5 वायुमंडलीय कण हैं जो मानव बाल से 30 गुना महीन होते हैं और जो फेफड़ों में प्रवेश करके लोगों को बीमार कर सकते हैं और जान भी जा सकती है।

भारतीय एक साल ज्यादा जीवित रह सकते हैं, यदि भारत अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल कर लेता है। जीवन प्रत्याशा चार साल तक बढ़ सकती है, यदि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय किए गए प्रदूषण मानकों को पूरा कर सकता है ( 10 µg/m3 या तीन गुना ज्यादा चुस्त ), जैसा कि पॉलिसी ब्रीफ में बताया गया है।

"दिल्ली जैसे देश के सबसे बड़े शहरों में सबसे बड़ा लाभ देखा जाएगा," जैसा कि पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों सहित भारत-गंगा के मैदान में इसी तरह के लाभ की उम्मीद है। "वहां, अगर हवा की गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से मेल खाती है तो लोग छह साल अधिक तक जीवित रहेंगे।"

वर्ष 2015 में, 1000 भारतीयों में से केवल एक ही ऐसे इलाकों में रहता था, जहां प्रदूषण कण डब्ल्यूएचओ के वार्षिक सुरक्षित स्तर ( पीएम 2.5 के लिए 10 µg/m3 ) से अधिक नहीं था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

वर्ष 2015 में, भारत में कम से कम 1.09 मिलियन मौतों के लिए पीएम 2.5 प्रदूषण जिम्मेदार था, जैसा कि हमारी रिपोर्ट में कहा गया है।

यूनिवर्सिटी के द्वारा जारी रिलीज में पॉलिसी ब्रीफ के सह-लेखक माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा है, "वायु प्रदूषण से भारत में लाखों लोग छोटी और बड़ी बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं।" ग्रीनस्टोन मिल्टन फ्राइडमैन ग्रीनस्टोन अर्थशास्त्र में प्रोफेसर हैं और शिकागो विश्वविद्यालय में टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट और एपिक के निदेशक हैं।

सिफारिशों का मूल बिंदु भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाए बिना प्रमुख उद्योगों से प्रदूषण उत्सर्जन को विनियमित करके वायु गुणवत्ता में सुधार करने से संबंधित है।

ग्रीनस्टोन कहते हैं, "हालांकि, हम एक नए युग की शुरुआत में हैं, जहां बिजली और बड़े डेटा की गणना में विकास का संयोजन भारत में मजबूत आर्थिक विकास के तत्काल लक्ष्य को कमजोर किए बिना वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरणीय नियमों के लिए मजबूत नए अवसर पैदा कर रहे हैं।"

सिफारिशों का विश्लेषण कुछ इस तरह है:

लेखा परीक्षा स्वतंत्र करके उत्सर्जन निगरानी में सुधार करना

उद्योग वायु प्रदूषण मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं, इसे जांचने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) या विभिन्न राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) जैसे नियामक, उद्योग के चिमनी के मैन्युअल निरीक्षण पर भरोसा करते हैं।

कई मामलों में, उद्योग अपने स्वयं के प्रदूषण की जांच के लिए मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं को खुद फीस देकर बुलाते हैं। पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है कि इस तरह का अभ्यास ‘पक्षपात से भरे’ परिणामों को सामने लाता है।

पॉलिसी ब्रीफ में बताया गया है कि गुजरात में, " मान्यता प्राप्त तीसरे पक्ष के प्रयोगशालाओं द्वारा की गई निगरानी रिपोर्टों को भारी पक्षपातपूर्ण पाया गया है"। करीब 29 फीसदी उद्योगों को इन प्रयोगशालाओं द्वारा अनुपालन में झूठा बताया गया था और इस पक्षपात के पीछे कारण ‘व्यक्तिगत दिलचस्पी’ पाया गया था, चूंकि उद्योग इन परीक्षणों के लिए पर्यावरण प्रयोगशालाओं को भुगतान कर रहे थे।

प्रदूषण की जांच के लिए उद्योगों को रैन्डम्ली आवंटित किया जाना चाहिए, और उन्हें शामिल उद्योगों से स्वतंत्र निधि से भुगतान किया जाना चाहिए। उनके परिणामों को स्वतंत्र रूप से फिर से चेक किए जाने चाहिए, और यदि उनके परिणाम पक्षपात दिखाते हैं, तो उन्हें दंडित किया जाना चाहिए, जैसा कि पॉलिसी ब्रीफ में सिफारिश की गई है।

