लखनऊ। शरीर में आयोडीन की कमी से कई तरह की बीमारियों का खतरा होता है, जैसे - घेंघा रोग, बच्‍चों के मानसिक व शारीरिक विकास पर असर, गर्भवती महिलाओं में हाइपोथायराइडिज्‍म होने की आशंका आदि। इन्हीं खतरों से निपटने के लिए देश में राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता व‍िकार न‍ियंत्रण कार्यक्रम या National Iodine Deficiency Disorders Control Programme (NIDDCP) चलाया जाता है। आयोडीन की कमी से लड़ने के लिए बनाया गया यह कार्यक्रम फिलहाल खुद ही मानव संसाधनों और फंड की कमी की वजह से ठंडे बस्‍ते में पड़ा नजर आ रहा है।

आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्‍य उत्‍तर प्रदेश में NIDDCP कार्यक्रम के तहत होने वाली नमक में आयोडीन की जांच प‍िछले दो साल से नहीं हो रही। इसी तरह जागरूकता के कार्यक्रम भी कोरोना की वजह से नहीं हो पाए। वहीं, इस कार्यक्रम का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा सर्वे है। यह सर्वे भी बजट के अभाव में करीब 15 साल से नहीं हुआ है।

उत्‍तर प्रदेश में NIDDCP कार्यक्रम की संयुक्‍त न‍िदेशक न‍िरुपमा स‍िंह बताती हैं, "कोरोना की वजह से नमक की जांच की प्रक्रिया प्रभावित हुई है। हमारे कार्यक्रम का आधार आशा बहुएं हैं और वो इस वक्त कोविड, वैक्सीनेशन, डेंगू, मलेरिया और अन्य मौसमी बीमारियों में व्‍यस्‍त हैं। ऐसे में पिछले दो साल से यह कार्यक्रम थोड़ा पीछे छूट गया है। दो साल से रिपोर्टिंग नहीं हो पा रही है, इसलिए क्या स्टेटस है हमें पता नहीं। हम यह मानकर चल रहे हैं कि अब तक सब आयोडीन युक्त नमक खा रहे थे तो अभी भी वही खा रहे होंगे।"

उत्‍तर प्रदेश में NIDDCP कार्यक्रम की संयुक्‍त न‍िदेशक न‍िरुपमा स‍िंह। फोटो: रणव‍िजय स‍िंह

भारत में करीब 93% परिवार आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करते हैं। यह जानकारी 16 मार्च 2021 को केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण राज्‍य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में दी। यह डेटा नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे–4 में बताया गया है। NIDDCP कार्यक्रम का यह लक्ष्य है कि 100% परिवार आयोडीन युक्त नमक (>15 पीपीएम) का इस्तेमाल करें। नमक में आयोडीन की मात्रा को पार्ट्स पर म‍िल‍ियन (पीपीएम) के तौर पर देखा जाता है। 15 पीपीएम या उससे अध‍िक पीपीएम के आयोडीन युक्त नमक को अच्‍छा माना जाता है।

चौबे ने यह भी बताया कि देश में 2019 में 67.02 लाख टन आयोडीन युक्त नमक का उत्‍पादन और आपूर्ति हुई। वहीं, साल 2020 में 64.35 लाख टन आयोडीन युक्त नमक की आपूर्ति हुई है।

आयोडीन की कमी से पहले घेंघा रोग (Goiter) बहुत होता था। इसके मद्देनजर भारत सरकार ने साल 1962 में 'राष्‍ट्रीय घेंघा न‍ियंत्रण कार्यक्रम' की शुरुआत की। साल 1992 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर 'राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता व‍िकार न‍ियंत्रण कार्यक्रम' (NIDDCP) रखा गया।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक सर्वे के मुताबिक, देश के 337 ज‍िलों में आयोडीन की कमी से होने वाले व‍िकारों का स्‍तर 5% से ज्‍यादा है। यह सर्वे साल 2015-16 में देश के 29 राज्‍य और 7 केंद्र शासित प्रदेश के 414 ज‍िलों में किया गया था। NIDDCP कार्यक्रम के तहत यह प्रयास हो रहे हैं कि आयोडीन की कमी से होने वाले व‍िकारों को 5% से कम किया जाए। इसके ल‍िए न‍िम्‍नलिख‍ित काम किए जाते हैं:

