जमशेदपुर की जहरीली हवा: वायुवीरों की आवाज़ बनी उम्मीद की किरण
जमशेदपुर की जहरीली हवा के खिलाफ समुदाय के लिए काम कर रहे है वायु वीर। स्वच्छ हवा के लिए डेटा द्वारा गुणवत्ता माप कर सच सामने लाने की हो रही है कोशिश।

जमशेदपुर में सभी वायु वीर एक साथ। सभी फोटो सत्यम कुमार
जमशेदपुर: लोहा अयस्क, कोयला, मैंगनीज, यूरेनियम और चूना पत्थर सहित खनिजों से समृद्ध, भारत का एक प्रमुख औद्योगिक शहर है। जमशेदपुर, आधुनिक भारत का पहला नियोजित (प्लांड) शहर है। यह झारखंड का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र है जहाँ टाटा स्टील (पूर्व में TISCO), टेल्को, टिनप्लेट, अदानी थर्मल पावर प्लांट जैसी अग्रणी कंपनियाँ स्थित हैं, साथ ही यहाँ कई छोटे और मध्यम दर्जे के (करीब 90) उद्योग भी हैं लेकिन यह वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से भी जूझ रहा है।
इस प्रदूषण का असर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यहाँ की निवासियों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (JSPCB) द्वारा तैयार Comprehensive Clean Air Action Plan के अनुसार, जमशेदपुर में वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों का योगदान निम्नानुसार है. उद्योगों से 26%, परिवहन से: 23%, सड़क की धूल से: 15%, घरेलू ईंधन से: 6% और बाकी हिस्सेदारी अन्य स्रोत की है, अन्य स्त्रोत में घरेलु उपयोग, डीजल जनरेटर व ईट भट्टे भी शामिल है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की घोषणा 2019 में हुई थी, जिसमें 131 से अधिक शहरों को शामिल किया गया। जमशेदपुर भी इन 'नॉन-अटेनमेंट सिटीज़' में से एक है, यानी ऐसे शहर जो लगातार निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों से नीचे प्रदर्शन कर रहे हैं।
इसे देखते हुए जमशेदपुर को 2021 में NCAP (नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम) के अंतर्गत लाया गया। NCAP का लक्ष्य था कि अगले 5 साल (2024) तक PM2.5 और PM10 को 20%-30% कम करना। इसके लिए 2017 के डाटा को आधार माना गया। जमशेदपुर शहर के लिए भी यही लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, लेकिन इसमें संशोधित समय-सीमा 2025 तक रखी गई है क्योंकि यहाँ NCAP प्रक्रिया 2021 से शुरू की गई।
इसी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020–2021 में PM10 104.4 µg/m³ दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय मानक 60 µg/m³ से लगभग 74% अधिक है।COMPREHENSIVE CLEAN AIR ACTION PLAN रिपोर्ट से प्राप्त।
COMPREHENSIVE CLEAN AIR ACTION PLAN रिपोर्ट से प्राप्त।
इसी विषय पर जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति (JNAC) के सिटी मैनेजर और NCAP (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) के नोडल अधिकारी जितेन्द्र कुमार ने टेलीफोनिक बातचीत में बताया कि “अभी तक एक भी CAAQMS (निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन) नहीं लगा है, लेकिन जल्द ही शहर में इसे लगाया जाएगा।”
“अभी वायु प्रदूषण कम करने के लिए वृक्षारोपण और अन्य तरह के कार्य किए जा रहे हैं। आगे भी कई योजनाओं पर कार्य होना बाकी है, जीतेन्द्र बताते हैं।”
जब उनसे NCAP के तहत मिलने वाले बजट और उपयोग की बात की गई, तो उन्होंने कहा, “जमशेदपुर को अब तक ₹116.85 करोड़ मिले हैं, और NCAP को लेकर कार्य हो रहा है। लेकिन NCAP की सूची में 130 शहर में से ऐसे 14 शहर हैं जिन्होंने 50% से कम फंड खर्च किए हैं, और जमशेदपुर भी उनमें से एक है। अब तक ₹51.69 करोड़ यानी सिर्फ 44.24% ही खर्च हुए हैं।”यह आंकड़ा गंभीर सवाल खड़े करता है कि अगर आधे से भी कम पैसा खर्च हुआ है, तो शेष राशि किस योजना के तहत, कब और कैसे उपयोग की जाएगी?
