देहरादून: उत्तराखंड में बेरोजगारी की समस्या हर साल बढ़ती जाती है और इसकी वजह से प्रदेश सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद भी यहां के पहाड़ी जिलों से पलायन को रोक नहीं पा रही है। प्रदेश में जहां एक और सरकारी नौकरियों में कमी आ रही है और कई खली पड़े पदों पर नियुक्तियां नहीं हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के बाद प्रदेश के पर्यटन क्षेत्र को भी बड़ा नुकसान हुआ जिसकी वजह से स्थिति और ज़्यादा बिगड़ गयी।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार उत्तराखंड में 2021 के मई से अगस्त के चार महीनों में बेरोजगारी की दर 5.3% थी जो कि देश में 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की बेरोज़गारी दर के आकड़ों में 17 वे नंबर पर रही और इस दौरान बेरोज़गारी दर का राष्ट्रीय औसत 8.57% रहा। हालाँकि ये आंकड़ा देश के दूसरे राज्यों की तुलना में काफी अच्छा दिखाई देता है लेकिन जब इस बेरोजगारी की दर को हम युवाओं में, यानी 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में देखते हैं तो पाते हैं कि यह दर इस वर्ग में काफी ज़्यादा है।

इस दौरान प्रदेश में 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 56.41% देखी गयी है। साल 20 से 24 के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे ज़्यादा 81.76% और 25 से 29 वर्ष में यह दर 24.39% है। देश में 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 27.63% देखी गयी है। साल 20 से 24 के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे ज़्यादा 41.53% और 25 से 29 वर्ष में यह दर 13.71% है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्य में युवाओं की एक बड़ी संख्या है जो बेरोजग़ार है।

रोजगार को लेकर सरकार का रुख

उत्तराखंड सरकार का दावा है कि राज्य में युवाओं को स्वरोजग़ार के लिये ऋण व तकनीकी मदद दी जा रही है और बड़ी संख्या में युवा रोजगार शुरू कर रहे हैं। इसके अतरिक्त समाचार पत्रो से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार के अधीन 22 हज़ार रिक्त पदों पर नयी भर्तियों की कवायद भी शुरू हो चुकी है।

यहाँ आपको बताते चलें कि वर्ष 2021-22 के बजट में पेश हुए दस्तावेजों में राजपत्रित और अराजपत्रित पदों का विवरण देते हुए बताया गया है कि प्रदेश भर में विभिन्न विभागों में करीब 57 हजार पद रिक्त हैं, जो कि कुल पदों का 23% है। बजट डॉक्यूमेंट में दिए गए पदों की स्थिति बताती है कि राज्य में ऐसा कोई विभाग नहीं है जहाँ पर बड़ी संख्या में पद रिक्त ना हो।

प्रदेश में सबसे ज़्यादा रिक्त पद माध्यमिक शिक्षा विभाग (7,899), प्राथमिक शिक्षा विभाग (4,184) और चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य विभाग (3,402) में हैं।

इसके साथ ही जहाँ पर नौकरियों की विज्ञप्तियां निकली हैं और परीक्षा हुई हैं, वहां भी युवाओं को अलग-अलग तरह से समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है जिसका उदहारण हम हाल हीं में सम्पन्न हुई कुछ परीक्षाओं से ले सकते हैं।

उत्तराखंड में इसी साल 12 से 15 सितंबर को हुई सहायक लेखाकार परीक्षा को रद्द करने की मांग को लेकर युवाओं ने 23 सितम्बर को राजधानी देहरादून स्थित गांधी पार्क में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे युवाओं का कहना था कि परीक्षा का स्तर सहायक लेखाकार परीक्षा के स्तर से बहुत ऊंचा था, इसके अतिरिक्त हिंदी के प्रश्नों में भी गलतियां थी जिनको आयोग ने भी स्वीकार किया। इसके अलावा सांख्यिकी के प्रश्नों की संख्या भी बहुत अधिक थी जिन्हें 2 घंटे में हल कर पाना बहुत मुश्किल था।

इसी तरह की कुछ स्थिति उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती में भी रही, आयोग ने ग्रेजुएशन पास युवाओं के लिए 854 पदों पर भर्तियों का नोटिफिकेशन नवंबर 2020 में जारी किया था। इसके लिए 10 नवंबर से 08 जनवरी 2021 तक ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे। आयोग ने इस भर्ती के लिए मई में परीक्षा प्रस्तावित की थी। जब आवेदनों की संख्या देखी तो होश उड़ गए। इस भर्ती के लिए 2 लाख 19 हजार आवेदन आ गए, सीधे शब्दों में कहे तो एक पद के लिये 256 दावेदार थे।