· राज्‍यों में आयोडीन डिफिशिएंसी ड‍िसॉडर (आईडीडी) सेल बनाना

· आईडीडी मॉन‍िटर‍िंग लैब बनाना

· ज‍िलावार आईडीडी सर्वे करना

· जागरूकता फैलाना

नहीं हो रही नमक की जांच

NIDDCP कार्यक्रम के तहत उत्‍तर प्रदेश में भी आयोडीन डिफिशिएंसी ड‍िसॉडर (आईडीडी) सेल और आईडीडी मॉन‍िटर‍िंग लैब बनाए गए हैं। लखनऊ स्‍थ‍ित आईडीडी सेल के परामर्शदाता डॉ. अर्प‍ित सेठ ने इंड‍ियास्‍पेंड को बताया, "यूपी के 24 जिले आयोडीन एंडमिक हैं, यानी इन 24 जिलों में आयोडीन डिफिशिएंसी ड‍िसॉडर (आईडीडी) के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। इन ज‍िलों से हर महीने नमक के सैंपल हमारी लैब को भेजे जाते हैं। कोरोना की वजह से यह काम रुका हुआ था, अब कुछ ज‍िलों से सैंपल आने शुरू हुए हैं।"

उत्‍तर प्रदेश का गोरखपुर ज‍िला आयोडीन एंडम‍िक है। गोरखपुर के पानापार गांव की आशा वर्कर सुधा देवी बताती हैं, "दो साल से नमक जांचने की क‍िट नहीं मिली है। कोई सैंपल या र‍िपोर्ट भी नहीं मांगी जा रही। पहले जब हम जांच करते थे तो बड़ी संख्‍या में नमक खराब म‍िलते थे। अब क‍िट नहीं है तो जांच नहीं हो पा रही।"

गोरखपुर के पानापार गांव की आशा वर्कर सुधा देवी। फोटो: रणव‍िजय सिंह

आयोडीन एंडमिक ज‍िलों की आशा कार्यकत्र‍ियों को आयोडीन से जुड़े दो तरह के काम करने होते हैं। पहला नमक जांचने की क‍िट से नमक की जांच करना। दूसरा पर‍िवार और दुकानों से नमक के सैंपल इकट्ठा करके ज‍िले के नोडल अध‍िकारी को भेजना, जहां से नमक के सैंपल लैब में जांच के ल‍िए भेजे जाते हैं। आशा कार्यकत्र‍ियों को 50 सैंपल इकट्ठा करने पर 25 रुपए म‍िलते हैं।

आख‍िर आयोडीन की जांच क्‍यों प्रभाव‍ित हुई यह जानने के ल‍िए इंड‍ियास्‍पेंड ने ज‍िलों में तैनात आईडीडी सेल के नोडल अध‍िकार‍ियों से बात की। मथुरा ज‍िला भी आयोडीन एंडम‍िक है, यहां के नोडल अध‍िकारी डॉ. द‍िलीप जाटव कहते हैं, "इस कार्यक्रम में अलग से कोई स्‍टाफ नहीं मिला है। सारा काम आशा पर न‍िर्भर करता है। यह सबसे बड़ी समस्‍या है।"

वहीं, बस्‍ती ज‍िले के नोडल अध‍िकारी डॉ. एफ. हुसैन कहते हैं, "ठीक से याद नहीं क‍ि आखि‍री बार जांच क‍िट कब आई थी। फिर कोरोना आ गया तो काम प्रभाव‍ित हो गया। इस साल जून से र‍िपोर्ट मांगी जा रही है, लेकिन जांच क‍िट नहीं है तो जांच कैसे होगी?"

यूपी का आईडीडी मॉन‍िटर‍िंग लैब। फोटो: रणव‍िजय सिंह

बजट की कमी से सर्वे ठप

NIDDCP कार्यक्रम का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा सर्वे भी है, ताकि यह पता चल सके कि आयोडीन डिफिशिएंसी ड‍िसॉडर (आईडीडी) का स्‍तर क्‍या है। कितने पर‍िवार आयोडाइज्‍ड नमक खाते हैं। यह सर्वे हर साल-दो साल पर होना चाहिए। हालांकि उत्‍तर प्रदेश में यह सर्वे आख‍िरी बार 2006 में हुआ था, आईडीडी सेल के अध‍िकारियों के मुताबिक।

