हिमाचल प्रदेश आपदा-2025: राज्य में मंडी ज़िला सबसे अधिक प्रभावित, अब तक करीब 752 करोड़ की आर्थिक क्षति
हिमाचल प्रदेश मानसून की विनाशकारी तबाही से एक बार फिर जूझ रहा है। बारिश के दौरान अचानक बादल फटने के कारण आई बाढ़, और भूस्खलन की घटनाओं में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, और प्रदेश को आठ सौ करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह मंडी ज़िला के बाढ़ ग्रस्त गांव सरण पहुँच कर क्षेत्र का दौरा करते हुए। फोटो - X (पूर्व ट्विटर)।
हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के डिजास्टर मैनेजमेंट (DM) प्रकोष्ठ और राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र (SEOC) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 20 जून से 12 जुलाई 2025 के बीच बारिश से जुड़ी घटनाओं में अब तक 95 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा 175 लोग घायल हुए हैं, 33 लोग लापता हैं और 953 पशुओं की मौत का अनुमान है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में मंडी, कुल्लू और शिमला जिलों में जो घटित हो रहा है, वह केवल मानसून सत्र की भारी बारिश का नतीजा नहीं है। जलवायु परिवर्तन भले ही मानसून की तीव्रता बढ़ा रहा हो, लेकिन बरसात को आपदा में बदलने का मुख्य कारण हिमाचल प्रदेश का तीव्र गति से बढ़ता शहरीकरण है।
इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश का जिला मंडी, जो वर्तमान में नुकसान का मुख्य केंद्र बना है, तेज़ी और अनियंत्रित रूप से फैल रहा है। वैज्ञानिक चेतावनियों के बावजूद अस्थिर ढलानों पर निर्माण जारी है। प्राकृतिक जल निकासी मार्ग या तो अतिक्रमण के शिकार हो चुके हैं या सड़कों के नीचे दफन कर दिए गए हैं। शहर का विस्तार उसकी आधारभूत संरचना से कहीं आगे निकल गया है।जिला कुल्लू के सैंज में सियूंड डैम की स्थिति फ़्लैश फ्लड़ के पहले और फ्लड़ के पश्चात। फोटो - फेसबुक।
इस अवधि के दौरान प्रदेश में मूसलधार बारिश का सिलसिला जारी रहा। 1 जून से 8 जुलाई के बीच राज्य में कुल 203.2 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो इस अवधि के सामान्य औसत 152.6 मिमी से काफी अधिक है। मंडी, शिमला और ऊना जैसे ज़िलों में क्रमशः 110%, 89% और 86% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
जून 2025 में हिमाचल प्रदेश में सामान्य औसत से 34 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस महीने 135.0 मिमी वर्षा हुई, जबकि सामान्य औसत मात्र 101.1 मिमी है। सबसे अधिक वर्षा मंडी ज़िले में 306.2 मिमी रिकॉर्ड की गई। फलस्वरूप, मंडी जिला तबाही का केंद्र बन गया।
बीते साल 2024 में हिमाचल प्रदेश में मानसून 25 जून को समय पर पहुंचा था। हालांकि, जुलाई 2024 के दौरान राज्य में वर्षा की कमी रही थी। इस माह में सामान्य 255.9 मिमी के मुकाबले केवल 180.5 मिमी वर्षा दर्ज की गई थी, जो कि 29% कम थी। इसके आलावा, यह वर्ष 1901 से 2024 की अवधि में जुलाई माह 107वाँ सबसे कम वर्षा वाला महीना रहा था।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो इस अवधि में वर्षा में सबसे अधिक गिरावट वर्ष 2022 में देखी गई थी, जब वर्षा में 74% की भारी कमी दर्ज की गई थी। वहीं, वर्ष 2015 इस सीज़न में सबसे अधिक वर्षा वाला वर्ष रहा, जब सामान्य से 30% अधिक वर्षा हुई थी। जबकि, गत वर्ष राज्य को मानसून सत्र में 787.37 करोड़ रुपए हुआ था।
