'विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बेहतर भागीदारी को पॉलिसी सपोर्ट की आवश्यकता है'

महिलाओं के लिए परिवहन के सुरक्षित साधन, सुविधाजनक ऑफिस टाइमिंग, घर से काम करने की सुविधा और बेहतर शिकायत निवारण व्यवस्था महिलाओं की कामकाजी ज़िन्दगी के समस्याएँ कम कर सकती हैं

Update: 2021-03-08 15:22 GMT

डॉ जया नागराजा

बेंगलुरु: विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी विश्व स्तर पर काफी कम है, विश्व में 30% से कम महिलाएं वैज्ञानिक शोध में पायी गयी, यूनेस्को के इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स के 2017 में जारी की गयी फैक्टशीट के अनुसार। लेकिन इसके दूसरी तरह भारत में वैज्ञानिक शोध में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती हुई दिखाई देती है। केंद्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्रायलय के द्वारा जारी किये गए ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) 2018-19 के अनुसार पीएचडी के लिए दाखिला लेने वाली महिलाओं की दर 48% थी।

"समय के साथ विज्ञान और शोध जैसे क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है लेकिन उस ही के साथ संस्थानों और कंपनीयो की भी ये ज़िम्मेदारी बनती है की वो महिलाओं को सुरक्षित और समानता का वातावरण प्रदान करें," डॉ जया नागराजा, मॉलिक्यूलर कनेक्शंस की चीफ साइंटिस्ट का कहना है।

इंडियास्पेंड ने डॉ जया नागराजा से बात की, कि एक महिला रिसर्चर होने के नाते वो भारत में महिलों कि विज्ञान और शोध के क्षेत्र में भागीदारी को कैसे देखती हैं। डॉ नागराजा ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्न, स्विट्ज़रलैंड, से अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद कैंसर और अस्थमा पर रिसर्च किया और साल 2000 तक अमेरिका और फ्रांस में रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर कार्यरत रहीं । इसके बाद डॉ नागराजा ने भारत वापसी की और फिलहाल वे मॉलिक्यूलर कनेक्शंस में चीफ साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत हैं।
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संपादित अंश:

पश्चिमी देशों में अपनी उच्च भुगतान वाली नौकरी के बाद आपने भारत वापस आने का विकल्प क्यों चुना?

यह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं था, बल्कि भारत में कई सारे अवसर पैदा हो रहे थे। अब और उस समय की शिक्षा के समय में बहुत अंतर था। उस समय की मुश्किलों को देखते हुए औरत के रूप में हमने बहुत कुछ हासिल किया है, जैसे कि विदेश जाने आदि। उस समय इस अकादमिक पृष्ठभूमि के होने के कारण, हममें से बहुत से लोग जो वापस आए वो सोचते थे कि अगर हम भारतीय समाज और विश्व विज्ञान में अपनी क्षमता से योगदान दे सकते है तो यह बहुत अच्छी बात है।

और मॉलिक्यूलर कनेक्शंस एक ऐसा माध्यम था, जिसने मेरे दरवाजे खटखटाकर मुझे वह अवसर दिया। 2000 के दशक की शुरुआत में, जब मॉलिक्यूलर कनेक्शंस की स्थापना हुई थी, मैं उन महिलाओं में से एक थी, जिन्हें इस संगठन की स्थापना करने का अवसर मिला। इसके साथ ही कॉलेज से आए नए-नए युवाओं को एक पेशेवर सेट-अप में ढ़ालने में मदद करने का, कई परियोजनाओं के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने में मदद करने आदि का अवसर प्राप्त हुआ।

जिस समय आपने अपना काम शुरू किया उस समय विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का होना कैसा था?

मैंने अपनी पीएच.डी. स्विट्जरलैंड में विदेश से की और जब तक आप अपने काम में अच्छे हैं तब तक महिला वैज्ञानिकों के साथ शैक्षणिक क्षेत्र में कभी भेदभाव नहीं किया गया। उस समय वैज्ञानिक के लिए वातावरण प्रेरणादायक था क्योंकि उस देश से नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रमुख खोज थी। मैं बहुत उत्सुक थी। लेकिन सामान्य रूप से परिवार और समाज में, विशेषकर भारत में विवाह क्षेत्र में महिलाओं के लिए पीएचडी की योग्यता को अति-योग्यता माना जाता था। लेकिन परिवार और माता-पिता के सहयोग से हम यह सब दूर कर सकते हैं।

महिलाओं की भागीदारी और स्वीकृति के मामले में इन सभी वर्षों के दौरान क्या बदलाव या सुधार हुआ है?