सर्वे के बारे में आईडीडी सेल के परामर्शदाता डॉ. अर्प‍ित सेठ कहते हैं, "भारत सरकार से पर्याप्‍त धनराश‍ि न आने के कारण सर्वे नहीं हो पा रहा। एक ज‍िले का सर्वे करने में करीब रुपये 1.5 लाख का खर्च आता है। केंद्र सरकार से हर साल रुपये 50 हजार प्रति ज‍िले के हिसाब से आठ ज‍िलों का बजट आता है। यह बहुत कम है, ऐसे में बजट ब‍िना इस्‍तेमाल हुए ही वापस चला जाता है।"

यूपी आईडीडी सेल के परामर्शदाता डॉ. अर्प‍ित सेठ। फोटो: रणव‍िजय सिंह

डॉ. सेठ यह उम्‍मीद जताते हैं कि इस साल सर्वे हो जाएगा। वो कहते हैं, "रणनीत‍ि बनाई जा रही है कि सर्वे की लागत रुपये 55 से 60 हजार हो जाए। केजीएमयू के कम्युनिटी मेड‍िस‍िन व‍िभाग से भी बात की गई है। अगर सब ठीक रहा तो इस साल सर्वे हो जाएगा।"

सर्वे न होने से यह सवाल उठता है कि आईडीडी सेल किस बिनाह पर वर्तमान स्थिति का अनुमान लगा रहा है। इसपर आईडीडी सेल की संयुक्‍त न‍िदेशक न‍िरुपमा स‍िंह गैर सरकारी संस्‍था न्‍यूट्र‍ियशन इंटरनेशनल के 'इंड‍िया आयोडीन सर्वे' का हवाला देती हैं।

इंड‍िया आयोडीन सर्वे, 2018-19 के मुताबिक, भारत में 76.3% परिवार आयोडीन युक्त नमक (>15 पीपीएम) का इस्‍तेमाल करते हैं। वहीं, उत्‍तर प्रदेश में 72.3% पर‍िवार आयोडीन युक्‍त नमक का इस्‍तेमाल करते हैं।

इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि अभी भी बहुत बड़ा वर्ग आयोडीन युक्‍त नमक का इस्‍तेमाल नहीं कर रहा। जौनपुर ज‍िले में आईडीडी सेल के पूर्व नोडल अध‍िकारी रहे डॉ. हरीश चंद्र बताते हैं, "जब हम नमक की जांच करते थे तो बहुतायत में नमक की क्‍वालिटी खराब म‍िलती थी। हालांकि इसका कानूनी पहलू समझ नहीं आया, क्‍योंकि हम केवल र‍िपोर्ट करते थे, उस पर क्‍या कार्यवाही हुई पता नहीं चलता था।"

जागरूकता की कमी

आंकड़े और पूर्व अध‍िकारी के बयान से यह साफ होता है कि अभी भी आयोडाइज्‍ड नमक के इस्‍तेमाल को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की बहुत कमी है। सरकार भी जागरूकता की कमी को बड़ी चुनौती मानती है। लोकसभा में 6 अगस्‍त 2021 को केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर‍िवार कल्‍याण राज्‍य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने बताया, "आयोडीन की कमी को नियंत्रित करने में सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों में आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थों और आयोडीन युक्त नमक के सेवन के बारे में जागरूकता की कमी शामिल है।"

इंड‍िया आयोडीन सर्वे के मुताबिक, आयोडीन युक्त नमक के बारे में शहरी क्षेत्र के लोग (62.2%) ग्रामीण क्षेत्र के लोगों (50.5%) से ज्‍यादा जागरूक हैं। लोगों के बीच जागरूकता के ल‍िए हर साल 21 अक्टूबर को 'वैश्‍व‍िक आयोडीन अल्पता व‍िकार रोकथाम द‍िवस' मनाया जाता है। इस द‍िन जागरूकता के लिए अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं, जैसे – रैली न‍िकालना, गांव में चौपाल लगाकर लोगों को जागरूक करना, स्‍कूली बच्‍चों को इसके बारे में बताना आद‍ि। हालांकि कोरोना महामारी के चलते उत्‍तर प्रदेश में प‍िछले दो साल से यह कार्यक्रम भी नहीं हो पा रहे हैं।

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