हिमाचल प्रदेश में जुलाई 2024 के दौरान औसत से 29% कम बारिश दर्ज की गई, जो पिछले 124 वर्षों (1901–2024) में जुलाई महीने की सबसे कम बारिश थी।
उल्लेखनीय है कि जुलाई में अब तक की सर्वाधिक वर्षा 1949 में दर्ज की गई थी (548.6 मिमी)। सबसे अधिक वर्षा कांगड़ा जिले में दर्ज की गई, जहाँ 581.5 मिमी वर्षा हुई थी। अगस्त 2024 में वर्षा में सबसे अधिक बढ़ोतरी शिमला जिले में दर्ज की गई, जहाँ सामान्य से 53% अधिक वर्षा हुई थी। फलस्वरूप, आपदा से राज्य को कुल अनुमानित 1613.50 करोड़ की आर्थिक क्षति हुई थी।
मंडी बगशियाड़ (सिराज), में बादल फटने से तबाही, गौशाला की ढही छत में फंसे मवेशी। फोटो - फेसबुक।
जिला मंडी का थुनाग उपमंडल तबाही का केंद्र
राज्य आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ से मिली जानकारी के अनुसार मंडी ज़िला असाधारण रूप से मानसून की चपेट में आया। जहां 21 लोगों की मौत हो चुकी है, इसके अलावा, 12 लोग घायल हुए हैं और 27 लोग लापता हैं। इसके अलावा निजी संपत्ति में 288 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त, जबकि 68 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। आवासीय ढाँचों के अलावा, 330 दुकानें या कारखाने और 143 मज़दूरों के शेड या झोपड़ियाँ और 163 गौशालाओं को भी नुकसान पहुँचा हैं।
हिमाचल प्रदेश में मंडी जिला के थुनाग बाजार में हुई तबाही। फोटो - फेसबुक।
थुनाग उप-मंडल, जहां बादल फटने की घटनाओं ने सबसे ज़्यादा कहर बरपाया है, राज्य में सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जहां 593 घर, 274 गौशालाएँ और 144 दुकानें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, 480 मवेशी मरे हैं, 30 वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं, और 6 पुलों को भारी नुकसान पहुँचा है।
जिला मंडी में आपदा-प्रभावित गाँवों तक वायुसेना के हैलीकॉप्टर द्वारा राहत सामग्री पहुँचाई जा रही है। फोटो - फोटो - X (पूर्व ट्विटर)।
थुनाग में बचाव राहत कार्य पर त्वरित कार्रवाई के फलस्वरूप भारतीय वायु सेना के एक हेलीकॉप्टर द्वारा दो गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित बचाया गया, और बागवानी विश्वविद्यालय के 92 छात्रों को भी रेस्क्यू किया गया। थुनाग में चार राहत शिविर स्थापित किए गए हैं, जिनमें हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह (38), ग्राम पंचायत तुंगाधार (7), बग्सियाड़ (40) और रेंगलू (56) में कुल 141 लोगों को आश्रय दिया गया है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और होमगार्ड की टीमें खोज और बचाव कार्यों में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं।
राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र (SEOC) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 12 जुलाई 2025 तक हिमाचल प्रदेश में कुल 953 पशुओं की मौत दर्ज की गई है। इस दौरान प्राकृतिक आपदाओं ने खासतौर पर कांगड़ा और मंडी जिलों को सबसे अधिक प्रभावित किया। कांगड़ा में कई स्थानों पर फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) की घटनाएं सामने आईं, जबकि मंडी जिले में 15 से अधिक क्लाउड बर्स्ट (बादल फटने) की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं।
