गोरखपुर, उत्‍तर प्रदेश: “अमृत सरोवर विकसित करने के लिए मनरेगा से करीब 30 लाख बजट के तहत काम शुरू हुआ था। निर्माण स्थल पर पानी भर जाने के कारण काम पूरा नहीं हो सका है। पांच फेज में यह कार्य पूरा किया जाना है, अभी एक फेज का काम भी पूरा नहीं हुआ है। काम पूरा होने के बाद सूचना बोर्ड लगवा दिया जाएगा। सीवरेज पानी के निस्तारण के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना तैयार की है।”

गोरखपुर के पिपरौली ब्लॉक स्थित भिलोरा गाँव के प्रधान प्रतिनिधि अमित ने गाँव में अधूरे पड़े अमृत सरोवर की वर्तमान स्थिति का कारण पूछने पर यह प्रतिक्रिया दी। यहाँ अमृत सरोवर का चयन सवालों के घेरे में है। तालाब चारों तरफ से पानी से घिरा है। अर्धनिर्मित तटबंध तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है। तालाब का क्षेत्रफल 16.8 एकड़ है। मौके पर अमृत सरोवर विकसित करने का कार्य भले ही अधूरा हो। लेकिन कागजों में इसे पूरा दिखाया गया है। भिलोरा गाँव गोरखपुर मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर है।

पिपरौली ब्लॉक के ही बनौड़ा ग्राम में मिशन अमृत सरोवर के तहत विकसित तालाब के तटबंध का इंटरलॉकिंग कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो चुका है। सीमेंट के बने बेंच भी ख़स्ता हालत में हैं। तालाब में ही विद्युत केबल टूटकर गिरा हुआ है। तटबंध के इंटरलॉकिंग पर इतनी झाड़ियाँ हैं कि पैदल चलने के लिए भी जगह नहीं है। सरोवर की स्थिति के बारे में ग्राम प्रधान से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत 24 अप्रैल 2022 को अमृत सरोवर मिशन की घोषणा की थी। योजना के तहत भूजल की कमी को दूर करने के लिए देश के प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवरों का निर्माण किया जाना था। देश में भूजल के स्तर में सुधार के लिए इस योजना को ठीक से लागू करने की प्‍लान था। लेकिन इसे लेकर ग्राम प्रधानों की परंपरागत कार्यशैली सवालों के घेरे में है।

भूजल की कमी को लेकर प्रधानमंत्री की चिंता जायज है। ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रूप की एक रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ग्राउंड वाटर इन उत्तर प्रदेश’ के अनुसार भूजल दोहन के मामले में पूरे देश में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। पूरे देश में जितना भूजल का दोहन किया जाता है उसका 18.4 प्रतिशत ( 45.85 बिलियन क्यूबिक मीटर) केवल उत्तर प्रदेश में किया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार भूजल के इस्तेमाल से 70 फ़ीसदी खेतों की सिंचाई की जाती है, घरों में पीने के पानी की आपूर्ति शहरों में 75 से 80 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 90 से 95 प्रतिशत उपयोग की जाती है। वहीं आधारभूत व्यावसायिक गतिविधियों में 95 प्रतिशत से अधिक भूजल का उपयोग किया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद योजना के अनुपालन के उद्देश्य से केन्द्र सरकार के आदेश के क्रम में उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सभी ज़िलाधिकारियों और जिला कार्यक्रम समन्वयक (मनरेगा) को पत्र लिखकर प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में 75 और प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक अमृत सरोवर को विकसित करने का लक्ष्य पूरा करने को कहा।

पत्र में 6,000 अमृत सरोवरों को चिन्हित कर रिपोर्ट अपलोड करने को कहा गया था। प्रत्येक जिला पंचायतों को 5 अमृत सरोवरों का निर्माण करने और प्रत्येक क्षेत्र पंचायत को अपने विकास खंड में कम से कम 3 अमृत सरोवरों का विकास करने को कहा गया है। सभी अमृत सरोवरों के रखरखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी गई थी। पहले अमृत सरोवर को 15 अगस्त 2023 तक विकसित करने को कहा गया था।