जब हमने उनसे PM10 की बढ़ती मात्रा (जो 2020–21 में 96 µg/m³ से बढ़कर 2024–25 में 144 µg/m³ हो गई है) के बारे में पूछा, तो उनका जवाब था, “शहर में गाड़ियाँ भी ज़्यादा हुई हैं, इसलिए ऐसा डेटा आ रहा है।”वायु प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता का बीड़ा जमशेदपुर में वायुवीर उठा रहे हैं।
वायु वीर कार्यक्रम के बारे में
वायु वीर एक नागरिक स्वयंसेवी कार्यक्रम है, जो जमशेदपुर के उन लोगों के स्वच्छ हवा की वकालत करता है, जो वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाली समुदायों की महिलाएं और युवा। इस कार्यक्रम की शुरुआत 7 सितंबर 2023 को आदर्श सेवा संस्थान और महिला कल्याण समिति के द्वारा हुई थी।
यह कार्यक्रम निम्न-आय वाले समुदायों, विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्रों के पास रहने वालों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को दिखाता है। वे हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर के माध्यम से डेटा एकत्र करते हैं, अपने अनुभवों को दर्ज करते हैं, और वायु प्रदूषण के अदृश्य खतरे को जागरूकता के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं। चाहे वह चौपालों, नुक्कड़ नाटकों, डिजिटल कहानी कहने, या निर्माताओं के साथ संवाद के माध्यम से हो, वायु वीर समुदाय के अनुभव और व्यवस्थागत परिवर्तन के बीच सेतु का काम कर रहे हैं।
अर्पिता सोरेन, रिंकी पाल, सोम कंसारी, और मिरिया बास्के—चार वायुवीर, जिन्होंने “वन मंथ इन माय लाइफ” कार्यक्रम के तहत हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर, के द्वारा हवा को मापकर एक ऐसी कहानी सामने लाई, जिसने न केवल उनके समुदाय को झकझोरा, बल्कि नीति-निर्माताओं को भी सोचने पर मजबूर किया। “वन मंथ इन माय लाइफ 2.0” के तहत और चार महिलाओं—सुषमा साहू, मौसमी पांडे, लीलावती सिंह, और सुनीता मुंडा—ने इस अभियान को और मज़बूत किया। उनकी छोटी-सी शुरुआत ने दिखाया कि आम लोग भी विज्ञान के साथ मिलकर अपनी साँसों की जंग लड़ सकते हैं।
इस पहल की शुरुआत वन मंथ इन माय लाइफ का डाटा के साथ हुई। यह डाटा 12 दिसंबर, 2023 से 12 जनवरी, 2024 का दर्ज किया गया है। अर्पिता सोरेन, रिंकी पाल, सोम कंसारी, और मिरिया बास्के इनके डेटा ने जमशेदपुर के हाशिए के इलाकों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति उजागर की:
सोम को सबसे खराब वायु गुणवत्ता का सामना करना पड़ा, जिसमें 47% दिन 'गंभीर' और 43% दिन 'श्रेणी से परे' थे, साथ ही सबसे अधिक PM2.5 स्तर (607 µg/m³) दर्ज किया गया।
अर्पिता ने सबसे अधिक 'खराब' (56%) और कुछ 'मध्यम' (12%) अनुभव दर्ज किए, लेकिन 'गंभीर' श्रेणी में कोई दिन नहीं था।
रिंकी और मिरिया ने 'बहुत खराब' (50%) श्रेणी में सबसे अधिक दिन अनुभव किए, लेकिन मिरिया का अधिकतम PM2.5 स्तर (309.9 µg/m³) रिंकी (291.3 µg/m³) से अधिक था।
किसी भी वायु वीर को 'अच्छी' या 'संतोषजनक' वायु गुणवत्ता का अनुभव नहीं हुआ।
वन मंथ इन माय लाइफ 2.0: नई शुरुआत, नई आवाज़ें
2025 में, “वन मंथ इन माय लाइफ 2.0” ने इस पहल को नया आयाम दिया। इस बार फोकस था वंचित समुदायों की महिलाओं पर, जो प्रदूषण का सबसे ज़्यादा शिकार थीं, लेकिन उनकी आवाज़ अक्सर दब जाती थी। जमशेदपुर की चार वायुवीर—सुषमा साहू, मौसमी पांडे, लीलावती सिंह, और सुनीता मुंडा—वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ रही हैं। इन महिलाओं ने न सिर्फ़ हवा माप रहे हैं, बल्कि प्रदूषण के अपने जीवन, परिवार, और समुदाय पर पड़ने वाले असर को भी दर्ज कर रहे हैं।