हिमाचल प्रदेश में मानसूनी आपदाओं के दौरान 20 जून से 10 जुलाई 2025 तक हुई जान - माल और संपत्ति क्षति के आंकड़े। आंकड़े दर्शाते हैं कि प्राकृतिक आपदा ने न केवल जनजीवन को प्रभावित किया, बल्कि बड़ी संख्या में मकानों, दुकानों, गौशालाओं, श्मसान घाटों और घराटों को भी भारी नुकसान पहुंचाया।
राज्य सरकार द्वारा जानमाल की क्षति पर राहत स्वरूप 63.735 लाख की अनुग्रह राशि जारी की जा चुकी है।
जून 2025 की मानसूनी आपदा के दौरान हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों में हुई अनुमानित आर्थिक क्षति (लाख रुपये में)।
सरकार के राजस्व विभाग के डिजास्टर मैनेजमेंट (DM) प्रकोष्ठ के अनुसार 20 जून से 12 जुलाई 2025 के मध्य हिमाचल प्रदेश में हुई मूसलाधार बारिश से राज्य के विभिन्न जिलों में कुल मिलाकर, पूरे राज्य में 75195.89 लाख रुपये (यानी लगभग 751 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान दर्ज किया गया है।
जिला वार आंकड़े दर्शाते हैं कि अकेले मंडी में ही 1073.78 लाख रुपये (लगभग 10 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ है – जो कि कुल राज्य नुकसान का लगभग 17% हिस्सा है। दूसरे स्थान पर कांगड़ा ज़िला रहा, जहाँ 115.74 लाख रुपये का नुकसान हुआ है, और जिला कुल्लू में यही राशि 76.10 लाख रुपये अनुमानित है। इसके अलावा जिला हमीरपुर, चम्बा और ऊना में क्रमशः 61.68 लाख, 52.81 लाख, 52.55 लाख रुपए का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।
20 जून 2025 से 15 जुलाई 2025 के बीच हिमाचल प्रदेश में मॉनसून के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान का विभागवार विवरण।
हिमाचल प्रदेश में 2025 की मानसूनी आपदा से सार्वजनिक संपत्तियों को भारी क्षति पहुँची है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 73,235.49 लाख (लगभग 732 करोड़) की सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुई। अकेले लोक निर्माण विभाग (PWD) को 32,754.39 लाख का नुकसान हुआ, जबकि जल शक्ति विभाग को 40,481.10 लाख की क्षति हुई है।
मंडी जिला में थुनाग के बनयाड़ में जमीन के बीस फीट नीचे से निकली सदियों पुरानी बावड़ी – बादल फटने के बाद मिट्टी धंसने से रियासत कालीन संरचना आई सामने। फोटो - फेसबुक।
मानसूनी आपदा में बादल फटने की घटनाएं बनीं बड़ा खतरा
हिमाचल प्रदेश में मानसून 2025 के दौरान बादल फटने की घटनाओं ने तबाही की साल दर साल एक नई श्रृंखला शुरू कर दी। बादल फटने की एक घटना किन्नौर जिले के मोसुमा डोजे (Mosuma Doje) क्षेत्र में दर्ज की गई, जो कि पटवार सर्कल राकछम (Rakchham) के अंतर्गत स्थित सब-महल खरोगला (Sub-Mahal Kharogla) में आता है। यह क्षेत्र ऊंचाई, दुर्गमता और सीमित संचार व्यवस्था के कारण पहले से ही संवेदनशील माना जाता रहा है।
हिमाचल प्रदेश में मंडी जिला के सराज लंबाथाच में तबाही का मंजर। लंबाथाच स्थित महाविद्यालय की बिल्डिंग भी बाढ़ की चपेट में आई। फोटो - फेसबुक।
