लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 265 क‍िलोमीटर दूर ज‍िला पीलीभीत के बरखेड़ा में रहने वाले क‍िसान गुरदीप सिंह हर साल लगभग दो एकड़ खेत में धान लगाते हैं। लेक‍िन इस वर्ष बार‍िश की स्‍थि‍त‍ि देखकर वे परेशान हैं।

“जून बीत गया, जुलाई भी लगभग खत्‍म। लेक‍िन खेतों में पानी ही नहीं है। इस तराई वाले क्षेत्र में ब‍िजली भी इतनी नहीं आ रही क‍ि दो एकड़ में पानी लगाकर धान की खेती हो सके। बेहन (धान का छोटा पौधा) तैयार है। अच्‍छी बार‍िश के इंताजर में बुवाई प‍िछड़ चुकी है। लग रहा जैसे क‍ि इस साल धान का रकबा कम करना होगा।”

उत्तर प्रदेश की तराई में बसे इस ज‍िले में एक जून से 27 जुलाई के बीच महज 22 फीसदी ही बार‍िश हुई है। इस ल‍िस्‍ट में बस पीलीभीत ही नहीं है। प्रदेश के लगभग आठ ज‍िले, देवर‍िया, कुशीनगर, मऊ, संत कबीरनगर, पीलीभीत, शामली, गौतमबुद्ध नगर और गाज‍ियाबाद ऐसे हैं जहां बार‍िश सामान्‍य से बहुत कम (60 से 99% कम) हुई है जबकि 31 ज‍िले ऐसे हैं जहां कम बार‍िश (20 से 59% कम) हुई है। मतलब प्रदेश के लगभग आधे ज‍िलों में बार‍िश की स्‍थ‍ित‍ि बहुत अच्‍छी नहीं है। ऐसे में जहां बार‍िश कम हुई है, वहां खरीफ फसलों की बुवाई प्रभाव‍ित हो रही है।

राज्य में हुई कम बारिश की वजह से कृषि विभाग भी चिंत‍ित है। एक अध‍िकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया क‍ि कृषि विभाग ने सिंचाई और ऊर्जा विभाग से किसानों की मदद की अपील की है। अपील में कहा गया है क‍ि क‍िसानों को नुकसान न हो, इसके ल‍िए पानी और ब‍िजली की पयाप्‍त व्‍यवस्‍था करनी होगी। कृषि विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि 31 जुलाई तक बारिश सामान्य नहीं हुई, तो कई जिलों को सूखा प्रभावित घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) किसी क्षेत्र में सूखे को तब परिभाषित करता है जब उस क्षेत्र में वर्षा की कमी उसके दीर्घकालिक सामान्य से ≥26% हो। कमी 26 से 50% और 50% से अधिक होने के आधार पर इसे मध्यम और गंभीर सूखे में वर्गीकृत किया जाता है। पूरे देश के लिए, 88 सेमी सामान्य क्षेत्र-भारित वर्षा, जिसे भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) भी कहा जाता है, पर विचार किया जाता है। जब वर्षा की कमी 10% से अधिक हो जाती है और जब सूखे के अधीन क्षेत्र देश के कुल मैदानी क्षेत्र (जो कि 32,87,782 वर्ग किमी है) के 20% से अधिक हो जाता है, तो ऐसी स्थिति को पूरे देश के लिए सूखा माना जाता है।

पूर्वांचल में हाल बुरा

बात जब बहुत कम (60 से 99% कम) या कम बार‍िश (20 से 59% कम) वाले ज‍िलों की करेंगे तो उनमें पूर्वांचल के ज‍िले सबसे ज्‍यादा हैं। देवर‍िया में अब तक सबसे कम महज 7% ही बार‍िश हुई। बहुत कम बार‍िश वाली ल‍िस्‍ट में पूर्वांचल के पांच ज‍िले हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) मेंमौसम वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, आमतौर पर मानसून ट्रफ लाइन दो दिशाओं से चलने वाली हवाओं के संतुलन पर टिकी रहती है। लेकिन इस बार पूर्वी दिशा (पुरवा) की हवा ज्यादा प्रभावशाली रही, जिससे मानसूनी ट्रफ दक्षिण की ओर खिसक गई। नतीजा यह हुआ कि जो बादल पूर्वांचल की ओर बढ़ रहे थे, वे रास्ता बदलकर मध्य प्रदेश, गुजरात और हिमालयी इलाकों की तरफ निकल गए। इसके अलावा पूर्वांचल और उसके आसपास हरियाली की कमी भी एक अहम कारण बनी, जिससे वर्षा के लिए अनुकूल स्थितियां और कमजोर पड़ गईं।

