लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 250 क‍िलोमीटर दूर ज‍िला के भदोही की तहसील औराई में रहने वाले अमरेश शुक्‍ला परेशान हैं। वे प्राइमरी स्‍कूली में टीचर हैं। वे एक सप्‍ताह से बच्‍चों को पढ़ाने स्‍कूल नहीं जा रहे हैं। उनका प्‍लान नये साल पर छुट्टी लेकर पर‍िवार के साथ कहीं घूमने जाने का था। लेक‍िन उन्‍होंने लीव एप्‍लीकेशन अभी लगा द‍िया। वे परेशान हैं क्‍योंक‍ि उन्‍हें लग रहा क‍ि उनकी सरकारी नौकरी चली जायेगी।

“लगभग छह साल की नौकरी बची है। मैं तो 12वीं ही पास हूं। तीन साल लग जायेगा ग्रजुऐशन की पढ़ाई पूरी करने में। ऐसे में दो साल में टीईटी की परीक्षा कैसे न‍िकलेगी? ऐसे लग रहा क‍ि नौकरी छूट ही जायेगी।” अमरेश शुक्‍ला जब ये बता रहे थे, तब उनकी बातों से लग रहा था क‍ि वे क‍ितना परेशान हैं।

दरअसल एक स‍ितंबर को देश की सर्वोच्‍च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और महाराष्ट्र में टीचिंग के लिए टीईटी (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट) की अनिवार्यता से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा क‍ि शिक्षक के रूप में नियुक्ति के इच्छुक और पदोन्नति के इच्छुक सेवारत शिक्षकों को दो साल के अंदर शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने अपने फैसले में कहा क‍ि जिन श‍िक्षकों की नौकरी 5 साल से ज्यादा बची हैं, उन्हें टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट क्वॉलिफाई करना जरूरी होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो उन्हें इस्तीफा देना होगा या फिर कंपल्सरी रिटायरमेंट लेना होगा। और ज‍िनकी नौकरी पांच साल से कम है और अगर उन्‍हें प्रमोशन चाह‍िए तो उन्‍हें भी टीईटी क्वॉलिफाई करना पड़ेगा।

कोर्ट ने कहा क‍ि सभी सेवारत शिक्षकों, यहाँ तक कि 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को भी, सेवा और नियुक्ति में बने रहने के लिए अनिवार्य रूप से टीईटी पास करना होगा। आगे कहा क‍ि टीईटी न केवल एक अनिवार्य पात्रता आवश्यकता है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार से जुड़ी एक संवैधानिक आवश्यकता भी है। माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस पर यह फैसला लागू होगा या नहीं, इसका फैसला बड़ी बेंच करेगी।

टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट यानी TET एक राष्ट्रीय स्तर की पात्रता परीक्षा है, जो यह तय करती है कि कोई अभ्यर्थी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा 1 से 8 तक) में टीचर बनने के योग्य है या नहीं। यह परीक्षा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा 2010 में अनिवार्य की गई थी।


पहले पूरा मामला समझते हैं?

अमरेश शुक्‍ला 12वीं तक ही पढ़े हैं। 30 साल पहले उनकी नौकरी प‍िता का आकस्‍म‍िक मृत्‍यु के बाद मृतक आश्र‍ित कोटे के तहत हुई थी। इसके बाद उन्‍होंने आगे की पढ़ाई नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्‍हें अगले दो साल में टीईटी परीक्षा पास करनी होगी। न‍ियमत: टीईटी परीक्षा में बैठने के ल‍िए स्‍नातक जरूरी है। ऐसे में उन्‍हें तीन साल तो स्‍नातक में ही लग जाएंगे। अब अमरेश का कहना है, “तब शिक्षक बनने के लिए 12वीं पास ही न्यूनतम अर्हता थी। लेक‍िन अब वे बच्‍चों को पढ़ाउंगा या खुद पढ़ूंगा। अगले दो साल में तब स्‍नातक ही पूरा नहीं होगा तो टीईटी कैसे न‍िकलेगा? मतलब नौकरी चली जायेगी।”



श‍िक्षकों का कहना है क‍ि अगर वे खुद तैयारी करने लगेंगे तो बच्‍चों को पढ़ायेगा कैसे।


चंदौली में श‍िक्षक अवनीश श्रीवास्तव कहा कहना है क‍ि कोर्ट का ये आदेश अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण है। वे कहते हैं, "अगले दो साल में परीक्षा पास करने का दबाव बनाया जा रहा है। क्‍या अब हम बच्‍चों को पढ़ाएंगे नहीं? हम उन्‍हें पढाएंगे क‍ि खुद पढ़ें, आप ही बताइये। सरकार को कोर्ट में शिक्षकों का पक्ष रखना चाहिए। क्या किसी और व‍िभाग में ऐसा हुआ है या होता है? 15 साल नौकरी करने के बाद अब हमें परीक्षा देने के ल‍िए कहा जा रहा। ये सरासर गलत है। हम इसके ख‍िलाफ आंदोलन करेंगे।"