27 अप्रैल 2022 को उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सभी ज़िलाधिकारियों और कार्यक्रम समन्वयक ( मनरेगा ) को पत्र लिखा। पत्र के अनुसार अमृत सरोवर के तट पर पेड़ पौधे लगाये जाएँ। साथ ही सुनिश्चित किया जाए कि सरोवर में गाँव की गलियों से होता हुआ गंदा पानी नहीं पहुँचे। अमृत सरोवर में सीवेज का पानी नहीं जाए इसके लिए डायवर्जन नाली आदि का निर्माण करवाया जाएगा।

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी प्रत्येक ग्राम पंचायतों में 2-2 तालाबों का निर्माण करवाने की घोषणा की है। प्रदेश में 58,189 ग्राम पंचायतें हैं प्रदेश के उप मुख्यमंत्री के प्रत्येक पंचायतों में दो-दो सरोवरों के विकसित करने की घोषणा के बाद अब प्रदेश में 1,16,378 सरोवर बनाये जाने का लक्ष्य तय किया गया है।

उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के पटवाई में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने देश के पहले अमृत सरोवर का उद्घाटन किया था।

अमृत सरोवर विकसित करने के लिए केन्द्र सरकार ने 6 मंत्रालयों ( ग्राम्य विकास विभाग, भूमि संसाधन विभाग, पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल संसाधन विभाग, पंचायती राज मंत्रालय और वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ) को इसे पूरा करने की जिम्मेदारी दी है। भास्कराचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग और भू-सूचना विकास संस्थान ( बीआईएसएएजी-एन ) को मिशन की तकनीकी जिेम्मेदारी सौंपी गई है।

सरोवर विकसित करने में की जा रही नियमों की अनदेखी

केन्द्र सरकार के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरोवर विकसित करने का निर्णय लिया था। बाद में उत्‍तर प्रदेश सरकार ने ने प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक की बजाए 2-2 तालाबों को विकसित करने का लक्ष्य रख दिया। प्रदेश में 58,194 ग्राम पंचायतें हैं। अत: प्रदेश में 1 लाख 20 हजार अमृत सरोवर विकसित करने का लक्ष्य तय किया गया। हालाँकि अभी तक
14,954
ही विकसित किए जा सके हैं। उपमुख्यमंत्री ने सरोवरों को विकसित करने का लक्ष्य एक वर्ष बढ़ाकर समय सीमा को 15 अगस्त 2024 कर दिया है।

पीआईबी ने 19 अगस्त 2023 को प्रेस रिलीज़ जारी कर बताया कि 8 राज्यों के कुछ जिलों में प्रति जिले 75 अमृत सरोवरों का लक्ष्य प्राप्त करना अभी भी बाकी है।

धनौड़ा गांव में अमृत सरोवर के किनारे बने तटबंध का टूटा हुआ इंटरलॉकिंग।

पिपरौली ब्लॉक के तहत 63 गाँव आते हैं। पिपरौली की बीडीओ के अनुसार फिर भी यहाँ मात्र 19 सरोवर विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। 16 का निर्माण पूरा हो चुका है और 3 अभी भी निर्माणाधीन हैं। जबकि गाइडलाइन स्पष्ट तौर पर कहती है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरोवर विकसित किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में प्रत्येक ग्राम पंचायत में 2 सरोवर विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है।

उक्त सवाल का जवाब देते हुए पिपरौली की बीडीओ कविता अवस्थी कहती हैं “नियमों में बदलाव किया गया है। इस बदलाव के तहत जिन ग्राम पंचायतों में मिशन अमृत सरोवर के मानकों को पूरा करने वाले तालाब नहीं मिले हैं उन्हें छोड़ दिया गया है। केवल मानक पूरा करने वाले ग्राम पंचायतों में ही सरोवर विकसित किए जा रहे हैं।”