मंडी जिला इस बार बादल फटने की सबसे अधिक घटनाओं से प्रभावित रहा। खासतौर पर करसोग, गोहर, थुनाग और धरमपुर सब-डिविज़न इन आपदाओं के मुख्य केंद्र बने। करसोग उपमंडल में कुट्टी नाला, पुराना बाज़ार, और इम्ला खड्ड (रिखी क्षेत्र) में जलप्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हुई। गोहर उपमंडल में सियंज, बड़ा, और परवाड़ा/तालवाड़ा जैसे गांवों में भारी नुकसान हुआ।
आईएमडी के वैज्ञानिक ‘सी’ श्री संदीप कुमार शर्मा ने इंडियास्पेंड हिन्दी को बताया कि क्लाउडबर्स्ट यानी बादल फटने की घटना बहुत ही कम समय में यानी कुछ ही मिनटों में 100 मिमी से ज़्यादा किसी इलाके में भारी बारिश की वजह से होती हैं। ये आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है, जहां नमी से भरी हवा तेजी से ऊपर उठती है और ठंडी होकर एक जगह एकत्र हो जाती है।
सैंज में सैंज-सिंउड-बिहाली खड्ड (मंडी, हिमाचल प्रदेश) में बाढ़ ने मचाई तबाही। तेज बारिश के बाद अचानक आई बाढ़ में तीन लोगों की जान चली गई। एक जेसीबी मशीन, एक स्कूटी और एक कैंपर वाहन बह गए, जबकि चार-पांच अन्य गाड़ियों को भी गंभीर नुकसान पहुंचा। फोटो - फेसबुक।
अगर ये भारी नमी अचानक गिरती है, तो क्लाउडबर्स्ट की स्थिति बनती है। इसका असर इतना खतरनाक होता है कि देखते ही देखते बाढ़, भूस्खलन और घरों के गिरने जैसी घटनाएं हो जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में जून से सितंबर के बीच मानसून के दौरान ये घटनाएं कुछ समय से आम होती जा रही हैं, उन्होंने आगे कहा।
वे बताते हैं कि क्लाउड बर्स्ट की सटीक भविष्यवाणी फिलहाल संभव नहीं है, क्योंकि ये बेहद छोटे दायरे में होती हैं। कई बार हवाओं के कारण और इलाके की भौगोलिक स्थिति के कारण नमी एक जगह इकट्ठा नहीं हो पाती और बादल दूसरी दिशा में मूव कर जाते हैं। इसलिए एक ही इलाके में बारिश न होकर, जहां से बादलों का मूवमेंट होता है, वहां होती जाती है। जिसे क्लाउडबर्स्ट जैसी विनाशकारी घटना नहीं हो पाती।
तापमान में ऐतिहासिक उछाल: 2023 हिमाचल के सबसे गर्म वर्षों में शामिल
राज्य में आपदाओं की बढ़ती तीव्रता के पीछे जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 के दौरान औसत औसत भूमि सतह वायु तापमान 17.13 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो कि 1981-2010 की दीर्घकालिक औसत (LPA) के मुकाबले 0.70 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जिसके कारण 1901 से 2023 तक का यह राज्य का सातवां सबसे गर्म वर्ष रहा।
वार्षिक अधिकतम तापमान 2023 में औसत से 0.64 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जिससे यह 1901 के बाद नौवां सबसे गर्म वर्ष बन गया। वहीं, न्यूनतम तापमान औसत से 0.76 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, और न्यूनतम तापमान के लिहाज़ से यह आठवां सबसे गर्म वर्ष रहा।
वर्ष 2023 के दौरान हिमाचल प्रदेश में मासिक एवं मौसमी स्तर पर दर्ज अधिकतम, न्यूनतम और औसत तापमान विसंगतियाँ (आधार वर्ष: 1981–2010)। फोटो - IMD।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (शिमला) के वैज्ञानिक ‘सी’ श्री संदीप कुमार शर्मा ने बताया कि वर्ष 2023 के आंकड़ों पर गौर करने से यह स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश की जलवायु तेजी से गर्म हो रही है। इस बदलते तापमान का सीधा प्रभाव राज्य की पर्वतीय पारिस्थितिकी, वर्षा चक्र और भूस्खलनों की आवृत्ति पर पड़ रहा है।
वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश के प्री-मानसून सीज़न (मार्च से मई) के दौरान तापमान अपेक्षाकृत सामान्य से कम रहा, जिससे यह अवधि तुलनात्मक रूप से ठंडी मानी गई। हालांकि इसके विपरीत, सर्दी, मानसून और पोस्ट-मानसून मौसमों में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया, जो राज्य में मौसमी तापमान विसंगतियों की गंभीरता और जलवायु असंतुलन की ओर संकेत करता है, उन्होंने आगे कहा।
भारत मौसम विभाग के अनुसार हिमाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में 2023 के दौरान तापमान में 0.5°C से 1°C तक की वृद्धि दर्ज की गई, जो प्रदेश में तापमान वृद्धि की पुष्टि करती है। हालांकि, उत्तर-पश्चिमी जिलों, जैसे लाहौल-स्पीति, चंबा और किन्नौर, में न्यूनतम तापमान की विसंगति +1°C से +2°C के बीच दर्ज की गई, जो कि स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट और चिंताजनक संकेत हैं।
वैज्ञानिक संदीप कुमार शर्मा के अनुसार, तापमान में दर्ज हो रही ये प्रवृत्तियाँ इस ओर स्पष्ट संकेत देती हैं कि हिमाचल प्रदेश में अब ठंडे महीने क्रमशः सिकुड़ते जा रहे हैं, जबकि गर्म अवधियाँ पहले से लंबी और तीव्र होती जा रही हैं। इस बदलाव का प्रभाव केवल पर्यावरणीय संतुलन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति दोनों को बढ़ा रहा है।
दीर्घकालिक तापमान वृद्धि: हिमाचल में सदी भर में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी
वर्ष 1901 से 2023 तक हिमाचल प्रदेश में अधिकतम, न्यूनतम और औसत वार्षिक तापमान में आई असामान्यताएं (anomalies)। फोटो - IMD।
जलवायु परिवर्तन हिमाचल प्रदेश के तापमान पर धीरे लेकिन स्थायी असर डाल रहा है। वर्ष 1901 से 2023 तक के 123 वर्षों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह साफ़ दिखता है कि राज्य के वार्षिक औसत सतही तापमान में प्रति 100 वर्ष +1.51 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है जो वैश्विक औसत के मुकाबले भी चिंताजनक मानी जा सकती है।
यह तापमान वृद्धि मुख्यतः अधिकतम तापमान में तेज़ी से देखी गई है, जहां दर +2.18 डिग्री सेल्सियस प्रति 100 वर्ष तक पहुंच चुकी है। वहीं, न्यूनतम तापमान में यह वृद्धि तुलनात्मक रूप से धीमी रही, जो कि +0.84 डिग्री सेल्सियस प्रति 100 वर्ष आंकी गई।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में अब तक के पांच सबसे गर्म वर्ष (क्रमानुसार) 2016 (anomaly +1.361°C), 2022 (+1.159°C), 2017 (+0.983°C), 2010 (+0.896°C) और 2021 (+0.777°C) रहे हैं। यह दर्शाता है कि पिछले एक दशक के भीतर ही पांच साल सबसे गर्म वर्षों की फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं, जो जलवायु परिवर्तन की तीव्रता और वर्तमान स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हैं।
वर्षा पैटर्न का विश्लेषण: दक्षिण-पश्चिम मानसून पर सबसे अधिक निर्भर हिमाचल
