सबसे ज्यादा चुनावी बांड खरीदने वाली एक कंपनी भिवंडी के लिए संवेदनशील मुद्दा क्यों है

कई साल पहले मुंबई के नजदीकी इलाके भिवंडी को बिजली आपूर्ति का जिम्मा टोरेंट पावर को सौंपा गया था। पावरलूम मालिकों और जन प्रतिनिधियों का आरोप है कि फ्रेंचाइजी लाए जाने के बाद से बिजली का बिल बढ़कर दोगुना या तिगुना हो गया है। इससे यहां के 10,000 करोड़ रुपये के पावरलूम उद्योग को झटका लगा है।

Update: 2024-05-06 01:30 GMT

भिवंडी में पावरलूम मालिक प्रभाकर अलुवाला का कहना है कि पिछले कुछ सालों से उद्योग को हो रहे नुकसान की एक वजह टोरेंट पावर के बढ़े हुए बिजली के बिल भी हैं। लेकिन कंपनी इस आरोप से इनकार करती है। इमेज क्रेडिट: तन्वी देशपांडे/इंडियास्पेंड

भिवंडी, महाराष्ट्र: भिवंडी में रहने वाले 52 साल के प्रभाकर अलुवाला के लिए धीमी रोशनी और पसीने से भरी गर्मी में काम करना कोई नई बात नहीं है। उनकी इस पावरलूम यूनिट में बनियान पहने दो और मजदूर लगे हुए हैं, जो तेजी से एक करघे से दूसरे करघे की तरफ भाग रहे थे। वो कोशिश कर रहे हैं कि करघा बिना किसी रुकावट के घूमता रहे और डिजाइन में किसी तरह की कोई खराबी न आए। यहां पहले के एक कॉन्ट्रैक्ट के लिए साड़ी के ग्रे कॉटन हिस्से को तैयार किया जा रहा है। मजदूरों के पास तस्वीरें खिंचवाने का समय नहीं है। और वैसे भी यूनिट में किसी की तस्वीर लेने के लिए जगह भी नहीं है। उस तंग जगह में जरा सी चूक किसी को भी चोट लगने का कारण बन सकती है। ये ठीक उसी तरह का दृश्य है जैसी मुंबई के मजदूरों पर बनी पुरानी हिंदी फिल्मों में हम अक्सर देखा करते हैं।

यूनिट अपनी आधी क्षमता पर काम कर रही है क्योंकि बाजार अभी धीमा है। हालांकि उतार-चढ़ाव हमेशा बिजनेस का हिस्सा रहे हैं, लेकिन अलुवाला अब इस बिजनेस में बने रहने के कतई इच्छुक नहीं हैं। वह तो ये भी नहीं चाहते कि उनका 24 वर्षीय बेटा इस पेशे को अपनाए।

उनका कहना है कि इसकी एक वजह टोरेंट पावर कंपनी है। यह कंपनी चुनावी बांड के जरिए राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा देने वालों में से एक है। भिवंडी को 2007 से महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (एमएसईडीसीएल) की वितरण फ्रेंचाइजी टोरेंट पावर लिमिटेड (टीपीएल) बिजली की आपूर्ति कर रही है। अलूवाला जैसे पावरलूम मालिकों और जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि फ्रेंचाइजी लाए जाने के बाद से बिजली का बिल दोगुना या तिगुना हो गया है। इससे 10,000 करोड़ रुपये के पावरलूम उद्योग को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके चलते पिछले कुछ सालों में लगभग 30-40% पावरलूम बंद हो चुके हैं।

अब राजनीतिक चंदे की तरफ चलते हैं। टोरेंट पावर ने 2019 और 2024 के बीच 106.5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे। इनमें से 76 करोड़ रुपये के बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी ने भुनाए, 17 करोड़ रुपये कांग्रेस ने, 3.5 करोड़ रुपये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने, 3 करोड़ शिव सेना ने और बाकी आम आदमी पार्टी ने भुनाए हैं।