पॉलिसी ब्रीफ में कहा गया है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से किए गए इस तरह के एक अभ्यास में, उद्योग अनुपालन की झूठी रिपोर्ट 80 फीसदी कम हो गई थी।

उत्सर्जन पर रीयल-टाइम डेटा के साथ नियामक

उद्योगों के चिमनी प्रदूषण पर गुणवत्ता वाले आंकड़ों की कमी ने प्रदूषणकारी उद्योगों के विनियमन में बाधा डाली है। 2014 में, सीपीसीबी ने "अत्यधिक प्रदूषण" उद्योगों की 17 श्रेणियों में "निरंतर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (सीईएमएस)" की स्थापना का आदेश दिया - जिसका मतलब स्टैक उत्सर्जन पर वास्तविक समय में निगरानी का था।

ब्रीफ में कहा गया कि, हालांकि, कई एसपीसीबी को डेटा की जांच करने, कैलब्रैशन की निगरानी करने और प्रवर्तन के लिए डेटा का उपयोग करने के लिए "पर्याप्त क्षमता निर्माण प्रयासों" की आवश्यकता होती है।

वास्तविक समय की निगरानी में उपयोग किए गए माप उपकरण की सटीकता का मूल्यांकन और समायोजन करने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए ब्रीफ में कहा गया है, "उदाहरण के लिए, सीईएमएस को मैन्युअल कैलब्रैशन की आवश्यकता है। एसपीसीबी को यह सुनिश्चित करना होगा कि आपसी रूचि के संघर्ष समाप्त हो जाएं, और डेटा भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए डेटा गुणवत्ता प्रोटोकॉल का पालन हो।"

जनता को प्रदूषकों के बारे में जानकारी हो

उत्सर्जन के अभिलेखों और उद्योगों के निरीक्षण के परिणामों तक लोगों की पहुंच होनी चाहिए, जो आमतौर पर नियामकों तक ही सीमित होती है, जैसा कि पॉलिसी ब्रीफ में सुझाव दिया गया है।

ब्रीफ में कहा गया है, "इस जानकारी के सार्वजनिक होने से सिविल सोसाइटी समूहों पर सार्वजनिक रूप से दबाव हो सकता है, साथ ही साथ निवेशकों और औद्योगिक संयंत्रों पर भी दबाव भी बढ़ सकता है, और बेहतर व्यवस्था के लिए प्रदूषकों पर जोर दिया जा सकता है।"

हालांकि, जनता के लिए उत्सर्जन डेटा को समझना मुश्किल हो सकता है। लेकिन एपिक इंडिया और ईपीओडी के शोधकर्ताओं के सहयोग से महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) द्वारा संचालित एक रेटिंग कार्यक्रम, एक रास्ता दिखाता है।

‘महाराष्ट्र स्टार रेटिंग कार्यक्रम’, जैसा कि इसे नाम दिया गया है, 1 से 5-स्टार पैमाने पर सैकड़ों बड़े औद्योगिक संयंत्रों को मार्क करता है।इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 26 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले उद्योगों को 5 स्टार मिलते हैं। उत्सर्जन के उच्चतम घनत्व वाले उद्योगों को केवल एक स्टार मिलता है। उद्योग, सरकार और जनता अपने क्षेत्र में संयंत्र के रिपोर्ट कार्ड तक पहुंचने के लिए एमपीसीबी वेबसाइट पर लॉग ऑन कर सकते हैं।

ब्रीफ में कहा गया है, "5-स्टार रेटिंग अर्जित करने की चाहत प्रदूषकों के उत्सर्जन के निम्न स्तर को बनाए रखने के लिए एक प्रोत्साहन प्रदान करती है।"

अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था की प्रोफेसर और हार्वर्ड केनेडी स्कूल में ईपीओडी की सह-निदेशक रोहिणी पांडे ने इंडियास्पेंड को बताया, “महाराष्ट्र में हमारी स्टार रेटिंग परियोजना की एक अच्छी बात यह है कि जिस डेटा को समझना मुश्किल था,उसे समझने योग्य बना रहा है।

रेटिंग के अलावा, उद्योग के प्रकार को व्यक्त करने के लिए रंगीन ग्राफिक्स के साथ, मानचित्र पर स्थान और फीडबैक बटन, जनता को उद्योग से जोड़ता है। एमपीसीबी की वेबसाइट प्रदूषण की जानकारी, जनता तक रोचक तरीके से पहुंचाती है।