हिमाचल प्रदेश की जलवायु संरचना में वर्षा का वितरण चार प्रमुख मौसमीय चक्रों में विभाजित होता है – 2023 के आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल में वार्षिक वर्षा औसतन निम्नलिखित अनुपात में दर्ज की गई, 15% वर्षा सर्दियों (जनवरी–फरवरी) में, 19.3% वर्षा प्री-मानसून (मार्च–मई) में, 59% वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून–सितंबर) के दौरान, और 6.7% वर्षा पोस्ट-मानसून (अक्टूबर–दिसंबर) में हुई है।
यह स्पष्ट करता है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून राज्य की मुख्य वर्षा ऋतु है, लेकिन सर्दी और प्री-मानसून की बारिश भी स्थानीय जलस्रोतों के पुनर्भरण, फसल चक्र और पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए अहम भूमिका निभाती है।
श्री संदीप कुमार शर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक कृषि व्यवस्था, पेयजल स्रोतों की उपलब्धता और आपदा प्रबंधन की बुनियादी संरचना तीनों ही मुख्य रूप से संतुलित वर्षा चक्र पर आधारित हैं। जैसे ही इस प्राकृतिक चक्र में असंतुलन आता है, इसका सीधा असर ज़मीन पर दिखाई देने लगता है, परिणामस्वरूप बाढ़, भूस्खलन और जल संकट जैसी स्थितियाँ अधिक तीव्र और बारंबार हो जाती हैं।
शिमला स्थित मौसम विज्ञान केंद्र में वैज्ञानिक संदीप शर्मा, स्क्रीन पर 10 जुलाई 2025 की हवाओं की दिशा और रफ्तार से जुड़ी मौसम भविष्यवाणी को समझाते हुए। फोटो - सुरिन्द्र कुमार।
इसी असंतुलन की झलक वर्ष 2023 में स्पष्ट रूप से देखने को मिली। उस वर्ष हिमाचल प्रदेश में कुल वार्षिक वर्षा दीर्घकालिक औसत (LPA) के मुकाबले 107 प्रतिशत दर्ज की गई – साधारणतया यह सामान्य से कुछ अधिक थी। लेकिन जब इसे मौसमी स्तर पर देखा गया, तो पता चलता है कि यह वृद्धि दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) के दौरान केंद्रित थी, जब राज्य में सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज हुई थी।
हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में वर्ष 2023 के दौरान वर्षा वितरण में भारी असमानता दर्ज की गई, जो साफतौर पर जलवायु असंतुलन की ओर संकेत करती है। सोलन जिले में सामान्य औसत वर्षा (LPA) से 60% से अधिक अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई, जिसे मौसम विभाग की श्रेणी में 'अत्यधिक अधिक वर्षा' (Large Excess) माना जाता है। इसने सोलन को वर्ष 2023 के सबसे अत्याधिक वर्षा प्रभावित जिलों में शामिल कर दिया।
इसके अलावा, छह जिलों में वर्षा सामान्य से 20% से 59% अधिक रही, जो 'अधिक वर्षा' (Excess) की श्रेणी में आते हैं। इन क्षेत्रों में कई स्थानों पर जलभराव, मिट्टी कटाव और भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आईं।
वहीं, तीन जिलों में वर्षा का स्तर -19% से +19% के भीतर रहा जिसे 'सामान्य वर्षा' (Normal) के अंतर्गत रखा गया।
दूसरी ओर, दो जिलों में वर्षा सामान्य से 20% से 59% कम रही, जिसे मौसम विज्ञान की दृष्टि से 'कमी वाली वर्षा' (Deficient) की स्थिति माना गया और इसने स्थानीय कृषि तथा जल स्रोतों पर सीधा प्रभाव डाला था।
दीर्घकालिक वर्षा प्रवृत्तियाँ (1951–2022)
हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन का असर केवल तत्काल वर्षा में नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रुझानों में भी गहराई से दर्ज हो रहा है। 1951 से 2022 के बीच के वर्षा आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि राज्य के 6 ज़िलों लाहौल-स्पीति, किन्नौर, शिमला, कांगड़ा, सोलन और सिरमौर में वार्षिक वर्षा में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है।