भारत के चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 7.5 करोड़ रुपये के बांड की एक किस्त टीपीएल ने मई 2019 में खरीदी थी और तीन दिन बाद ही उसे भाजपा ने भुना लिया था। मजेदार बात ये है कि उसी महीने महाराष्ट्र सरकार ने भिवंडी नगर निगम को आदेश दे दिया कि टोरेंट पावर से 285 करोड़ रुपये (ब्याज और जुर्माना सहित) संपत्ति कर की वसूली न की जाए। कारण बताया गया कि संपत्ति कर की ऐसी वसूली से शुल्क बढ़ जाएगा और ये नागरिकों के हित में नहीं रहेगा। उस समय राज्य में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सरकार चला रहा था।

टोरेंट ग्रुप मूल रूप से एक फार्मास्युटिकल कंपनी थी, अब यह 21,000 करोड़ रुपये का बड़ा समूह बन चुकी है। इसकी पावर कंपनी बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण के क्षेत्र में काम करती है। कोयला, गैस आधारित और नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को मिलाकर टोरेंट पावर की क्षमता 4,110 मेगावाट है।

मार्च 2024 में टीपीएल ने घोषणा करते हुए कहा था कि उसे नासिक जिले में 306 मेगावाट ग्रिड से जुड़े सौर परियोजना की स्थापना के लिए एमएसईडीसीएल से लेटर ऑफ अवार्ड (एलओए) मिल गया है। परियोजना की अनुमानित लागत 1,540 करोड़ रुपये है।

इसी साल यानी 2024 में टीपीएल की 25 करोड़ रुपये की चुनावी बांड की एकमात्र खरीद को जनवरी 2024 में भाजपा ने भुना लिया था। भाजपा महाराष्ट्र राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है और ऊर्जा विभाग उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास है।

भिवंडी में पावरलूम मालिक, मजदूर और इस इंडस्ट्री से जुड़े लोग पावरलूम को एक ऐसे उद्योग की तरह देख रहे हैं जो शायद अपनी अंतिम सांस गिन रहा है। आलोचकों की मानें तो शायद ऐसा जानबूझकर किया गया है।

भिवंडी पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से शिवसेना यूबीटी के पूर्व विधायक रूपेश म्हात्रे ने आरोप लगाया, "वे भिवंडी के पावरलूम उद्योग को सूरत ले जाना चाहते हैं, क्योंकि सूरत में एक बड़ा कपड़ा बाजार है और यह टोरेंट के डिस्ट्रीब्यूटर सर्किल में से एक है।"

टोरेंट पावर के जिन अधिकारियों से इंडियास्पेंड ने बात की, उन्होंने बिजली बिलों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि यहां के मीटरों की जांच कर ली गई है। टेस्टिंग में ये मीटर बाकी मीटरों की तरह ही सटीक पाए गए हैं। उन्होंने पावरलूम उद्योग की खस्ता हालत के लिए अन्य कारकों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि राजनीतिक फायदे के लिए कंपनी को बदनाम किया जा रहा है। हालांकि, कई बार अनुरोध किए जाने के बावजूद कंपनी ने पावरलूम में मीटरों की टेस्टिंग का अपना कोई भी रिकॉर्ड अभी तक इंडियास्पेंड के साथ साझा नहीं किया है। इस संबंध में किसी भी तरह की जानकारी मिलने के बाद हम स्टोरी को अपडेट कर देंगे।

बिजली के बिल और आरोप

हाल ही में चुनावी बांडों के रद्द होने तक के डेटा को सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, चुनाव आयोग ने अब अपनी वेबसाइट पर डेटा के दोनों सेट प्रकाशित किए हैं - वे संस्थाएं जिन्होंने बांड खरीदे (यानी जिन्होंने चंदा दिया) और वो राजनीतिक दल जिन्होंने इन्हें भुनाया। शुरुआती आकलन से पता चला है कि टोरेंट पावर भारत में सबसे बड़े चंदा देने वालों में से एक था और इसके द्वारा खरीदे गए चुवानी बांड का एक बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ भाजपा ने भुनाया है।