संत कबीरनगर में इस वर्ष अब तक महज 33% ही बार‍िश हुई है। ऐसे में मेंहदावल के विधायक अनिल कुमार त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जिले को सूखा ग्रस्त घोषित करने की मांग की है।

वे कहते हैं, “जिले में अब तक सामान्य से बहुत कम बार‍िश हुई है। ऐसे में ज‍िले के क‍िसान संकट में हैं। खरीफ की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है। किसानों को सिंचाई के लिए मोटर पंप और विद्युत कनेक्शन पर निर्भर रहना पड़ रहा है। स्थित यह हो गई है कि सिंचाई के साथ ही पीने का पानी की भी किल्लत हो रही है। इन परिस्थितियों में जिले को तत्काल सूखाग्रस्त घोषित किया जाए, ताकि शासन स्तर से सभी राहत योजनाएं लागू हो सके।”


जौनपुर के किसान प्रमोद म‍िश्रा कहते हैं कि बारिश न होने की वजह से वे अपने खेत में अब तक सिर्फ दो बीघा (1.23 एकड़) में ही धान की रोपाई कर पाए हैं, जबकि हम हर साल लगभग दस बीघा (6.19 एकड़) में रोपाई करते थे। ब‍िजली की व्‍यवस्‍था भी बहुत अच्‍छी नहीं है। आजमगढ़ के संतोष चौबे और देवरिया के ह‍िमांशु कुमार भी बताते हैं क‍ि उनके खेत अभी तक खाली है। मौसम साथ नहीं दे रहा।

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्‍या में मौसम वैज्ञानिक डॉ. अमरनाथ मिश्रा कहते हैं क‍ि मानसून की सक्रियता कमजोर है। इसके पीछे कई अलग- अलग कारण हैं। कहीं नमी ज्यादा है तो कहीं हवाओं का रूख तेज है। जिन जिलों में 40 फीसदी से कम बारिश है, वहां स्थिति सामान्य हो पाएगी, इस पर संशय है। हालांकि अन्य जिलों में पर्याप्त बारिश हुई है।

बुंदेलखंड में खूब बरस रहे बदरा

दूसरी ओर उम्‍मीदों के व‍िपरीत इस मानसून में अब तक बुंदेलखंड के ज‍िलों में खूब बार‍िश हुई है। महोबा, ललितपुर जैसे ज‍िलों में बार‍िश अब तक सामान्‍य से लगभग 150% से ज्‍यादा हो चुकी है। चित्रकूट, बांदा, ललितपुर इलाको में लगातार हो रही बारिश से ज्यादातर डैम पानी से लबालब हो गए हैं। अब तक 23 बांध भर चुके हैं। इस वजह से इन बांधों के सभी गेट खोलने पड़े हैं। क्षेत्र के कई ज‍िलों में ज्‍यादा बार‍िश की वजह से खेतों में बुवाई तक नहीं हो पाई है।

ललि‍तपुर स्‍थ‍ित कृषि विज्ञान केंद्र खिरियामिश्र जखौरा में वर‍िष्‍ठ वैज्ञा‍निक डॉक्‍टर द‍िनेश त‍िवारी बताते हैं क‍ि प‍िछले 15 वर्षें में पहली बार ऐसा हुआ है क‍ि क्षेत्र के लगभग सभी बांध पूरी तरह से भर चुके हैं।

ज‍िन ज‍िलों में अच्‍छी बार‍िश हुई है, वहां धान की बुवाई हो रही है। फोटो- म‍िथ‍िलेश धर दुबे

“ज‍िले में इस साल अब तक खूब बार‍िश हूई है। लगातार हो रही बार‍िश से अब बुवाई नहीं हो पा रही है क्‍योंक‍ि बेहन के खेतों में पानी बहुत ज्‍यादा तो धान की बोवनी प्रभाव‍ित हो रही है। खरीफ की दूसरी फसलें भी पानी रुकने के बाद ही लग पाएंगी।” डॉक्‍टर द‍िनेश बताते हैं।