आरटीई एक्‍ट, 2009 की धारा 23(1) के अनुसार, शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता राष्ट्रीय परिषद शिक्षक शिक्षा (एनसीटीई) द्वारा निर्धारित की जाएगी। एनसीटीई ने 23 अगस्त 2010 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें कक्षा 1 से 8 तक शिक्षक बनने के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य किया गया था।



उत्‍तर प्रदेश में श‍िक्षकों की मौजूदा स्‍थ‍ित‍ि। सोर्स - UDISEPLUS


एनसीटीई ने शिक्षक पदों पर नियुक्‍त उम्‍मीदवारों को टीईटी क्‍वालिफाई करने के लिए पांच साल का समय दिया, जिसे आगे चलकर चार साल और बढ़ाया भी गया।

एनसीटीई के नोटिस के खिलाफ उम्‍मीदवारों ने कोर्ट का रुख किया। मद्रास हाई कोर्ट बेंच ने जून 2025 में कहा कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 29 जुलाई 2011 से पहले हुई थी, उन्हें सेवा में बने रहने के लिए टीईटी पास करने की बाध्यता नहीं है, लेकिन पदोन्नति के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य रहेगा। इसी फैसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सर्विस में बने रहने और प्रमोशन दोनों के लिए टीईटी क्‍वालिफाई करना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस के लिए फैसला आना अभी बाकी है।

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 50 हजार से ज्‍यादा श‍िक्षक स्‍नातक नहीं हैं। जबकि 54 हजार से ज्‍यादा श‍िक्षक बस स्‍नातक ही हैं। जबकि देशभर में 9 लाख से ज्‍यादा श‍िक्षक स्‍नातक नहीं हैं।


अब आगे क्‍या?

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पाण्डेय कहते हैं क‍ि उनका संगठन टीईटी अनिवार्य करने के कोर्ट के फैसले से राहत के लिए सरकार से बात करेगा और दबाव बनाएगा। जो शिक्षक पहले भर्ती हुए थे, वे उस समय के नियमों और सेवा शर्तों के साथ नियुक्ति हुए थे। उनका अधिकार है कि उनकी नौकरी उन्हीं सेवा शर्तों के मुताबिक जारी रहे और उसी पर उन्हें प्रोन्नति दी जाए। उनकी नियुक्ति के समय टीईटी अनिवार्य नहीं था तो अब उसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता।

"शिक्षकों की कई श्रेणियां हैं जो टीईटी के लिए आवेदन ही नहीं कर सकते। जैसे मृतक आश्रित शिक्षक जिन्हें प्रशिक्षण से छूट दी गई थी वो अब टीईटी आवेदन नहीं कर सकते। टीईटी के लिए हर राज्य में आयु सीमा तय है और सीटीईटी के लिए भी आयु सीमा तय है तो जो उस आयु सीमा को पार कर चुके हैं वे भी टीईटी नहीं कर सकते। इंटरमीडिएट के बाद नौकरी पाने वाले और बीएड व बीपीएड उत्तीर्ण शिक्षक भी टीईटी के लिए आवेदन नहीं कर सकते, क्योंकि टीईटी के लिए स्नातक के साथ बीटीसी या डीएलएड होनी चाहिए। इसके लिए टीईटी की नियमावली में संशोधन करना पड़ेगा।" वे आगे कहते हैं।



देशभर में टीचर की शैक्षण‍िक योग्‍यता। सोर्स - UDISEPLUS


“सुप्रीम कोर्ट में जो मामला गया था, उसमें यह था कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कुछ अल्पसंख्यक संस्थान थे। जहां उन्हें टीईटी पास करने के लिए बाध्य किया जा रहा था। ये मांग तो कहीं थी ही नहीं क‍ि पूरे देश के शिक्षकों के ल‍िए टीईटी पास करना है या नहीं। लेकिन पता नहीं क्‍यों कोर्ट ने पूरे देश में इसे जरूरी कर दिया।” बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोज कुमार सवाल उठाते हुए कहते हैं।

वे आगे कहते हें, “वर्ष 2010 में आई एनसीटीई की गाइडलाइन के अनुसार जो लोग शिक्षक हैं या फिर कोई भर्ती प्रक्रिया चल रही है तो उसमें टीईटी परीक्षा नहीं होगी। वह 2001 के नियमों के मुताबिक ही होगी। लेकिन तीन अगस्त, 2017 में केंद्र सरकार ने नियम बदल दिया। सभी राज्यों को एक नोटिस भेजा। लेकिन राज्य की सरकारों ने इस नोटिस का ध्यान नहीं दिया। इस नोटिस में सभी को 2019 तक टीईटी पास करना था। राज्य सरकारों ने ध्यान नहीं दिया, इसलिए टीचर्स का भी इस पर फोकस नहीं रहा।”