इंडियास्पेंड की अपनी गणना से पता चलता है कि टोरेंट पावर ने अकेले 106.5 करोड़ रुपये का चंदा दिया, जिसमें से 76 करोड़ रुपये भाजपा ने भुनाए। 7.5 करोड़ रुपये की सबसे पहली किस्त 7 मई, 2019 को खरीदी गई थी। 25 करोड़ रुपये का हालिया बांड जनवरी 2024 में लिया गया था।

2007 से पहले भिवंडी को राज्य के बाकी हिस्सों की तरह एमएसईडीसीएल से बिजली सप्लाई होती थी, लेकिन तब इसमें बड़े पैमाने पर बिजली चोरी और खराब बिल वसूली की सूचना मिल रही थी। प्रायोगिक आधार पर इसमें सुधार के लिए 2007 में टीपीएल को डिस्ट्रीब्यूटर फ्रेंचाइजी दी गई। स्थानीय लोगों ने कहा कि इसके तुरंत बाद, लोगों को अधिक बिजली बिल मिलने लगे और जैसे-जैसे बकाया बढ़ता गया, कनेक्शन काटने की दर भी बढ़ती चली गई।

अलुवाला ने कहा, “पहले हमसे कहा गया कि बढ़ा हुआ बिल खराब वायरिंग या अन्य समस्याओं के कारण हो सकता है। लेकिन फिर कुछ नहीं बदला। सालों तक ऐसा होता रहा और टीपीएल के खिलाफ शिकायत करने के लिए कोई शिकायत निवारण तंत्र भी नहीं है। वे हमारी लिखित शिकायतें भी नहीं लेते हैं।''

रिसर्चर बी. बसु ने अपने 2019 के शोध पत्र में लिखा था, “क्लस्टर में बिजली की लागत लगभग 8.25 रुपये से 8.30 रुपये प्रति यूनिट है। हालांकि, सरकार 3 रुपये प्रति यूनिट की बिजली सब्सिडी प्रदान करती है, इसलिए कंपनी की शुद्ध बिजली लागत लगभग 5.25-5.30 रुपये प्रति यूनिट बैठती है। ” वह आगे लिखते हैं, "ऐसे आरोप लगे हैं कि सब्सिडी पाने के लिए संबंधित अधिकारियों को रिश्वत भी देनी पड़ी थी।"

पिछले साल भिवंडी में टोरेंट अत्याचार विरोधी जनसंघर्ष समिति द्वारा 'टोरेंट पावर के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन' का आह्वान करने के लिए जारी किए गए पैम्फलेट 

हालांकि फ्रेंचाइजी को महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) के अनुमोदित टैरिफ स्ट्रक्चर को मानना होता है। लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि समस्या टैरिफ के साथ नहीं है बल्कि मीटर के साथ है जो तेजी से भागता है। पावरलूम मालिकों ने इंडियास्पेंड को बताया कि पिछले कुछ सालों में उनका मासिक बिजली बिल 8,000-10,000 रुपये से बढ़कर 35,000 रुपये हो गया है।

इश्तियाक अंसारी का पावरलूम वेतालपाड़ा इलाके में साल 1977 में शुरू हुआ था।

अंसारी ने कहा, “तब वे कहा करते थे, सोना बेचो, लोहा खरीदो (सोना बेचो और पावरलूम खरीदो)। हमने करघे खरीदने के लिए पैसा इकट्ठा किया और अपनी मेहनत की पूरी कमाई इसी में झोंक दी। लेकिन पिछले कुछ सालों से इस व्यवसाय की हालत बद से बदतर होती जा रही है। सरकार की खराब नीतियां और आसमान छूते बिजली के बिल इसकी बड़ी वजह हैं। पहले बिजली का बिल हर महीने 6,000 से 8,000 रुपये आता था। टोरेंट ने वही टैरिफ सिस्टम जारी रखा, लेकिन धीरे-धीरे बिल बढ़ने लगे। अब बिल 35,000 रुपये आता है। साथ ही उत्पीड़न होता है, वो अलग।'

रिजवान अहमद ने इन सभी कारणों के चलते नालापार, कारीवाली क्षेत्र में चल रहा अपना पावरलूम बंद कर दिया है।