सामान्य तौर पर, हाल के समय में महिलाओं को सभी कैरियर क्षेत्रों और सभी नेतृत्व भूमिकाओं में बहुत अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता है। यहां कई भारतीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारत के साथ-साथ प्रतिष्ठित संस्थानों से भी अपने लिए पहचान बनायी है। महिलाएं खुद को दृढ़ कर रही हैं, उनमें सहानुभूति हैं, वो नेतृत्व की भूमिकाएं निभाती हैं, उनके पास काम के घंटों में लचीलापन हैं, मातृत्व अवकाश से उनकी सफलता में कोई बाधा नहीं है। सामान्य तौर पर महिलाओं को वैज्ञानिक करियर में समान अवसर दिया जाता है।

क्या आपने अपने पेशे की यात्रा में एक महिला के रूप में किसी भेदभाव का सामना किया है, यदि हाँ, तो आपने इसका सामना कैसे किया? कृपया घटना का उल्लेख करें।

नहीं, सौभाग्य से मैंने कभी भी अपने शैक्षणिक या पेशेवर जीवन में किसी भी लिंग भेदभाव का सामना नहीं किया है। कुछ क्षेत्रों में महिलाओं के लिए कुछ भेदभाव हो सकता है, लेकिन वैज्ञानिक स्तर पर नहीं। यदि आवश्यक हो, तो, हम इन बाधाओं के खिलाफ काम कर सकते हैं। मुझे यह भी लगता है कि अमरीका जैसे देशों की तुलना में भारत में भेदभाव कम है।

यदि आप मॉलिक्यूलर कनेक्शंस को देखें तो 70% से अधिक कार्यबल में महिलाएं है (नीचे से नेतृत्व की भूमिकाओं तक) इससे पता चलता है कि यह एक समान अवसर नियोजक है। (वास्तव में पूर्वाग्रह मॉलिक्यूलर कनेक्शंस में उल्टे क्रम में है)। मॉलिक्यूलर कनेक्शंस विकास में शुद्ध रूप से योग्यता संचालित और लिंग तटस्थ है।

कार्यस्थलों पर लिंग अंतर को हटाने के लिए और क्या बदलने की आवश्यकता है?

इसके लिए काम के घंटों में लचीलापन, महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन सुविधाएं व घर से काम करने की सुविधाऔं की जरूरत है। इसके अलावा बेहतर नियम और निवारण प्रणालियां जो महिलाओं द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों का समाधान कर सकती हैं।

वेतन समता पर आपके क्या विचार हैं? और आपके अनुसार असमानता के मुद्दे पर कैसे ध्यान दिया जा सकता है?

महिलाओं और पुरुषों के मामले में वेतन असमानता क्यों होनी चाहिए। यह तो क्षमता और योगदान पर आधारित होनी चाहिए, लिंग पर नहीं । मुझे लगता है कि वैज्ञानिकों के स्तर पर यह भारत में एक मुद्दा नहीं है, लेकिन कुछ पश्चिमी देशों में कुछ असमानता के बारे में सुना है।

क्या आपको लगता है कि ऐसी नीतियां जो महिलाओं के लिए अनुकूल हैं जैसे मातृत्व का अवकाश, मासिक धर्म के लिए अवकाश आदि महिलाओं को अधिक हासिल करने में मदद करेंगे?

हाँ, अब मातृत्व अवकाश और शायद पितृत्व अवकाश भी मदद करेंगे। हम हमेशा महिलाओं को अपने अवकाश को बढ़ाने के लिए मदद करते है और उन्हें डब्ल्यूएफएच के अवसर और फ्लेक्सी काम के समय भी देते हैं।

'ग्लास सीलिंग' के बारे में आप क्या सोचते हैं, क्या यह वास्तव में महिलाओं के लिए मौजूद है?

समाज स्तर पर सब कुछ बदलने की जरूरत है। मानसिकता को बदलने की जरूरत है और पुरुषों को जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को सम्मान और स्वीकार करने की आवश्यकता है।

केवल 2 चुनौतियां हैं जिनका सामना महिलाओं को कॉर्पोरेट में करना पड़ता है, और विश्व स्तर पर - एक काम-जीवन संतुलन बनाए रखने के लिए और कैरियर की सीढ़ी पर सी-सूट पदों पर चढ़ने के लिए, यह बात कामकाजी महिलाओं के लिए सच है। महिलाएं पुरुषों के बराबर अनुपात में उद्योग में प्रवेश करती हैं, हालांकि जब तक वे टीम की लीडर और प्रबंधक बन पाती हैं, तब तक वे परिवार और बच्चों को प्राथमिकता देना शुरू कर देती हैं। अधिकांश महिलाएं अपने परिवार की देखभाल करने के लिए अपने करियर में अपने कदम पीछे ले लेती हैं और जो लोग उस कार्य संतुलन पर प्रहार करते हैं और नेतृत्व की स्थिति में पहुंच जाते हैं, उन्हें 'ग्लास सीलिंग' से टकराना मुश्किल लगता है।

कई संगठन विविधता और समावेश की पहल कर रहे हैं। कई भारतीय मूल संगठनों के लिए भी, रिमोट काम करना एक नया तरीका है। महिला सशक्तिकरण नेटवर्क अभी भी एक और पहल है जो कुछ बड़े संगठन महिलाओं को नेटवर्क के लिए प्रोत्साहित करने और संगठन में नेतृत्व के पदों को लेने के लिए चलाते हैं। हालांकि, उनमें से कुछ मुट्ठी भर लोग नेतृत्व स्तर पर लिंग विविधता प्राप्त करने में सफल रहे हैं।

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