राष्‍ट्रव्‍यापी प्रदर्शन की तैयारी

कोर्ट के इस फैसले को लेकर देश के अलग-अलग राज्‍यों में लगातार व‍िरोध प्रदर्शन हो रहा है। उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी में आठ स‍ितंबर को यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन के बैनर तले श‍िक्षकों ने व‍िरोध प्रदर्शन किया। यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन के ज‍िलाध्‍यक्ष आशुतोष कुमार ने कहा क‍ि हम सरकार से 20-25 वर्षों से सेवारत शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा से छूट देने की मांग कर रहे हैं।

उन्‍होंने आगे कहा क‍ि आरटीई अधिनियम 2009 की धारा 23(1) और 23(2) के तहत 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी की आवश्यकता नहीं है। उत्तर प्रदेश में 29 जुलाई 2011 तक नियुक्त शिक्षकों को भी यह छूट मिली हुई है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य कर दिया जो क‍ि गलत फैसला है। हम पूरे प्रदेश में इसके ख‍िलाफ प्रदर्शन करेंगे।

इसी कड़ी में रव‍िवार सात स‍ितंबर को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की रविवार को लखनऊ स्थित शिक्षक भवन में हुई बैठक हुई ज‍िसमें तय क‍िया गया क‍ि 16 सितंबर को प्रदेशभर में प्रदर्शन होगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून में संशोधन के लिए 16 सितंबर को प्रदेश के सभी बीएसए कार्यालयों पर प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही पीएम को संबोधित ज्ञापन डीएम के माध्यम से भेजा जाएगा।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि एक सितंबर के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से शिक्षकों की नौकरी पर आए संकट से सभी दुखी हैं। उन्होंने कहा कि टीईटी को लेकर केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून के क्रम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए निर्णय से देश भर के 20 लाख शिक्षकों के सामने संकट खड़ा हुआ है।

लखनऊ हाई कोर्ट में श‍िक्षा मामलों के वकील प्रशांत त्र‍िपाठी कहते हैं, "वर्ष 2011 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने यह अधिसूचना जारी की थी कि शिक्षक बनने के लिए टीईटी अनिवार्य होगा। इसके विरोध में कई राज्यों के शिक्षकों ने न्यायालय का रुख किया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्णय दिया है कि टीईटी पास किए बिना शिक्षक पद पर बने रहना संभव नहीं होगा।"



राजधानी लखनऊ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख‍िलाफ प्रदर्शन करते श‍िक्षक।


"इस निर्णय ने कई गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। पहले जिन शिक्षकों ने बीएड, जेबीटी, बीटीसी, डीएलएड सहित अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों को शिक्षा हेतु आवश्यक योग्यता मानते हुए पूर्ण किया, अब उन्हें यह महसूस हो रहा है कि उनका समय और संसाधन व्यर्थ चला गया। जबकि देश में व्यापक स्तर पर अभी भी यह धारणा प्रचलित है कि शिक्षक बनने के लिए बीएड आवश्यक है।"

"इसके साथ ही यह निर्णय सरकार के लिए प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षक भर्ती प्रक्रिया तथा कार्य प्रणाली पर पुनर्विचार का एक अवसर प्रस्तुत करता है। यदि उचित रणनीति अपनाई जाए तो शिक्षा प्रणाली में आवश्यक सुधार लाकर इसे अधिक प्रभावी और परिणामकारी बनाया जा सकता है।" प्रशांत आगे कहते हैं।

उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ ने बुधवार 10 स‍ितंबर को उत्‍तर प्रदेश से शिक्षकों द्वार पहले दिन ही 97890 पत्र प्रधानमंत्री के नाम भिजवाया। यह कार्यक्रम 20 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान प्रदेशभर के शिक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की मांग करेंगे।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा कि 55 साल का शिक्षक कैसे परीक्षा पास कर पायेगा। अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाए या अब खुद पढ़े। उन्होंने कहा की केंद्र सरकार के कानून और सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से प्रदेश के काफी शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहराया है। केंद्र सरकार व एनसीटीई चाहे तो शिक्षकों को राहत मिल सकती है। अगर इस समस्या का समाधान नहीं निकलता है तो अक्तूबर में देश भर के शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे।दूसरी ओर एक शिक्षक संगठन की ओर से प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों पर बुधवार को प्रदर्शन कर डीएम के माध्यम से पीएम को ज्ञापन दिया गया।

"आरटीई लागू होने से पहले के शिक्षकों को इससे मुक्त रखा जाए। आरटी ई एक्ट में संशोधन किया जाए। वहीं विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोशिएशन 11 से 25 सितम्बर के बीच पीएम और शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर इस मामले में हस्तक्षेप की अपील करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने हम पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देने के लिए अभियान चलाएंगे। प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने कहा कि संगठन शिक्षकों के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ेगा।" वे आगे कहते हैं।

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