वह कहते हैं, ''मुझे 5.27 लाख रुपये का बिजली बिल (बकाया सहित) मिला है। अब अपने पास ताकत नहीं है। मैंने करघा एक रिश्तेदार को बेच दिया क्योंकि मुनाफा काफी कम हो गया था। भले ही बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण यूनिट बेकार पड़ी हो, लेकिन बिजली का बिल बढ़ता ही रहता है। इसलिए इसे बंद करना ही सबसे अच्छा उपाय था।”

पिछले कुछ सालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेतृत्व में बढ़े हुए बिजली बिलों के खिलाफ अलग-अलग विरोध प्रदर्शन हुए। आखिरी विरोध प्रदर्शन सितंबर 2023 में हुआ था। वकील किरण चन्ने और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय नेता विजय कांबले एक साथ मिलकर आगे आए थे। प्रदर्शनकारियों ने उस समय 'टोरेंट हटाओ, भिवंडी बचाओ' की मांग की थी।

कांबले ने कहा, "सरकार हर चीज को सेंट्रलाइज करने और हर चीज का नियंत्रण कुछ उद्योगपतियों के हाथों में देने की कोशिश कर रही है।"

32 सालों तक पावरलूम में मजदूर के रूप में काम करने वाले इंदु प्रकाश पांडे आज अपने काम को लेकर खुश नहीं है। वह कहते हैं कि अगर इसकी बजाय उन्होंने कोई और हुनर सीखा होता, तो उनके लिए अच्छा होता।

पांडे बताते हैं, “जब मैं 1991-92 में भिवंडी आया, तो मैंने 6,500 रुपये वेतन पर पावरलूम में काम करना शुरू किया था, जबकि मेरा गाव-वाला (पड़ोसी) कोई और काम करने के लिए मुंबई चला गया। वहां उस समय उसे हर महीने महज 700 रुपये मिलते थे। लेकिन आज वही व्यक्ति 40,000 रुपये कमा रहा है और मुझे पावरलूम में काम करने के 25,000 रुपये से भी कम मिलते हैं। हमारी मजबूरी बढ़ गई, लेकिन हमारा भाव नहीं बढ़ाया गया। अब भले ही इन दशकों में कपड़ों की कीमतें कई गुना बढ़ गई हों।” उनके मुताबिक, अब वह दूसरे पेशे में जाने के लिए बहुत बूढ़े हो चुके हैं। पावरलूम मालिक मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, इसलिए अगर उन्हें ज्यादा वेतन चाहिए तो इसके लिए उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भिवंडी के विजय कांबले (बाएं) और वकील किरण चन्ने, अन्य लोगों के साथ टोरेंट पावर का विरोध जता रहे हैं।

एक अन्य पावरलूम मालिक अकरम अंसारी का भी यही मानना है कि उद्योग की डूबती नैया का एक कारण बिजली के बिल हैं।

अंसारी बताते हैं, "मान लीजिए कि टीपीएल आने से पहले अगर आप प्रति यूनिट 10,000 रुपये का भुगतान कर रहे थे, तो अब आप 30,000 रुपये का भुगतान कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, “कंपनी का कहना है कि सभी मीटर ठीक चल रहे हैं। फिलहाल टोरेंट का एकाधिकार है और मुझे नहीं लगता कि यह कभी खत्म होगा। इसलिए सिर्फ वे ही पावरलूम बचे रह सकते हैं जिनके पास वैकल्पिक आय का जरिया है। वरना तो, 50 फीसद से ज्यादा करघे बिक चुके हैं।”

अंसारी ने कुशल श्रमिकों की कमी, यार्न बाजार की राजनीति, कपड़ा उद्योग पर बड़े लोगों का एकाधिकार और शोषण को भी उद्योग की गिरती स्थिति के लिए जिम्मेदार माना है।

कांग्रेस पार्टी के राशिद ताहिर मोमिन ने इसमें सरकारी नीतियों, खराब कपड़ा निर्यात, तकनीक की अपग्रेडेशन के लिए सब्सिडी में कमी, बिजली बिलों पर अतिरिक्त सब्सिडी की जरूरत, बाजार में आयातित कपड़ों की भरमार और तैयार कपड़ों पर एंटी-डंपिंग शुल्क की जरूरत को भी इसका कारण माना है।