ये वो ज़िले हैं, जहाँ कभी हिमालय की नमी बरसती थी, अब वहाँ सूखा, बर्फ की कमी और जलस्रोतों का क्षरण बढ़ता जा रहा है। वहीं, अन्य ज़िलों में वर्षा के आंकड़े तुलनात्मक रूप से स्थिर रहे न कोई उल्लेखनीय वृद्धि, न गिरावट।
मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक संदीप शर्मा ने बताया कि, वर्षा की तीव्रता को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है – 64.5 मिमी से 115.5 मिमी तक की वर्षा को ‘भारी वर्षा’ की श्रेणी में रखा जाता है, 115.6 मिमी से 204.4 मिमी तक की वर्षा ‘अत्यधिक भारी वर्षा’ की श्रेणी में आती है, जबकि 204.4 मिमी से अधिक वर्षा को ‘अत्यंत भारी वर्षा’ माना जाता है।
आपदा 2023: जिसे प्रदेश को झकझोर दिया
जुलाई-अगस्त 2023 का मानसून हिमाचल पर कहर बनकर टूटा। राज्य दो बड़े वर्षा चक्रों 9 से 11 जुलाई और 13 से 16 अगस्त की चपेट में आया, जिनके चलते कांगड़ा और चंबा जैसे जिलों में व्यापक भूस्खलन हुए। हालात तब और बिगड़े जब 20 जुलाई को रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने सड़कें, पुल और बुनियादी ढांचा ध्वस्त कर दिया था।
राज्य भर में दो सौ से अधिक जानें इस भीषण मानसून के दौरान चली गईं। दूसरी बारिश की लहर के दौरान राजधानी शिमला शहर सबसे अधिक प्रभावित रहा। समरहिल के शिव बावड़ी क्षेत्र, कृष्णा नगर और फागली जैसे इलाकों में भूस्खलनों के चलते व्यापक जान-माल का नुकसान हुआ था।
2023 में वर्षा का रुझान स्पष्ट रूप से असामान्य था। अप्रैल, मई, जुलाई और अगस्त के महीनों में मंडी, भुंतर, शिमला, कांगड़ा और कल्पा जैसे क्षेत्रों में लगातार भारी बारिश दर्ज की गई। विशेष रूप से जुलाई 2023 की वर्षा, कई स्थानों पर पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में कांगड़ा ज़िले में भूस्खलनों की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई, विशेषकर अगस्त और सितंबर के महीनों में। 14 अगस्त 2023 को तो हालात सबसे भयावह रहे। कांगड़ा जिले के धीरा क्षेत्र के परमार नगर जैसे इलाकों में व्यापक तबाही देखने को मिली। यहां कई घर ध्वस्त हो गए, और खेती योग्य भूमि 18 से 20 फीट तक धंस गई। चौकी गांव जैसे स्थानों में तो पूरी बस्ती ही बह गई थी।
हिमाचल प्रदेश में जुलाई 2024 की वर्षा का जिलावार आंकड़ा।
चंबा-भरमौर मार्ग पर स्थित बग्गा और लोथल गांव के क्षेत्र चमेरा-II बांध में जलभराव की चपेट में आए। परिणामस्वरूप, गांव के आसपास की भूमि अस्थिर हो गई और कई हिस्सों में दरारें व खिसकाव देखने को मिला था।
हिमाचल में बादल फटने की बढ़ती घटनाएं
हिमाचल प्रदेश में 2017 से 2025 के बीच बादल फटने की घटनाएं लगातार भयावह रूप में सामने आ रही हैं। वर्ष 2017 में ऐसी सिर्फ एक घटना दर्ज की गई थी, जो कुल्लू ज़िले के आनी उपमंडल की सरगा और कुशवा पंचायतों में सामने आई थी। लेकिन अगले ही वर्ष 2018 में यह संख्या 34 तक पहुँच गई, जिसमें लाहौल-स्पीति (12), चंबा (8), किन्नौर (6) और कुल्लू (5) जैसे संवेदनशील ज़िलों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था।