इसी प्रकार अभी हाल ही में पिथौरागढ़ सीमांत जनपद में बेरोजगारी की मार झेल रहे युवा, रोजगार का कोई भी अवसर हाथ से नहीं निकलने देना चाहते। फिर चाहे पद उनकी काबिलीयत के अनुसार हो या न हो, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, पिथौरागढ़ में होमगार्ड के पद के लिए योग्यता पांचवी से हाईस्कूल पास रखी गई है, लेकिन आवेदनकर्ताओं में अधिकतर बीएड, एमएससी डिग्रीधारक शामिल हैं।

महिलाओं में बेरोज़गारी की स्थिति और गंभीर

महिलाओं के बारे में CMIE की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में बेरोजगारी दर पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है।

मई से अगस्त 2021 के चार महीनों में महिलाओं में बेरोजगारी की दर 14.9% थी जबकि पुरुषों में यह दर 5% थी। इस दौरान प्रदेश में 20 से 24 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं में बेरोजगारी की दर 100% देखी गयी है। इसमें शहरी क्षेत्रों में 10.4% और ग्रामीण क्षेत्रों में 20% है।

पिछले वर्ष इस ही अवधि के दौरान प्रदेश में महिलाओं की बेरोज़गारी दर 26.8% थी और पुरुषों में यह दर 8.7% थी लेकिन इस चौमाही में भी 20 से 24 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं में बेरोजगारी की दर 100% ही रही।

युवा महिलाओं में बेरोजगारी की समस्या इतनी विकट होने के बाद भी प्रदेश सरकार ने अभी तक इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं। बल्कि दूसरी तरफ सरकारी भर्तियों में महिलाओं की सीटों को और कम किया गया है।

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 18 दिसंबर 2019 को वन दरोगा के लिए 316 पदों पर भर्ती निकाली जिसमें महिलाओं के लिए 171 सीट आरक्षित थीं लेकिन परीक्षा होने के बाद 25 अगस्त 2021 को आयोग द्वारा पुनः सूचना जारी कर महिलाओं की आरक्षित सीट को काटकर 105 कर दिया।


महिला आरक्षण की सीटें घटाने के लिए उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग विज्ञापन

कोरोना के दौर में स्वरोजगार

जून 2021 में आयी उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 3.5 लाख से अधिक प्रवासी सितम्बर 2020 तक अपने मूल स्थानों को लौटे इनमें सबसे अधिक जनपद पौड़ी, टिहरी और अल्मोड़ा से थे। इसके बाद लगभग 29% लोगों ने रोजगार के लिये पुनः पलायन किया। इसी प्रकार कोरोना की दूसरी लहर (अप्रैल 2021 से 5 मई 2021 तक) में 53,092 लोगों की वापसी हुई जिनमें अधिक संख्या पर्वतीय जिलों से थी, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रोजगार के लिये पलायन पहाड़ी जिलों से अधिक होता है।

उत्तराखंड के 13 जिलों में से 9 पहाड़ी जिले हैं, दो मैदानी और दो पहाड़ी-मैदानी जिले हैं।

कोरोना काल में प्रवासियों की वापसी को देखते हुए सरकार ने पलायन रोकने के लिए 11 सितंबर 2020 को मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना की शुरुआत की, जिसका मुख्य उद्देश्य चिन्हित 50% तक पलायन प्रभावित गांवों में बेरोजग़ार युवाओं और कोरोना काल में वापस आये लोगों के लिए राज्य में पहले से चल रही योजनाओ का लाभ दिलाना था।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 13 मई 2020 को सचिवालय में मंत्रिमंडल की उपस्थिति में "होप " (हेल्पिंग आउट पीपल एवरीवेयर) नामक पोर्टल की शुरुआत की थी जिसका मुख्य उद्देश्य कुशल और अकुशल युवाओं का डाटाबेस बनाना तथा डेटाबेस के आधार पर रोजगार/स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था। लेकिन इस पोर्टल पर उपलब्ध रिक्तियों की जानकारी को देखें तो पहाड़ी जिलों में मात्र 261 रिक्तियां दिखती हैं जबकि सबसे ज्यादा लोगों की वापसी पहाड़ी जिलों में हुई है।

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, उत्तराखंड में राज्य सरकार द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं में से एक है, लेकिन बेरोजगारों का कहना है कि यदि हम लोग इस योजना के तहत लोन के लिए आवेदन करते हैं तो, शर्त के अनुसार सामान्य श्रेणी के लिए परियोजना लागत का 10% स्वयं के अंशदान के रूप में बैंक में जमा करना होगा और यदि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, भूतपूर्व सैनिक, महिला एवं दिव्यांगजन है तो लाभार्थियों को कुल परियोजना लागत का 5% स्वयं के अंशदान के रूप में जमा करना होता है, पहले से अपने पास जमा पूंजी न हो पाने के कारण इस योजना का लाभ भी हमें नहीं मिल पाया है।