100-करघा यूनिट के मालिक और भिवंडी पावरलूम फेडरेशन के अध्यक्ष मोमिन ने कहा, “जब टीपीएल आई तो मीटर बदल दिए गए और हमारे बिल बढ़ने लगे। ये तो पूरा भिवंडी बोलता है कि मीटर तेज चलता है। लेकिन हम यह नहीं बता सकते कि कैसे।'' उन्होंने पिछले साल विरोध प्रदर्शन में भी भाग लिया था।

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समाजवादी पार्टी के भिवंडी विधायक रईस शेख ने महाराष्ट्र विधान सभा में टोरेंट पावर की 'दादागिरी' के खिलाफ कई बार बात की है। उन्होंने मांग की थी कि एक लोकपाल नियुक्त किया जाए और लंबित बकाया बिल वाले लोगों की मदद के लिए योजनाएं लाई जाएं।

शेख ने 7 सितंबर, 2020 को ट्वीट किया था, “आज, विधानसभा के पहले दिन…हमने टोरेंट पावर के बेरहम व्यवहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है। हमने यह मुद्दा उठाया ताकि सरकार भिवंडी और मुंब्रा के लोगों को बढ़े हुए बिलों के कारण होने वाली समस्याओं पर ध्यान दे। ” मुंब्रा को भी 2019 में टीपीएल को फ्रेंचाइजी के रूप में भी सौंप दिया गया था।

2023 में भिवंडी में लोकपाल नियुक्त करने की शेख की मांग पर विधानसभा में बोलते हुए उपमुख्यमंत्री फड़णवीस ने कहा था कि सरकार इस पर विचार करेगी। एमएसईडीसीएल ने इसके तुरंत बाद भिवंडी में उपभोक्ता शिकायतों को संभालने के लिए दो नोडल अधिकारी नियुक्त कर दिए। इंडियास्पेंड ने एक अधिकारी से 2023 के बाद हुए घटनाक्रम पर टिप्पणी मांगी है। उनकी तरफ से जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा।

पूरे महाराष्ट्र में पावरलूम उद्योग के मुद्दों को देखने के लिए राज्य सरकार द्वारा 2023 में एक स्टडी ग्रुप भी बनाया गया था। ग्रुप में विधायक शेख भी शामिल थे। उन्होंने हाल ही में महाराष्ट्र के कपड़ा मंत्री चंद्रकांत पाटिल को अपनी सिफारिशें सौंपी हैं, जिसमें बिजली दरों में रियायतें लागू करना और कॉमन शेड में मल्टी-पार्टी पावर कनेक्शन की अनुमति देना शामिल है।

एक बड़ी इंडस्ट्री

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज की
2016 की रिपोर्ट
के अनुसार, भिवंडी में देश के कुल पावरलूम का 33 फीसदी हिस्सा या लगभग 12 लाख पावरलूम हैं। इस सेगमेंट का टर्नओवर सालाना करीब 10,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह इंडस्ट्री 700 वर्ग किमी में फैली है और लगभग 160,000 ग्राहक इसक साथ जुड़े हैं। भिवंडी के पावरलूम लगभग 20 लाख श्रमिकों के परिवारों का भरण-पोषण करते हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी हैं। पावरलूम क्षेत्र के राष्ट्रीय उत्पादन के लगभग 20% पर इसी शहर का योगदान है। यहां सूत से बने कपड़ों के प्रकार में ग्रे, प्रिंटेड कपड़े, रंगे कपड़े, सूती कपड़े और कपास, सिंथेटिक और अन्य फाइबर के विभिन्न मिश्रण शामिल हैं।

यहां एक साड़ी के ग्रे कॉटन हिस्से को तैयार किया जा रहा है। साड़ी के इस हिस्से को तैयार करने की जिम्मेदारी प्रभाकर अलुवाला जैसे ठेकेदारों या ‘बिचौलियो’' की होती है, जबकि अंतिम उत्पाद तैयार होने से पहले की प्रक्रिया का बाकी हिस्सा अन्य ठेकेदारों के जिम्मे होता है।