पांडे कहती हैं, “यह सब महंगा है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दायरे से बाहर है। यदि भविष्य में अनुसंधान बजट के बिना इस पारदर्शिता पहल को आगे बढ़ाना है तो सिविल सोसाइटी और मीडिया को इन डेटा को आम नागरिकों तक पहुंचाना होगा।

उन्होंने आगे कहा कि, " फिर भी, मुद्दा यह है कि यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार सबसे पहले डेटा को सार्वजनिक बनाए।"

महाराष्ट्र के बाद, ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (ओएसपीसीबी) अपना खुद का स्टार रेटिंग कार्यक्रम लॉन्च करेगा। ओएसपीसीबी की रेटिंग सीईएमएस डेटा पर आधारित होगी और हर महीने अपडेट की जाएगी।

ब्रीफ में कहा गया है, "भारत भर में इसी तरह की पारदर्शिता और सार्वजनिक प्रकटीकरण पहलुओं को अपनाने से औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों में मजबूत बदलाव आएगा।"

अतिरिक्त उत्सर्जन के लिए जुर्माना

भारत को प्रदूषण उद्योगों के खिलाफ मौद्रिक दंड का उपयोग करना चाहिए। ब्रीफ में कहा गया है, " इससे यह संदेश जाएगा कि नियामकों ने पर्यावरणी के खिलाफ अपराधों पर कार्रवाई की है। इससे कार्रवाई का मार्ग और आसान होगा।"

भारतीय पर्यावरण कानून उद्योगों को नजर रखने के लिए आपराधिक जुर्माना, जैसे प्लांट क्लोजर और निवेश होल्ड-अप पर भरोसा करते हैं। ब्रीफ में कहा गया है कि ये "लचीले विनियमन" उपकरण प्रमुख उल्लंघन करने वालों के एक अंश के खिलाफ कार्रवाई करते हैं, जबकि कई अन्य को छोड़ दिया जाता है।

तो, सवाल यह है कि: क्या उद्योग जुर्माने का भुगतान करके आसानी से अलग हो जाएगा?

जब आप सकारात्मक और नकारात्मक प्रोत्साहन जोड़ते हैं, तो आप उद्योगों को "अवांछनीय कार्रवाइयों" से दूर करने की अधिक संभावना रखते हैं, लेकिन पांडे कहती हैं, "यह भारत के नीतिगत परिदृश्य से पूरी तरह से अनुपस्थित है"।

पांडे ने कहा कि अधिक विस्तृत प्रदूषण डेटा अधिक उल्लंघन के लिए ज्यादा जुर्माना पैदा कर सकता है, और "छोटे अपराध" "वहन करने योग्य" हो सकते हैं। उन्होंने कहा, "वही रीडिंग हमें उन उद्योगों को पुरस्कृत करने की इजाजत दे सकती है जो मानक से नीचे प्रदूषण फैला रहे हैं।"

उद्योगों को उत्सर्जन का व्यापार करने दें

सीमाओं के साथ उद्योगों को अपने उत्सर्जन का व्यापार करने की अनुमति दी जानी चाहिए, और औद्योगिक बाजारों में व्यापार बाजार स्थापित किए जाने चाहिए।

कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम के तहत, विनियमित उद्योगों से कुल उत्सर्जन को कैप्ड किया जाता है। उद्योगों को उत्सर्जन की प्रत्येक इकाई के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। परमिट की संख्या सीमा के बराबर है। ब्रीफ में कहा गया है कि परमिट उद्योग की अनुमति है।

कहा गया है कि, "कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम उद्योगों को विभिन्न अपर्याप्त उपायों और खरीद परमिट के माध्यम से अपने उत्सर्जन को कम करने के बीच संतुलन को रोकने की अनुमति देता है।"

पारंपरिक कमांड-एंड-कंट्रोल नियमों के तहत, प्रदूषक अनुपालन के "बचाए गए लागत" के साथ पता लगाने और दंडित होने के जोखिम को दूर करने के इच्छुक हो सकते हैं, खासकर यदि " अबेट्मन्ट कॉस्ट" अधिक है और एन्फोर्स्मन्ट क्षमता सीमित है, जैसा कि संक्षेप में कहा गया है।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत:अंग्रेजी में 30 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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