नई द‍िल्‍ली। दिल्ली, जिसे 'दिल वालों की दिल्ली' कहा जाता है, साल-दर-साल हज़ारों प्रवासियों को अपनी ओर खींचती रही है। छात्र हों या पेशेवर, कई लोग अकेले और कुछ परिवार के साथ यहाँ आकर इसे अपना घर बना लेते हैं। बेहतरीन विश्वविद्यालयों से लेकर रोज़गार के अवसरों तक, राष्ट्रीय राजधानी हमेशा से सामाजिक प्रगति और गतिशीलता का केंद्र रही है। यहाँ का किराया लंबे समय तक अपेक्षाकृत किफ़ायती रहा है, जिसके कारण लोग दिल्ली आकर बस जाते थे और खुद को 'दिल्लीवाला' मानने लगते थे।

लेकिन हालात अब बदल रहे हैं। पिछले एक साल में दिल्ली धीरे-धीरे आवास संकट की चपेट में आ गई है। किराए लगातार बढ़ रहे हैं और लोगों के लिए शहर में एक छत का इंतज़ाम करना मुश्किल होता जा रहा है। एएनएरॉक समूह की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और अन्य छह बड़े भारतीय शहरों में पिछले छह सालों में किराए में करीब 70% की बढ़ोतरी हुई है। सबसे तेज़ बढ़ोतरी पिछले दो साल में दर्ज की गई है, जिसने दिल्ली को किरायेदारों के लिए सबसे महंगे शहरों में ला खड़ा किया है।

दिल्ली में युवाओं के लिए इस संकट का क्या मतलब है, इसे समझने के लिए हम तीन अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले प्रवासी युवाओं की ज़िंदगी में झाँकते हैं। उनकी कहानियाँ भले अलग हों, लेकिन किराए की मार और रहने की जद्दोजहद ने सबको एक जैसी मुश्किलों में ला खड़ा किया है।

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