टोरेंट पावर भारत की पहली कंपनी थी जिसे वितरण फ्रैंचाइज़ी दी गई। उन्होंने भिवंडी से इसकी शुरुआत की थी। कंपनी का मानना है कि "भिवंडी और आगरा दोनों में एटी एंड सी घाटे (बिजली आपूर्ति की लागत और उपभोक्ताओं से एकत्र राजस्व के बीच का अंतर) में महत्वपूर्ण कमी लेकर आना कंपनी की परिचालन दक्षता का प्रमाण है"। टीपीएल के मुताबिक, भिवंडी में एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल (एटी एंड सी) घाटे में कमी आई है। जब उन्होंने कार्यभार संभाला था तब यह नुकसान 58 फीसद था। 2018-19 में में यह घटकर 14.9% हो गया।

शिवसेना (यूबीटी) के पूर्व विधायक म्हात्रे ने कहा कि वह पिछले 10 साल से इस मुद्दे को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। वह कहते हैं, "यह सच है कि बहुत सारे करघे बंद हो गए हैं और इसका एक बड़ा कारण टोरेंट पावर है।"

उन्होंने कहा, “उनका मीटर तेज चलता है और बिल बहुत ज्यादा आते हैं। जब वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता है तो मीटर जंप करता है (यूनिट बढ़ जाती हैं)। हालांकि कानून उपभोक्ताओं को टीपीएल के अलावा अन्य मीटर लगाने की अनुमति देता है, लेकिन उसके लिए टीपीएल की तकनीकी मंजूरी की जरूरत होती है, जो मिलना बेहद मुश्किल है। इसके कारण कोई भी दूसरा मीटर लगवाने की कोशिश नहीं करता है। कंपनी को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त है। इससे उनकी स्थिति और भी मजबूत हो गई है।

टोरेंट पावर द्वारा इंडियास्पेंड के साथ साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 और मार्च 2024 के बीच पावरलूम उपभोक्ताओं के लिए बिजली कनेक्शन की संख्या 21,462 से घटकर 21,100 हो गई है। पावरलूम सेटअप के लिए एक मीटर दिया जाता है और प्रत्येक सेटअप में कई करघे होते हैं। लेकिन टीपीएल का कहना है कि इस अवधि में इकाइयों की खपत समान रही है। इन बिजली कनेक्शनों ने 2020 में लगभग 1,798 मिलियन यूनिट की खपत की और कोविड-19 की वजह से गिरावट के बाद, 2024 में 1,749 मिलियन यूनिट की खपत पर वापस आ गए।

इंडियास्पेंड ने भिवंडी के लोगों की ओर से लगाए गए कई आरोपों का जवाब पाने के लिए महाराष्ट्र ऊर्जा मंत्रालय से संपर्क किया और पूछा कि क्या यहां मीटरों की कोई अलग से जांच की गई है? क्या पावरलूम उद्योग के मुद्दों के समाधान के लिए कोई कदम उठाए गए है ? या कोई योजना बनाई गई हैं? इंडियास्पेंड ने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार दोनों के कपड़ा मंत्रालय से भी संपर्क किया और पूछा कि पावरलूम उद्योग को फिर से उठाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं और क्या इन मुद्दों के समाधान के लिए किसी संयुक्त बैठक की योजना बनाई जा रही है। प्रतिक्रिया मिलने पर यह स्टोरी अपडेट की जाएगी।

चन्ने ने कहा, “भिवंडी में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां घर में ताला लगा होने या करघा बंद होने पर भी लोगों को उतना ही बिजली का बिल मिल रहा है, जितना उन्हें पहले मिलता था। कहीं कोई सुनवाई नहीं है क्योंकि सभी विभागों और पार्टी लाइनों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला है।''

इंडिपेंडेंट पावर सेक्टर विशेषज्ञ अशोक पेंडसे के मुताबिक, यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने उपभोक्ताओं से ऐसी शिकायत सुनी हैं।