बीते 2 साल से ये पर्यावरण, प्रदूषण, वायुप्रदूषण पर काम कर रहे हैं। काम करने से पहले लगभग 6 महीने तक इन सभी वायुवीर ने वायुप्रदूषण को समझने के लिए कई वर्कशॉप, ट्रेनिंग ली, ताकि इसके वैज्ञानिक पहलूओं को समझा जा सके। इस मीटर से प्रदूषण को मापा जा सकता है। वायुवीर ने पूरे एक महीना इस उपकरण को 24 घंटे लगातार साथ रखा। यानी ये इस दौरान अगर कार्यस्थल, बाजार, मॉर्निंग वॉक करने पार्क आदि जगहों पर जा रहे थे, वहां के प्रदूषण का स्तर माप रहे थे। फिर इस डेटा को नोट करते रहे।
वायु वीर कार्यक्रम के तहत, चार वायु वीरों सुषमा साहू, मौसमी पांडे, लीलावती सिंह, और सुनीता मुंडा 18 मार्च, 2025 से 17 अप्रैल, 2025 तक जमशेदपुर में वायु गुणवत्ता का डाटा नोट किया।
सुषमा साहू एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो CRY (Child Rights and You) के साथ काम करती हैं। उनकी मुख्य जिम्मेदारी सात बस्तियों में वंचित बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकना और उनके माता-पिता को प्रेरित करना है। वह 13-18 वर्ष की आयु के किशोरों के साथ निकटता से काम करती हैं। सुषमा अपने पति, जो एक निर्माण कार्यकर्ता हैं, और अपनी बेटी के साथ संयुक्त परिवार में रहती हैं।
उनके अनुसार, सड़कों पर वाहनों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जलाशय आधे से भी कम हो गए हैं, और नदियों में कचरा डाला जा रहा है। सुषमा को साइनसाइटिस की समस्या है, जो बस्तियों में खराब हवा के कारण और बढ़ जाती है। ये बस्तियां अक्सर अस्वच्छ होती हैं, जहां शहर का कचरा डंप किया जाता है। घर पर उन्हें सांस लेने में कोई समस्या नहीं होती, लेकिन फील्ड विजिट के दौरान वह जल्दी थक जाती हैं और लंबे समय तक बात नहीं कर पातीं।
सुषमा साहू के द्वारा हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर से लिया गया 18 मार्च, 2025 से 17 अप्रैल, 2025 तक डाटा।
मौसमी पांडे एक स्थानीय NGO के साथ काम करती हैं, जहां वह स्कूल छोड़ चुके बच्चों को पढ़ाती हैं। 2006 में जमशेदपुर आने के बाद, उन्होंने शहर में प्रदूषण के स्तर में लगातार वृद्धि देखी है। उनके कार्यस्थल के रास्ते में एक श्मशान घाट पड़ता है, जहां खुले में शव जलाने से भारी धुआं और दुर्गंध उत्पन्न होती है। इस कारण, उन्हें रोज़ाना सांस रोककर चलना पड़ता है। इसके अलावा, सड़कों पर भारी ट्रैफिक और निर्माण धूल भी उनकी सांस लेने की समस्याओं को बढ़ाते हैं।
मौसमी पांडे के द्वारा हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर से लिया गया 18 मार्च, 2025 से 17 अप्रैल, 2025 तक डाटा।
लीलावती सिंह एक गृहिणी हैं, जो अपने पति, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं, और दो बच्चों के साथ सुंदरनगर में रहती हैं। उनके मोहल्ले में खुला कचरा जलाना एक आम समस्या है, जिसके कारण उन्हें अक्सर एंटी-पॉल्यूशन मास्क पहनना पड़ता है।
ललवती सिंह के द्वारा हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर से लिया गया 18 मार्च, 2025 से 17 अप्रैल, 2025 तक डाटा।