अमटौरा गांव के प्रधान प्रतिनिधि मोनू शर्मा ने बताया क‍ि पिपरौली ब्लॉक के गाँव अमटौरा को अमृत सरोवर विकसित करने के लिए मात्र 5 लाख रूपये का बजट दिया गया है। पूरा तालाब जलकुंभी से भरा पड़ा है। योजना के तहत तालाब में अभी तक मात्र सीढ़ियों का ही निर्माण करवाया गया है। 5 लाख रुपये में से 1.99 लाख रुपये जारी किए गए हैं।

गाइडलाइन का उल्लंघन करते हुए तटबंध निर्माण, जल की सफ़ाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। मोनू बताते हैं “मैंने माँग की थी कि पूरा तटबंध निर्मित करने की राशि आवंटित की जाए ताकि तालाब का सौंदर्यीकरण किया जा सके। यह कहते हुए मना कर दिया गया कि पिछले प्रधान के कार्यकाल में उक्त तालाब में कुछ कार्य करवाये गए हैं। जो सीढ़ी निर्मित किया गया है वह भी पर्याप्त नहीं है।”

भिलोरा गाँव में मिशन अमृत सरोवर के तहत सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू किया गया था। बरसात में पानी भरने के कारण काम पूरा नहीं किया गया है। मिशन अमृत सरोवर की गाइडलाइन के प्रतिकूल चारों तरफ से पानी से घिरे स्थल का चुनाव किया गया है। कई घरों के सीवरेज का पानी भी सरोवर में जा रहा है और योजना के बारे में जानकारी देने के लिए आवश्यक सूचना बोर्ड भी नहीं लगाया गया है।

मिशन अमृत सरोवर की गाइडलाइन का बिंदु 6.3.11 कहता है कि प्रत्येक अमृत सरोवर पर एक सूचना बोर्ड लगाया जाएगा, जिसमें कार्य से संबंधित सभी जानकारी जनता को उपलब्ध होगी। सूचना बोर्ड में मानक आकार (5 फ़ीट ऊँचाई और 4 फीट चौड़ाई) और एक कॉमन लोगों का सामान्य साइनेज बोर्ड होगा।

बिन्दु 6.3.3 स्थल चयन को लेकर बताता है 1-जल निकासी के माध्यम से वर्षा जल की उपलब्धता होनी चाहिए। 2- आवासीय क्षेत्रों और निर्माण कार्यों से दूरी का ध्यान रखते हुए सरोवर का निर्माण स्थल चयन किया जाना चाहिए। भिलोरा के अमृत सरोवर में जल निकासी के उचित इंतजाम नहीं है और आवासीय क्षेत्रों और निर्माण कार्यों से उचित दूरी भी नहीं है।

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने 27 अप्रैल 2022 को सभी जिलाधिकारियों को मिशन अमृत सरोवर को लेकर एक पत्र लिखा था। पत्र के बिन्दु 4 में हिदायत दी गई थी “अमृत सरोवर में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी दशा में गाँव की नालियों से होता हुआ गंदा पानी नहीं पहुँचे। अमृत सरोवर में गंदा जल ना जाये इसके लिए यथा आवश्यक डायवर्जन नाली आदि का निर्माण किया जाएगा।”

अमटौरा गांव में जलकुंभी से अटा पड़ा अमृत सरोवर।

अपर मुख्य सचिव के पत्र का बिन्दु 6 कहता है “सरोवर के तटबंध पर आवश्यकतानुसार वॉकिंग पथ विकसित किया जाएगा एवं उचित स्थान पर बेंच की भी स्थापना की जाएगी ताकि सुबह-शाम सैर करने के लिए ग्रामीण इसका प्रयोग कर सकें। अमृत सरोवरों में आवश्यक लंबाई में एवं उचित गहराई तक सीढ़ियों का निर्माण भी किया जाएगा।” भिलोरा के अमृत सरोवर पर ना तो तटबंध दिखाई दिया और नहीं कोई सीढ़ी।

गाइडलाइन का बिन्दु 6.3.5 कहता है “तकनीकी और प्रशासनिक दोनों तरह की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक दोनों अधिकारियों की संयुक्त टीमों द्वारा ऐसी प्रत्येक साइट का दौरा किया जावेगा।” सवाल उठता है कि क्या टीम ने भिलोरा, धनौड़ा और अमटौरा गाँवों का दौरा किया था? यदि तो हाँ तो हालात बेहतर क्यों नहीं हैं?