पेंडसे ने कहा, ''कुछ साल पहले दिल्ली में भी ऐसे ही मामले सामने आए थे।'' वह आगे कहते हैं, “एक वैज्ञानिक तरीका है जिससे लोगों को अपनी परेशानी का हल मिल सकता है। उपभोक्ता अपने मीटरों की टेस्टिंग के लिए किसी प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थान या प्रयोगशाला में जमा कर सकते हैं। लेकिन अगर परिणाम नकारात्मक है तो उन्हें यह मान लेना होगा कि मीटर ठीक हैं। बहुत से उपभोक्ता ऐसा नहीं करते हैं और ये टकराव बने रहते हैं।''

टोरेंट पावर टैरिफ एमएसईडीसीएल से महंगे हैं' जैसी अफवाहों को दूर करने के लिए टोरेंट पावर लिमिटेड द्वारा छापा गया एक पोस्टर। कंपनी ने अफवाहों से निपटने और बिजली चोरी, मीटरों से छेड़छाड़ के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए कई गतिविधियां शुरू की हैं।

टीपीएल के जनसंपर्क अधिकारी चेतन बदियानी ने कहा कि उपभोक्ता अपने मीटर की जांच करा सकते हैं।

वह बताते हैं, “पहले भिवंडी में 7-8 घंटे बिजली गुल रहा करती थी। टीपीएल के आने के बाद से, जैसे ही हमने निर्बाध बिजली प्रदान करना शुरू किया, जाहिर तौर पर खपत बढ़ गई जिससे बिल बढ़ गए।” बदियानी ने आगे कहा, “हम एमएसईडीसीएल द्वारा अनुमोदित विक्रेताओं से मीटर खरीदते हैं। हमारी अपनी एनएबीएल (नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज) प्रमाणित लैब है जहां मीटरों का लगाने से पहले इनकी टेस्टिंग की जाती है। मुझे नहीं पता कि लोग यह सोचकर गुमराह क्यों हो रहे हैं कि मीटर तेज चलते हैं। सच तो यह है कि भिवंडी के कुछ लोगों को पहले बिजली बिल भरने की आदत नहीं थी। टीपीएल के आने के बाद यह सब बदल गया। इसके अलावा, पिछले कुछ सालों में सभी बिजली उपयोगिताओं के टैरिफ में वृद्धि भी हुई है।'' उन्होंने हमारे साथ वो विज्ञापन और पोस्टर साझा किए जो फ्रेंचाइजी ने भिवंडी में 'टैरिफ अधिक होने जैसी अफवाहों का मुकाबला करने के लिए' छपवाए हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लोगों के टीपीएल मीटरों की अन्य मीटरों के साथ टेस्टिंग की गई और वे समान सटीक रीडिंग देते पाए गए। हालांकि टीपीएल पावरलूम मीटरों के टेस्टिंग का रिकॉर्ड साझा नहीं कर सका, लेकिन उसने एक आवासीय उपभोक्ता का एक वीडियो हमें जरूर दिया, जिसमें उसके मीटर की टेस्टिंग और सटीक पाए जाने के बाद संतुष्टि व्यक्त की गई थी।

संपत्ति कर को लेकर उन्होंने कहा कि चूंकि संपत्ति कर एमएसईडीसीएल पर लागू नहीं होता है, तो यह उसकी फ्रेंचाइजी पर कैसे लागू हो सकता है? चुनावी बांड के विषय पर उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

बदियानी ने कहा, "भिवंडी के ज्यादातर लोग आपको यही कहते मिलेंगे कि वे हमारी बिजली आपूर्ति और सेवा से संतुष्ट हैं। हमारे पास पांच ग्राहक सेवा केंद्र, हेल्पलाइन हैं; एक उपभोक्ता शिकायत निवारण मंच भी है। अगर आप इन विरोध प्रदर्शनों के समय की जांच करेंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि ये हमेशा चुनावी फायदा पाने के लिए किए जाते रहे हैं। टोरेंट एक आसान टारगेट है, इसके अलावा कुछ भी नहीं है।'

(इंडियास्पेंड की इंटर्न प्रेरणा तोशनीवाल ने इस रिपोर्ट को तैयार करने में मदद की है)



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