सुनीता मुंडा एक NGO के साथ काम करती हैं, जो हाशिए पर रहने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करती हैं। उनके कार्यस्थल के पास एक कचरा डंपिंग स्थल है, जहां संयोजित कचरे से भारी दुर्गंध आती है।
वह कहती हैं, "प्रदूषण जीवन का हिस्सा बन गया है।
सुनीता मुंडा के द्वारा हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर के साथ।
सुनीता मुंडा के द्वारा हैंडहेल्ड एयर क्वालिटी मॉनिटर से लिया गया 18 मार्च, 2025 से 17 अप्रैल, 2025 तक डाटा।
वन मंथ इन माय लाइफ 2.0 में महिलाओं ने न सिर्फ़ डेटा इकट्ठा किया, बल्कि अपने अनुभवों को समुदाय के साथ साझा किया। उन्होंने स्कूलों, बस्तियों, और सामुदायिक केंद्रों में मीटिंग्स कीं, जहाँ उन्होंने मॉनिटर के आँकड़े दिखाए और प्रदूषण के असर को समझाया। संगीता ने कहा, “पहले हमें लगता था कि बीमारी हमारी किस्मत है। लेकिन अब हम जानते हैं कि ये हवा की बीमारी है।”
वन मंथ इन माय लाइफ 2.0 का डेटा: सच्चाई की तस्वीर
वायुवीर के तहत सुषमा साहू, मौसुमी पांडे, लीलावती सिंह और सुनीता मुंडा ने मार्च 2025 से अप्रैल 2025 तक 30 दिनों तक हवा की गुणवत्ता मापी।
यह पहल पिछले साल की “वन मंथ इन माय लाइफ” पहल का विस्तार है, जिसमें युवाओं ने आसानी से उपलब्ध वायु गुणवत्ता मापक—हैंड मॉनिटर का उपयोग करके प्रदूषण के प्रभाव को मापा था। इन्होंने न केवल अपने इलाके की हवा की गुणवत्ता को मापा, बल्कि यह भी समझने का प्रयास किया कि यह उनके और उनके आसपास के समुदायों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर रहा है। उनके डेटा ने जमशेदपुर के हाशिए के इलाकों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति उजागर की:
यह डेटा दिखाता है कि हाशिए के समुदायों में हवा सरकारी मॉनिटरों के आँकड़ों से कहीं ज़्यादा खराब है। राष्ट्रीय मानक (60 µg/m³) के मुकाबले ये स्तर ज़्यादा थे, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के आधार पर, प्रत्येक वायुवीर ने विभिन्न श्रेणियों में दिनों का अनुभव किया। नीचे दी गई तालिका 30 दिनों के दौरान AQI वितरण को दर्शाती है:
सभी वायुवीरों ने PM2.5 स्तर राष्ट्रीय मानक (60 µg/m³) से अधिक दर्ज किए। सुषमा साहू: PM2.5 (84.7 µg/m³) राष्ट्रीय मानक (60 µg/m³) से 41.17% अधिक और PM10 (133.50 µg/m³) 100 µg/m³ से 33.50% अधिक है, जो सबसे खराब स्तर दिखाता है।
AQI पैटर्न: "मध्यम" श्रेणी सबसे ज्यादा है (43.74% से 59.37%), लेकिन "खराब" और "बहुत खराब" दिनों की उपस्थिति (सभी वायुवीरों में) स्वास्थ्य जोखिम को बढ़ाती है। लीलावती सिंह के पास सबसे अधिक "अच्छा" दिन (9.38%) हैं, जबकि सुषमा साहू और सुनीता मुंडा में कोई "अच्छा" दिन नहीं है।
डेटा से पता चलता है कि वायु गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन बदलती रही। लीलावती सिंह ने सबसे अधिक "अच्छा" और "मध्यम" AQI वाले दिन दर्ज किए, जो संभवतः उनके क्षेत्र में कम प्रदूषण स्रोतों को दर्शाता है। इसके विपरीत, सुनीता मुंडा ने “खराब” और “बहुत खराब” दिन दर्ज किए, जो उनके कार्यस्थल के पास कचरा डंपिंग और निर्माण धूल को दर्शाता है।
आदर्श सेवा संस्थान की कार्यकर्ता लखी दास, जो शुरू से इस कार्यक्रम से जुड़ी रहीं, बताती हैं:
“वायुवीर स्वच्छ हवा की तरफ बात करने में ऐतिहासिक भूमिका निभा रहे हैं। जब हमें पता चला कि जमशेदपुर भी वायु प्रदूषण से प्रभावित शहरों में शामिल है, तो लगा कि यह बात कम से कम आम लोगों तक पहुंचनी चाहिए और लोग इस पर बात करें। जब कोई भी समस्या गहराती है, तो उसके समाधान के लिए आम लोगों का बातचीत करना बहुत ज़रूरी हो जाता है।”
लखी बताती हैं कि जब यह पहल शुरू हुई, तब 30 लोगों के साथ एक छोटी प्रक्रिया के रूप में इसकी शुरुआत की गई। धीरे-धीरे समझ बना कि इसे सिर्फ मापने तक सीमित न रखकर एक नेतृत्व-निर्माण प्रक्रिया बनाया जाए, जिसमें खासकर युवा और महिलाओं को जोड़ा जाए।
वायुवीरों के द्वारा सामूहिक जागरूकता मीटिंग।
“महिलाओं पर किसी भी प्रदूषण का प्रभाव सबसे ज़्यादा होता है — इसलिए हमने उन्हें लेकर आगे बढ़ना ज़रूरी समझा।”
लखी दास इसे केवल डेटा इकट्ठा करने का अभ्यास नहीं, बल्कि एक सामूहिक सीखने की प्रक्रिया मानती हैं। वे कहती हैं:
“जमशेदपुर चारों तरफ से उद्योगों से घिरा हुआ है — लेकिन यह कंपनियाँ क्या अपने मानक पूरे कर रही हैं, इसे जांचने का कोई ठोस उपकरण जनता के पास नहीं है। ‘वन मंथ इन माय लाइफ’ हमारे लिए एक अनुभव भी था और सवाल पूछने का औज़ार भी।”
लखी स्पष्ट रूप से कहती हैं कि झुग्गियों के लोग वायु प्रदूषण के ज़िम्मेदार नहीं हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा असर इन्हीं पर होता है। प्रदूषण तो उद्योग करते हैं, लेकिन बीमार हम होते हैं।”
वे यह भी बताती हैं कि नगर निगम के पास वायु प्रदूषण को लेकर कोई ठोस कार्य योजना नहीं है।
लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि झारखंड में प्रति 100,000 मौतों में से लगभग 100 मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
डॉ अतरी गंगोपध्याय, छाती रोग विशेषज्ञ, जो 2018 से झारखंड में वायु प्रदूषण के प्रभावों पर काम कर रहे हैं, का कहना है, “वायु प्रदूषण से जो सबसे बड़ा ट्रेंड देखने को मिला है वह यह है कि COPD पहले 50 वर्ष के बाद पाई जाती थी, लेकिन आजकल मेरे पास अक्सर ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनकी उम्र 40 से 45 तक की है। इस बीमारी का पकड़ाने का उम्र 10 साल कम हो गया है।”
“दूसरा जो ट्रेंड दिख रहा है वह यह है कि शहर से सटे रहने वाले बच्चे, जिनका उम्र 5 साल से कम है, उनमें अस्थमा की बीमारी आम दिखने लगी है, जबकि पहले 5 साल से कम बच्चों में अस्थमा की बीमारी देखने को नहीं मिलती थी। अब तो 5 साल से कम के बच्चों में अस्थमा की बीमारी दिख रही है और इसमें फैमिली हिस्ट्री भी अस्थमा का नहीं है। यह बीमारी शहरी और औद्योगिक शहर में ज्यादा है, वे बताती हैं।”
महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल, जमशेदपुर के नोडल ऑफिसर डॉ नुकूल चौधरी ने टेलीफोनिक वार्ता में बाताया कि यह सच है कि पिछले कुछ सालों में श्वसन संबंधी बीमारी बढ़ी है लेकिन जनसंख्या भी बढ़ी है।
2019 की Global Burden of Disease रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख मौतें हुईं, जो कुल मौतों का 17.8% है, जिसमें से 10.4% परिवेशी PM 2.5 प्रदूषण के कारण हुईं। झारखंड में, 2019 में कुल मौतों में से 17% वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
Landrigan PJ, Fuller R, Acosta NJ, et al. The Lancet Commission on pollution and health. Lancet. 2018;391:462-512. https://doi.org/10.1016/S0140-6736(17)32345-0
