हैदराबाद, मुंबई, मोहाली: एक रिसर्च में यह कहा गया है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से कोरोना वायरस के मामले बढ़ने की आशंका को देखते हुए, कोविड-19 के मामलों की जल्द से जल्द पहचान करने और वायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए यह ज़रूरी है कि भारत में वैश्विक मानकों वाले आरटी-पीसीआर टेस्ट के साथ-साथ रैपिड एंटीजन टेस्ट (RAT, जिसमें 30 मिनट या उससे कम का समय लगता है) की संख्या भी बढ़ा दी जाए।

मैक्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थकेयर मैनेजमेंट की टीमों की ओर से, इंडियन स्कूल ऑफ़ बिजनेस (आईएसबी) और स्वास्थ्य की गैर लाभकारी संस्था (जिसकी फंडिंग रॉकफेलर फाउंडेशन की ओर से की जाती है) पाथ (PATH) में किए गए एक प्रोजेक्ट में पता चला है कि रैपिड टेस्ट की मदद से, आरटी-पीसीआर टेस्टिंग की क्षमता बढ़ाए बिना ही टेस्टिंग का दायरा बढ़ाया जा सकता है। इससे, कम लागत में ज़्यादा पॉजिटिव केस का पता लगाया जा सकता है और संभावित तीसरी लहर को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता है। ये नतीजे मॉडल आधारित विश्लेषण पर आधारित हैं और इनमें अखबारों की रिपोर्ट और सरकारी पोर्टल के डेटा का इस्तेमाल किया जाता है। इस अध्ययन में महाराष्ट्र और पंजाब में अप्रैल और सितंबर 2021 के बीच चलाए गए पायलट प्रोजेक्ट से निकली जानकारी भी शामिल की गई है।

इस अध्ययन में आरटी-पीसीआर और रैपिड टेस्ट के अलग-अलग कॉम्बिनेशन की तुलना की गई है और यह सामने आया कि अगर कोविड-19 के सभी संभावित संक्रमितों का पहले रैपिड टेस्ट किया जाए और जिनमें लक्षण दिखें और फिर भी उनका रैपिड टेस्ट निगेटिव आए केवल उन्हीं का आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जाए, तो यह प्रक्रिया सीधे आरटी-पीसीआर टेस्ट की तुलना में सस्ती, तेज, और प्रभावी है। अगर इस रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है और देशभर में या स्थानीय हॉटस्पॉट में टेस्टिंग की क्षमता बढ़ाई जाती है और उन ग्रामीणों इलाकों में इसका इस्तेमाल किया जाता है जहां आरटी-पीसीआर टेस्टिंग क्षमता कम हो, तो भारत में किसी संभावित लहर की स्थिति में कोरोना के मामलों पर काबू पाया जा सकता है।

कोरोना की दूसरी लहर में, भारत ने टेस्टिंग के मामले में काफी चुनौतियों का सामना किया। जून, 2021 में कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने के समय तक, भारत में 1,000 की जनसंख्या पर कुल 294 टेस्ट किए थे। जबकि अमेरिका में 1,000 पर 1416 टेस्ट और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) में 1,000 पर 2,800 टेस्ट किए गए। हमने अप्रैल 2021 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि भारत में, दूसरी लहर के समय कुछ लोग ऐसे थे जिनमें लक्षण होने के बावजूद उनके टेस्ट नहीं हो पाए, क्योंकि टेस्टिंग क्षमता के साथ-साथ टेस्ट करने वाले लोगों की कमी थी। अगस्त 2021 में ही, एक और रिपोर्ट में हमने बताया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्ट करने के लिए आधारभूत ढांचा ही नहीं मौजूद था। कोरोना की संभावित तीसरी लहर में, टेस्टिंग क्षमता बढ़ाने में कमोबेश इसी तरह की चुनौतियां सामने आएंगी। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ज़रूरी है कि नई लैब बनाई जाएं या अतिरिक्त मशीनें लगाई जाएं। संसाधनों की कमी के चलते यह सब कर पाना काफ़ी मुश्किल हो सकता है। अगर संसाधनों की कमी नहीं भी होती है, तब भी टेस्ट के नतीजे आने में लगने वाला समय ज़्यादा ही रहेगा। रिसर्च में कहा गया है कि ऐसे मामले में जल्दी से कोरोना की जांच करने के लिए रैपिड टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है।

कितने सटीक हैं रैपिड टेस्ट?