जिन किसानों ने बीज बो दिए थे, और जिन क्षेत्रों में दो से तीन दिन तक लगातार बारिश हुई है, वहां बीज सड़ने और फसल चौपट होने की आशंका ज्‍यादा है। वे आगे बताते हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि पहले से ही पानी की कमी वाला यह क्षेत्र कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे बढ़ता तापमान, कम दिनों में अधिक बार‍िश जिसकी वजह से पानी बह जा रहा और उसका संचयन नहीं हो पा रहा था। इसके अलावा मौजूदा भूजल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग और कुप्रबंधन भी एक चुनौती है। लेक‍िन इस बार ज्‍यादा बार‍िश से कई तरह के बदलाव मुमकिन हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान द्वारा जारी बुंदेलखंड सूखा रिपोर्ट (सागर और झांसी जिलों को छोड़कर) के अनुसार, बुंदेलखंड की लगभग 60% आबादी या तो किसान या मजदूर के रूप में कृषि पर निर्भर है। इस क्षेत्र में जल संसाधन सीमित थे, जबकि बार-बार और लगातार सूखे के कारण वर्षा आधारित कृषि अनिश्चित थी।

हाल के दशकों में पानी की बढ़ती उपलब्धता और अन्य कारकों के कारण बाजरे की खेती से नकदी फसलों की ओर रुझान बढ़ा है । इंडियन जर्नल ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में 2000 से 2020 के बीच प्रमुख बाजरे के क्षेत्रफल, उत्पादन और उत्पादकता के आंकड़ों का विश्लेषण करके इस गिरावट की पुष्टि की गई है ।

बुंदेलखंड में बार‍िश की वजह क्‍या है? इस पर आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्‍या में एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. एके सिंह कहते हैं, “इस समय मध्य-पश्चिम भारत में बारिश खूब हो रही है। मध्य प्रदेश में बहुत अच्छी बारिश है। प्रदेश के मध्य प्रदेश से सटे बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के कई जिलों तक उसका असर है। मानसून तो सक्रिय है। लेकिन कई हवा का दबाव सहित स्थानीय कारणों की वजह से ऐसा होता है। फिलहाल आने वाले कुछ दिन प्रदेश के दूसरे भागों में लगातार बारिश का अनुमान नहीं है। ऐसे में हालात सुधरेंगे।

वे यह भी कहते हैं क‍ि कभी बुंदेलखंड की पहचान सूखे की वजह से होती थी। लेक‍िन हाल के वर्षों में यहां क‍ि किसानों ने कम पानी वाले फसलों की ओर रुख क‍िया है। लेक‍िन इस साल जो बार‍िश हुई, इसका क्‍या असर होगा, ये देखने वाली बात होगी।

खरीफ की बुवाई प्रभावित

ज‍िन ज‍िलों में पर्याप्‍त बा‍र‍िश नहीं हुई है, वहां खरीफ की बुवाई प्रभावित हुई है। खरीफ में धान की खेती सबसे ज्‍यादा होती है। ऐसे में जो क‍िसान धान की बुवाई करना चाह रहे हैं, उन्‍हें डीजल से सिंचाई करनी पड़ी है ज‍िससे लागत बढ़ रही है।

महाराजगंज ज‍िले में रहने वाले क‍िसान प्रमोद कुमार बताते हैं क‍ि उन्‍होंने लगभग एक एकड़ खेत में डीजल मशीन से सिंचाई की ज‍िससे उनकी लागत लगभग 20 फीसदी बढ़ जायेगी। एक एकड़ का बेहन बाकी है। वे इसे अब बार‍िश के बाद ही लाएंगे।

“हर साल हम जुलाई के पहले सप्‍ताह तक हम धान लगा देते थे। लेक‍िन इस फसल 15 द‍िन लेट हो चुकी है। ऐसे में अब अगर आगे बार‍िश नहीं हुई तो फसल जलने (पौधों के मरने) का डर रहेगा। हमें कुछ बारिश का इंतजार है। देरी का असर बुआई के अगले चक्र पर पड़ेगा क्योंकि हमारे पास तैयारी के लिए समय नहीं होगा।” वे आगे कहते हैं।

कृषि व‍िभाग से म‍िली जानकारी के अनुसार प्रदेश में इस साल धान की 99% नर्सरी तैयार की जा चुकी है, लेकिन खेतों में पानी की भारी कमी के कारण अब तक केवल 65% रोपाई ही हो सकी है। अन्य फसलों का हाल भी चिंताजनक है। मक्का 62%, बाजरा 32%, अरहर 52%, मूंगफली 31%, और तिल की कुल बुवाई लक्ष्‍य के सापेक्ष 54% ही हो पाई है।

प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने इंड‍िया स्‍पेंड को बताया क‍ि जिन जिलों में बारिश बेहद कम हुई है, वहां बिजली की आपूर्ति दुरुस्त रखने, ट्यूबवेल और नहरों के जरिए पानी पहुंचाने के प्रयास तेज़ किए जा रहे हैं। किसानों को हर संभव मदद दी जाएगी। 31 जुलाई तक इंतजार करते हैं। फिर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।