वायु प्रदूषण को लेकर पूर्व विधायक कुणाल सारंगी ने 30 जनवरी को ट्वीटर पर लिखा, AQI आंकड़े आपराधिक हैं और लोगों को सूचित करने के लिए एक भी सार्वजनिक डिस्प्ले बोर्ड नहीं। औपचारिकता के लिए एक बोर्ड है जो तापमान और आर्द्रता दिखाता है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे रीट्वीट करते हुए डीसी पूर्वी सिंहभूमि को संज्ञान लेने को कहा।
उक्त विषय पर जिला प्रशासन जमशेदपुर से बात करने पर उन्होंने कहा कि इस विषय को लेकर 27 मार्च 2025 को बैठक की गई जिसमें जांच दल द्वारा प्रदूषण कम करने को लेकर निम्नलिखित अनुशंसा की गई।
चूंकि जमशेदपुर में होने वाले प्रदूषण का 23% भाग परिवहन प्रदूषण से होता है, अतः इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां (EV) के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) में ईंधन के रूप में कोयला/ डीजल आदि के स्थान पर गैस आधारित ईंधन में परिवर्तन करने हेतु प्रेरित किया जा सकता है।
प्रदूषण के विभिन्न उत्सर्जन स्रोतों, प्रदूषण में योगदान, प्रदूषण भार का आंकलन एवं इसके नियंत्रण हेतु source apportionment study करना आवश्यक है।
लखी दास कहती डेटा इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि यह स्थानीय और सटीक तस्वीर पेश करता है। वायु वीरों का डेटा सरकारी आँकड़ों से बिल्कुल उलट था। झारखंड स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (JSPCB) के तीन मैन्युअल मॉनिटर—बिस्टुपुर, आदित्यपुर और गोलमुरी—शहर की औसत AQI को 120-200 के बीच दिखाते हैं, जो ‘Moderate’ से ‘Poor’ की श्रेणी में आता है। लेकिन वायुवीरों ने झुग्गी-बस्तियों में PM2.5 का स्तर 350-600 µg/m³ तक दर्ज किया। यह राष्ट्रीय मानक से 6-10 गुना ज़्यादा है। इससे पता चलता है कि हाशिए के समुदाय सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।
उच्च PM2.5 स्तर श्वसन रोगों, हृदय रोगों, और बच्चों में अस्थमा का कारण बनते हैं। वायुवीरों के डेटा ने इन बीमारियों और हवा के बीच सीधा संबंध दिखाया।
वायुवीरों के डेटा ने समुदायों को जागरूक किया और नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाया। यह डेटा नीतियों में बदलाव का आधार बन सकता है।
यह चार्ट दिखाता है कि JSPCB द्वारा जमशेदपुर के तीन प्रमुख केंद्रों पर रिकॉर्ड किए गए RSPM (PM10) स्तर राष्ट्रीय मानक (60 µg/m³) से कितने प्रतिशत अधिक थे:
रीजनल ऑफिस आदित्यपुर: 149% अधिक
बिस्टुपुर व्हीकल टेस्टिंग सेंटर: 146% अधिक
गोलमुरी व्हीकल टेस्टिंग सेंटर: 142% अधिक
ज्ञातव्य है कि यह AQI मशीन भी कई दिनों से बंद पड़ी है।
पिछले 2 वर्षों में, वायु वीर कार्यक्रम ने जमशेदपुर में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के चिंतित नागरिकों को सक्रिय पर्यावरणीय नेताओं में बदलकर सार्थक और मापनीय प्रभाव उत्पन्न किया है।
30 से अधिक सामुदायिक चौपालों, सड़क-स्तरीय आउटरीच, और हितधारकों—जिनमें सरकारी अधिकारी, स्थानीय मीडिया, और निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं। साथ ही बैठकों और चौपालों के माध्यम से, वायु वीरों ने स्वच्छ हवा के इर्द-गिर्द बातचीत को प्रभावी ढंग से रख रहे है।
वायुवीरों के द्वारा नुक्कड़ नाटक कार्यक्रम।
“हमारा डेटा हमारी ताकत है। हम चुप नहीं रहेंगे।” सुनीता ने जोड़ा, “हमारी साँसें दाँव पर हैं। अगर सरकार और नहीं जागेंगी, तो हम उन्हें जगाएँगे, मौसमी कहती हैं।”