आरटी-पीसीआर टेस्ट की तरह ही, ऐंटीजन टेस्ट में भी जांच की जाती है कि शरीर में SARS-CoV-2 वायरस मौजूद है या नहीं। ऐंटीजन टेस्ट में व्यक्ति की नाक से सैंपल लिया जाता है और यह देखा जाता है कि इसमें वे प्रोटीन मौजूद हैं या नहीं, जो SARS-CoV-2 वायरस में या उस पर मौजूद होते हैं। हमने अगस्त 2020 की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि आरटी-पीसीआर टेस्ट में वायरस के जेनेटिक मटेरियल के होने की जांच की जाती है।

ये टेस्ट कितने सही हैं, इसकी जांच करने के लिए शोधार्थी दो चीजों पर ध्यान देते हैं: पहली चीज़ है टेस्ट की संवेदनशीलता या इस बात की संभावना कि टेस्ट में पॉजिटिव सैंपल को सही तरीके से पहचाना जा सकेगा। दूसरी चीज़ है टेस्ट की विशेषता या इस बात की संभावना कि नेगेटिव सैंपल को सही तरीके से पहचाना जा सकेगा।

आरटी-पीसीआर टेस्ट की संवेदनशीलता (लगभग 95%) और विशेषता (लगभग 100%) ज़्यादा है। इसके अलावा, इसकी प्रोसेसिंग में लगने वाला समय तीन से छह घंटे का है। बाकी, सैंपल लाने और टेस्ट की रिपोर्ट देने में भी अतिरिक्त समय लगता है।

वहीं, रैपिड टेस्ट में सैंपल में मौजूद वायरल पार्टिकल्स की मौजूदगी की जांच की जाती है। यह टेस्ट सिर्फ़ 30 मिनट में हो जाता है। टेस्ट में इस्तेमाल की जाने वाली ऐंटीजन टेस्ट किट के हिसाब से इस टेस्ट की विशेषता ज़्यादा (लगभग 100%) लेकिन संवेदनशीलता कम (50% से 90%) होती है।

रैपिड टेस्ट और आरटी-पीसीआर का संयोजन कर सकता है ज़्यादा केस की पहचान

कम संवेदनशीलता वाले टेस्ट (जैसे कि रैपिड टेस्ट) का इस्तेमाल करके, बड़े स्तर पर बार-बार टेस्टिंग करने और नतीजे आने के समय को एक या दो दिन भी कम कर पाने से टेस्टिंग पर महामारी के इस असर को कम किया जाता है। भारत, फ्रांस, अमेरिका और इटली जैसे देशों में किए गए अध्ययन में इस बात की पुष्टि भी हुई है।

आईएसबी और पाथ की रिसर्च टीम ने यह निष्कर्ष भी निकाला है कि देश में कोरोना के प्रसार की स्थिति के हिसाब से भारत इन दोनों टेस्ट के संयोजन को अपना सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोरोना के केस की संख्या बहुत कम है, प्रसार धीमा है और हर पॉजिटिव केस की पहचान की जानी है, तो आरटी-पीसीआर टेस्ट करना ही ठीक है। हालांकि, तेजी से केस बढ़ने यानी कोरोना की दूसरी लहर के जैसी स्थिति आने पर दोनों टेस्ट के संयोजन का इस्तेमाल करने से ज़्यादा केस की पहचान की जा सकेगी। इसी तरह, स्थानीय स्तर के हॉटस्पॉट और अचानक केस आने वाली जगहों पर भी इस तरह के संयोजन काम कर सकते हैं। रैपिड टेस्ट की मदद से उन ग्रामीण और सुदूर इलाकों में भी टेस्टिंग की जा सकती है जहां आरटी-पीसीआर टेस्ट करने की क्षमता कम है।

अशोका यूनिवर्सिटी में भौतिक और जीव विज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन कहते है, "हम रैपिड टेस्ट का इस्तेमाल पर्याप्त संख्या में नहीं कर रहे हैं। इस टेस्ट में तभी कोविड-19 की पहचान हो जाती है जब वह व्यक्ति दूसरों को संक्रमित कर सकने की स्थिति में होता है। वहीं, आरटी-पीसीआर टेस्ट कई बार ज़्यादा प्रभावी होते हैं और व्यक्ति के संक्रमण न फैला सकने की स्थिति में भी पॉजिटिव नतीजे देते हैं।"

आईएसबी और पाथ के शोधार्थियों ने महाराष्ट्र के अहमदनगर और पंजाब के मोहाली में केस की पहचान करने से जुड़ी स्टडी की। इसके लिए, सरकारी स्वास्थ्य विभाग की ओर से टेस्टिंग इकोसिस्टम तैयार किया है, जिसके तहत टेस्टिंग के लिए जगह और लैब टेक्नीशियन उपलब्ध कराए गए। पाथ ने इन टेक्नीशियन को ट्रेनिंग के साथ-साथ तकनीकी मदद, टेस्ट किट और टेस्ट के नतीजों की पुष्टि करने की तकनीक दी। इस स्टडी में मौजूदा आरटी-पीसीआर क्षमता यानी लगभग 600 टेस्ट प्रति दिन प्रति लैब का इस्तेमाल किया गया।