तालाबों और जलीय स्त्रोतों के प्रति उदासीन रही है सरकार

अमृत सरोवर मिशन की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री ने भूजल स्रोतों के महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया था। सरकार की तरफ से प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण में अमृत सरोवर मिशन को दूरगामी प्रभावी योजना के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। उत्तर प्रदेश सरकार भी प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति अपनी संवेदनशीलता जगज़ाहिर करने लगी। हालांकि तथ्यों पर गौर किया जाए तो सरकार के दावे हक़ीक़त से मेल नहीं खाते हैं।

लोकसभा में सांसद वरूण गांधी के सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 19 मार्च 2020 को बताया “देश की कुल 6,881 आंकलन यूनिटों ( ब्लॉक, तालुकों, मंडलों, वाटरशेडों, फिरकों ) में से 17 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 1,186 यूनिटों को ‘अतिदोहित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहाँ पर वार्षिक भूजल निकासी, वार्षिक निकास योग्य भूजल संसाधनों से अधिक है। 313 यूनिटों को ‘गंभीर’ के रूप में, 972 यूनिटों को अर्धगंभीर के रूप में 4,310 यूनिटों को ‘सुरक्षित’ और 100 यूनिटों को ‘लवणता’ के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है।”

अगले पैराग्राफ में जल शक्ति मंत्री ने स्वीकार किया “दीर्घावधि के आधार पर जलस्तर में कमी का आंकलन करने की दृष्टि से पूर्व मानसून 2019 के दौरान सीजीडब्ल्यूबी द्वारा एकत्र किए गए पूर्व मानसून जलस्तर आंकड़ों की दशकीय औसत ( 2009-2018 ) के साथ तुलना की गई है। जलस्तर आंकड़ों का विश्लेषण दर्शाता है कि भूजल स्तरों में मॉनीटर किए गए लगभग 61 प्रतिशत कुओं में कमी रजिस्टर की गई है जो कि अधिकांश 0-2 मीटर की रेंज में हैं।”

वाटरमैन ऑफ बुंदेलखंड नाम से चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह कहते हैं “अमृत सरोवर योजना को लागू करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई। आवश्यक बजट आवंटित करने की बजाए नॉन प्लान बजट के तहत योजना को लागू कर दिया गया। सबसे पहले पूरे देश में जिला स्तर पर एक सर्वे करने की जरूरत थी जिससे तालाबों के बारे में जरूरी जानकारी इकट्ठा कर ली जाती। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर योजना को लागू किया जाना चाहिए था। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के अलावा एक एकड़ के तालाब बहुत कम हैं। यह जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। फिर से समीक्षा करके योजना में बदलाव करने की आवश्यकता है।”

लक्ष्य हासिल करने को लेकर सरकार के दावे और हकीकत में अंतर
अमृत सरोवरों को विकसित करने के प्रधानमंत्री के घोषणा के तहत प्रत्येक जिले में 75 सरोवरों का और 15 अगस्त 2023 तक पूरे देश में 50,000 सरोवरों का विकास किया जाना था। मिशन अमृत सरोवर योजना की गाइड लाइन कहती है “किसी भी परिस्थिति में ऐसे सभी अमृत सरोवरों को अमृत वर्ष के अंत अर्थात 15 अगस्त 2023 तक पूरा किया जाना चाहिए।”