पिछले 2 वर्षों में स्वरोजग़ार में लगे लोगों को बड़ा झटका लगा है। कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण लगातार दो सालों से राज्य में होने वाली चारधाम यात्रा बंद थी जिसे 16 सितम्बर 2021 को कुछ शर्तों के साथ शुरू किया गया। यातायात, होटल के क्षेत्रों और तीर्थ स्थलों के पारम्परिक हक़-हकूक धारियों के रोजग़ार पर यात्रा के बंद होने से सीधा असर पड़ा है| आय का कोई दूसरा साधन न होने के कारण चारधाम यात्रा ठप होने से बेरोजग़ार हुए लोग कोविड-19 की तीसरी संभावित लहर के खतरे को नजरअंदाज करते हुए भी सरकार से चारधाम यात्रा शुरू करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन को मजबूर थे।

आल इंडिया किसान सभा (AIKS) उत्तराखंड के उपाध्यक्ष राजाराम सेमवाल का कहना है कि केदार घाटी में केवल होटल के व्यवसाय से जुड़े लोग ही नहीं बल्कि खच्चर वाले, फूल-प्रशाद वाले, टैक्सी वाले और वे सभी लोग जो किसी न किसी प्रकार से अपनी सालाना आय के लिये केवल यात्रा में आने वाले यात्रियों पर ही निर्भर रहते है उन सभी को लॉकडाउन के चलते बेरोज़गारी के कारण बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

सेमवाल आगे बताते हैं कि यात्रा का समय अप्रैल से नवम्बर तक होता है लेकिन लॉकडाउन के कारण इस साल भी आधे सितम्बर से ही यात्रा शुरू हो पायी है, इसमें भी कोविड-19 के कारण यात्रियों के लिए जो शर्तें हैं इन शर्तों के कारण बहुत ही कम संख्या में यात्री पहुंच रहे हैं, ऐसे में होटल में कार्यरत कर्मचारियों के लिये, होटल मालिक मजदूरी भी नहीं दे पा रहे है, इसी प्रकार खच्चर वालों को भी उनकी लागत तक निकालने में बड़ी मशक्कत करनी पड रही है।

उत्तराखंड बेरोजगार संघ अध्यक्ष बॉबी पंवार का कहना है कि स्वरोजगार के नाम पर जो लोन दिया जा रहा है वह भी केवल सत्ताधारियों के रिश्तेदारों को ही मिलता है। आम युवा इस सुविधा से भी अछूता ही है। क्योंकि जो मानक इस लोन के लिये दिये गये हैं उनको ज्यादातर युवा पूर्ण करने में समर्थ नहीं हैं, अतः सरकार यदि स्वरोजग़ार देना चाहती है तो पहले इन मानकों में बदलाव करने की आवयश्कता है।

आगे पंवार बताते हैं कि राज्य में औधोगिक क्षेत्र भी है लेकिन वहां ठेकेदारी व्यवस्था के कारण रुपये 10 हजार प्रति माह के लिए 12-12 घण्टे काम करना होता है, इसके अतरिक्त पिछले पांच सालों में सरकारी भर्तियां कम ही हुई हैं। इन में भी परीक्षाओं में गड़बड़ी देखने को मिली है जिसके विरोध में हमने युवाओं को सड़क पर प्रदर्शन करते देखा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 30 सितम्बर को अपने ट्विटर अकॉउंट से पोस्ट कर जानकारी दी कि इन्वेस्टमेंट समिट के अंतर्गत सुचना प्रौद्योगिकी के द्वारा रुपये 4,625.48 करोड़ के एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लगभग रुपये 3,500 करोड़ से अधिक का कार्य आरम्भ हो चूका है और राज्य में पिछले साढ़े चार साल में 15,000 से अधिक अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रोजग़ार का सृजन हुआ है।

एक ओर सरकारी विभागों में 57 हजार पद खाली हैं और एक पद के लिए 256 युवा आवेदन करते हैं दूसरी और सरकार साढ़े चार साल में मात्र 15 हजार रोजगार की बात करती है।

बेरोज़गारी की इस समस्या पर सरकार का पक्ष जानने के लिये हमारे द्वारा मंत्री हरक सिंह रावत, मंत्री सुबोध उनियाल, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, मनीषा पंवार, आनन्द वर्द्धन आदि से फोन के द्वारा संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया, इस के अतिरिक्त हमारे द्वारा एक ईमेल सूचना एवं लोक संपर्क विभाग उत्तराखंड को भी किया गया है, जैसे ही इस से सम्बंधित कोई जानकारी हम को मिलती है, इस जानकारी को अपडेट किया जायेगा

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