उन्होंने रैपिड टेस्ट और आरटी-पीसीआर के चार अलग-अलग संयोजनों की तुलना की।


शोधार्थियों ने पाया कि 70% आरटी-पीसीआर का इस्तेमाल करके जितने लोगों का टेस्ट किया जा सकता है, रैपिड+आरटी-पीसीआर संयोजन का इस्तेमाल करके उसकी तुलना में 12 गुना ज़्यादा लोगों का टेस्ट किया जा सकता है। वहीं, बेसलाइन की तुलना में छह गुना ज़्यादा लोगों का टेस्ट किया जा सकता है। इससे, लैब पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को कम किया जा सकता है और आरटी-पीसीआर टेस्ट का इस्तेमाल सिर्फ़ उन लोगों के लिए किया जा सकता है जिनमें लक्षण न दिखें और रैपिड टेस्ट में भी उनकी रिपोर्ट निगेटिव हो।


रैपिड+आरटी-पीसीआर संयोजन की संवेदनशीलता 77.8% है और बेसलाइन (81.9%) की तुलना में इसमें 77.8% केस सही पाए जाते हैं। संवेदनशीलता में कमी होने के बावजूद यह एल्गोरिदम ज़्यादा पॉजिटिव केस की पहचान कर सकता है। 70% आरटी-पीसीआर की तुलना में यह संयोजन 11 गुना ज़्यादा और बेसलाइन की तुलना में पांच गुना ज़्यादा टेस्ट की पहचान करता है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि नए जमाने की रैपिड टेस्ट किट का इस्तेमाल करने पर इसकी संवेदनशीलता को 81.9% तक बढ़ाया जा सकता है।


प्रोफेसर मेनन कहते हैं कि रैपिड टेस्ट की कम संवेदनशीलता की भरपाई ज़्यादा टेस्ट करके की जा सकती है।

रैपिड+आरटी-पीसीआर संयोजन में ज़्यादातर लोग यानी लगभग 94.4% के सही नतीजे सामने आते हैं। वहीं, 70% आरटी-पीसीआर में 30% और बेसलाइन में 66% के सही नतीजे सामने आते हैं।

प्रोफेसर मेनन कहते हैं, "हॉटस्पॉट में रैपिड टेस्ट का इस्तेमाल करके जिन लोगों में वायरस है और जिनमें नहीं है, उन लोगों जल्द से जल्द अलग किया जा सकता है।" वह आगे कहते हैं कि कोरोना की लहर को संभालने के लिए यह तरीका कारगर है। वह दिल्ली का उदाहरण भी देते हैं, जहां दूसरी लहर के समय आरटी-पीसीआर टेस्ट के नतीजे आने में 3-4 दिन का समय लग रहा था।


आरटी-पीसीआर टेस्ट और रैपिड टेस्ट में क्रमश: 500 रुपये और 150 रुपये (पुरानी स्टडी और पायलट प्रोजेक्ट पर काम करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक) का खर्च आता है। रैपिड+आरटी-पीसीआर के संयोजन में सिर्फ़ 178 रुपये का खर्च आता है, जबकि 70% आरटी-पीसीआर में 395 रुपये और बेसलाइन टेस्ट में 268 रुपये का खर्च आता है।


वहीं, रैपिड+आरटी-पीसीआर एल्गोरिदम के कुछ संयोजनों के नतीजे बहुत बुरे रहे और उनमें पॉजिटिव केस की पहचान बहुत कम संख्या रही और इसकी लागत भी ज्यादा रही। इन एल्गोरिदम में सिर्फ़ लक्षण वाले रैपिड-निगेटिव लोगों के बजाय सभी रैपिड-निगेटिव लोगों का आरटी-पीसीआर टेस्ट करना और हर किसी का सीधे आरटी-पीसीआर टेस्ट करना शामिल है।

टेस्टिंग के बारे में भारत की रणनीति

अगस्त 2020 तक, भारत में किए जाने वाले कुल टेस्ट का 85% सिर्फ़ आरटी-पीसीआर से किया जा रहा था। भारत सरकार, अलग-अलग टेस्टिंग के अलग-अलग आंकड़े जारी नहीं करती है। नवंबर 2020, की एक प्रेस रिलीज में कहा गया था कि 46% टेस्ट आरटी-पीसीआर का इस्तेमाल करके और 49% टेस्ट रैपिड टेस्ट का इस्तेमाल करके किए गए थे। हमने टेस्टिंग के अलग-अलग डेटा के बारे में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) से संपर्क किया है। जानकारी मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा।