अमटौरा गांव में अमृत सरोवर के पास लगा सूचना बोर्ड।

केन्द्र सरकार के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरोवर विकसित करने का निर्णय लिया था। बाद में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक की बजाए 2-2 तालाबों को विकसित करने का लक्ष्य रख दिया था। प्रदेश में 58,194 ग्राम पंचायतें हैं। इस तरह प्रदेश में 1,16,378 अमृत सरोवर विकसित करने का लक्ष्य तय किया गया।

केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित मिशन अमृत सरोवर की अधिकृत वेबसाइट के अनुसार प्रदेश में अभी तक 24,461 स्थलों को चिन्हित किया गया है जबकि 18,505 चिन्हित स्थलों पर काम शुरू किया जा सका है और मात्र 14,954 सरोवरों को ही विकसित किया जा सका है। हालांकि 6 सितंबर 2023 को उप मुख्यमंत्री ने समय सीमा को बढ़ाकर 15 अगस्त 2024 कर दिया था। विकसित सरोवर भी तय मानकों के अनुसार नहीं हैं और कई तालाबों को विकसित करने के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई है।

10 मई 2023 को पीआईबी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया “मिशन अमृत सरोवर का उद्देश्य आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के हर जिले में कम से कम 75 अमृत सरोवरों का निर्माण और विकास करना है। कुल मिलाकर, इस मिशन के अंतर्गत 15 अगस्त, 2023 तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे निर्धारित समय-सीमा के पूर्व प्राप्त कर लिया गया है। अब तक, 50071 अमृत सरोवरों का निर्माण किया जा चुका है।”

सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में भूजल और तालाब जियाओ अभियान पर काम करने वाले राजेंद्र भाई इंडियास्पेंड हिंदी से फोन पर हुई बातचीत में कहते, “अमृत सरोवर योजना भूजल संचयन के लिए एक बेहतरीन योजना हो सकती है बशर्ते सरकार इसपर गंभीरता से काम करे काम करे।इस योजना की सबसे अच्छी बात यह है कि इससे कम वर्षा और ज्यादा गर्मी वाले दिनों में ये सरोवर जीवनदायिनी नदियों सा काम करेंगे। लेकिन इसपर सरकार के अधिकारियों का सुस्त रवैया इस योजना को कामयाब नहीं होने दे रहे है। जलवायु परिवर्तन और एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स के हिसाब से भी यह योजना बहुत ही आवश्यक है।”

पीआईबी ने ही 19 अगस्त 2023 को प्रेस रिलीज जारी कर बताया “राज्यों ने अपने यहां प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवर के जिला स्तरीय लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयास किए हैं। पश्चिम बंगाल, पंजाब, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, हरियाणा, बिहार और राजस्थान को छोड़कर जहां कुछ जिलों में प्रति जिले 75 अमृत सरोवरों का लक्ष्य प्राप्त करना अभी भी बाकी है।” यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कितने जिलों में कितने अमृत सरोवरों का निर्माण किया गया है और कितना किया जाना है।

ऐसे में जिम्‍मेदारों से स्वाभाविक सवाल पूछा जाना चाहिए कि यदि तय समय में मिशन अमृत सरोवरों को विकसित करने का लक्ष्य हासिल कर लिया गया था तो उत्तर प्रदेश सरकार को समयावधि को एक वर्ष आगे क्यों बढ़ाना पड़ा? केन्द्र सरकार ने बाद में स्वयं स्वीकार किया कि 8 राज्यों लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है तो फिर समय से पूर्व लक्ष्य हासिल करने का दावा क्यों किया गया?

उत्तर प्रदेश सरकार तय लक्ष्य से बहुत पीछे है फिर भी लक्ष्य हासिल नहीं करने वाले राज्यों में उसका नाम क्यों नहीं है? 63 गांवों के ब्लॉक में केवल 19 सरोवरों को विकसित किया जा रहा है तो प्रत्येक गाँव सरोवर विकसित करने का दावा किस आधार पर किया गया था?

नोट: स्टोरी पर अतिरिक्त योगदान मिथिलेश धर दूबे द्वारा।