2017 से 2025 तक हिमाचल में बादल फटने की घटनाएं।
2019 में यह घटनाएं घटकर 7 रह गईं (जिनमें 4 कुल्लू में दर्ज हुईं), और 2020 एकमात्र ऐसा वर्ष रहा जब कोई क्लाउडबर्स्ट रिकॉर्ड नहीं किया गया। मगर 2021 और 2022 में यह घटनाएं क्रमशः 13 और 14 रहीं, जिनमें लाहौल-स्पीति, चंबा और कुल्लू फिर से सबसे अधिक प्रभावित जिलों में रहे।
2023 की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक रही, जब कुल 27 बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गईं—इनमें अकेले कुल्लू में 12 और शिमला में 8 घटनाएं हुईं। 2024 में यह संख्या घटकर 12 रह गई, जिनमें कुल्लू और लाहौल-स्पीति प्रमुख रहे। लेकिन 2025 की पहली छमाही में ही 22 क्लाउडबर्स्ट की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें मंडी ज़िले में अकेले 15 घटनाएं सामने आई हैं।
डॉक्टर आनंद गिरी, IIT मंडी के सिविल और पर्यावरण अभियंत्रण विभाग में DST इंस्पायर फैकल्टी, ने बताया कि पश्चिमी हिमालय के क्षेत्रों में भी बार-बार क्लाउडबर्स्ट हो रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मौसम की चरम घटनाएं अब ऊंचाई की सीमाएं पार कर रही हैं। क्लाउड बर्स्ट के यह बढ़ते आंकड़े न सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करते हैं, बल्कि नीति-निर्माताओं और स्थानीय प्रशासन के लिए एक चेतावनी भी हैं कि आपदा प्रबंधन और सतत विकास के नए मॉडल को तत्काल लागू करने की आवश्यकता है।
उन्होंने आगे बताया कि निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन के कारण, विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में, बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। वायुमंडलीय नमी अधिक मात्रा में एकत्रित होती है, जिससे तीव्र बादल निर्माण होता है और अत्यधिक वर्षा की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, जो अक्सर बादल फटने जैसी घटनाओं में प्रकट होती हैं।
साल 2019 से 2025 तक राज्य को लगभग 9640.53 करोड़ की आर्थिक चोट
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी भूगोल और जलवायु की बदलती करवटों ने पिछले सात वर्षों में राज्य को भारी आर्थिक, भौतिक और सामाजिक नुकसान पहुँचाया है। वर्ष 2019 से 2025 (10 जुलाई तक) तक के आंकड़े एक भयावह सच बयां करते हैं: राज्य को मानसून आपदाओं से लगभग 9640.53 करोड़ का नुकसान हुआ है।
वर्ष 2019 में जहां नुकसान 1237.05 करोड़ रहा, वहीं 2020 में यह आंकड़ा 865.19 करोड़ तक पहुंचा। इसके बाद 2021 में प्रदेश ने 1151.70 करोड़ की क्षति झेली – जिसमें बाढ़, भूस्खलन और बादल फट की घटनाओं ने कई ज़िलों में बुनियादी ढांचे को तहस-नहस कर दिया था।
हिमाचल प्रदेश: मानसून सीजन के दौरान वर्ष 2019 से 2024 तक की कुल आर्थिक क्षति।
2022 में ये आपदाएं और भी उग्र रूप में आईं और राज्य को 2516.82 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा। साल 2023 में हिमाचल को 1498.04 करोड़ का आर्थिक नुकसान हुआ। तत्पश्चात 2024 में, सितम्बर तक राज्य को 1613.50 करोड़ की क्षति हुई, जबकि 2025 के यह आंकड़ा 751.89 करोड़ तक पहुंच चुका है।
गत वर्षों के आंकड़ों को देखें तो साफ़ प्रतीत होता है कि मानसून सीजन अब हिमाचल के लिए वित्तीय बोझ बनता जा रहा है।