मार्च 2021 में केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा था कि कुल टेस्ट में से कम से कम 70% टेस्ट आरटी-पीसीआर से किए जाएं। मार्च 2021 में, आईसीएमआर ने सलाह दी थी कि रैपिड टेस्ट का इस्तेमाल किया जाए, ताकि दूसरी लहर की वजह से टेस्टिंग क्षमता पर जो असर पड़ रहा है उसे कम किया जा सके। इससे, स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं को बढ़ाया जा सकेगा और सामुदायिक केंद्रों और दफ्तरों में टेस्टिंग बूथ बनाए जा सकेंगे। आईसीएमआर ने यह भी कहा था, "15-30 मिनट में टेस्ट के नतीजे आने से, जल्द से जल्द कोरोना मरीजों की पहचान की सकती है और संक्रमण को रोकते हुए मरीज को आइसोलेट करके उनका इलाज किया जा सकता है।"

सितंबर 2020 से आईसीएमआर की गाइडलाइन में कहा गया था कि हॉटस्पॉट वाली जगहों पर रूटीन सर्विलांस और बिना लक्षण वाले लोगों के रैपिड टेस्ट नेगेटिव आने पर उनका आरटी-पीसीआर भी किया जाना चाहिए।

तेज गति से कोरोना के केस बढ़ने की हालत में रैपिड टेस्टिंग बढ़ाने को लेकर हमने आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय से सवाल पूछे हैं, जवाब आने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा।


भारत के राज्यों में टेस्टिंग को लेकर कोई तय मानक नहीं है और राज्य अपनी रणनीति खुद तय कर सकते हैं। इसी की वजह से, एक ही राज्य के अलग-अलग जिलों में टेस्ट का इस्तेमाल करने को लेकर अलग-अलग नियम हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, रिसर्च प्रोजेक्ट की एक एक्सरसाइज में टेस्टिंग केंद्र सिर्फ़ रैपिड टेस्ट पर निर्भर था, क्योंकि वहां आरटी-पीसीआर टेस्ट की संख्या पर्याप्त नहीं थी।

रिसर्च में यह भी पता चला कि सामान्य तौर पर, संसाधनों की उपलब्धता और मानदंड तय करने के लिए, वही तरीके इस्तेमाल किए जा रहे थे जो प्रचलन में थे। एक और चीज़ अहम थी कि टेस्ट कराने वाले लोग खुद चुन सकते थे कि उन्हें आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाना है या रैपिड टेस्ट।

रैपिड टेस्ट की चुनौतियां

वैसे तो दोनों तरह के टेस्ट का संयोजन, किसी एक तरह के टेस्ट से ज़्यादा प्रभावी होगा लेकिन इसे लागू कर पाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य केंद्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोरोना के सभी संदिग्धों का रैपिड टेस्ट हो और बिना लक्षण वाले उन लोगों का दोबारा टेस्ट किया जाए जिनका रैपिड टेस्ट निगेटिव आया हो।

रैपिड टेस्ट केंद्रों पर, आरटी-पीसीआर लैब से कोऑर्डिनेशन करने के लिए, संक्रमण रोकने से जुड़ी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित किए गए ज़्यादा लोगों की ज़रूरत होगी। पायलट प्रोजेक्ट के अध्ययन के हिसाब से विशेषज्ञों ने कहा कि इसके लिए, दो स्वैब लेने की रणनीति पर काम करना होगा। इसके तहत, पहला सैंपल रैपिड टेस्ट के लिए और दूसरा टेस्ट आरटी-पीसीआर के लिए लेना होगा।

इसके अलावा, सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर रैपिड टेस्ट किट की ज़्यादा से ज़्यादा संख्या उपलब्ध करानी होगी, ताकि सभी संदिग्धों का रैपिड टेस्ट किया जा सके। इसके साथ ही, लैब में ज़्यादा संवेदनशीलता वाली नई रैपिड टेस्ट किट की ज़रूरत होगी। इन किट को खरीदने में ज़्यादा समय लग सकता है।

साथ ही, यह एल्गोरिदम हर स्थिति में काम नहीं कर सकती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई राज्य ज़्यादा केस की पहचान करने की बजाय, एक भी पॉजिटिव केस को न छोड़ने की रणनीति पर काम करना चाहता है, तो वहां पर दूसरे एल्गोरिदम का इस्तेमाल करना ही ज़्यादा कारगर होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह है कि कोविड-19 का संक्रमण कम होने की स्थिति में रैपिड टेस्ट न किए जाएं।