जून में कम बार‍िश से प‍िछड़ी खरीफ फसलों की बुवाई

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों का कहना है कि उन्होंने बुआई में देरी की है क्योंकि जून में बुआई के लिए जरूरत से कम बारिश हुई। उन्‍होंने यह भी कहा क‍ि मौसम की अनिश्चितता उनकी अगली पीढ़ी को इस पेशे से दूर कर हर रही है।

Update: 2023-07-11 08:42 GMT

उत्‍तर प्रदेश में भदोही में धान की रोपाई करते क‍िसान। फोटो- म‍िथ‍िलेश धर दुबे।

मुंबई/लखनऊ: इस मौसम को खेती के ल‍िए सबसे सही माना जाता है। लेकिन नासिक के उतराने गांव के सुनील पगार अभी तक अपनी 10 एकड़ जमीन पर बुआई भी शुरू नहीं कर पाये हैं । वह मक्का बोने की योजना बना रहे हैं। लेकिन दक्षिण-पश्चिम मानसून में देरी की वजह से उनके गांव में 3 जुलाई तक अच्छी बारिश नहीं हुई। वे अब बाजश्रा बोने की सोच रहे हैं क्‍योंक‍ि उसके लिए कम पानी की आवश्‍यकता होती है। लेकिन चूंकि बहुत सारे दूसरे किसान भी ऐसा ही कर रहे हैं, इसलिए वे इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि फसल को क्या कीमत मिलेगी।

“शेतिचि सगली गणित बिघडुं गेली, मौसम साथ देत नहीं, बाजार साथ देत नहीं, महंगाई एवधि आनि बाजार भाव जुनेच आहे (कृषि का पूरा गणित गड़बड़ा गया है। न तो मौसम कृषि के लिए अनुकूल है, न ही बाजार। बीजए उर्वरक, कीटनाशक की कीमतें बहुत ज्‍यादा हैं। लेकिन किसानों को उनकी उपज के लिए जो दरें मिलती हैं, वे वही हैं),'' पगार कहते हैं।

यह भारत के लिए अल नीनो वर्ष है ज‍िसकी वजह से मौसम संबंधी घटनाक्रम होते हैं जो मानसून में भिन्नता का कारण बनती है। कहीं असामान्य रूप से बार‍िश होगी तो कहीं या सूखा। चक्रवात बिपरजॉय और अन्य मौसमी प्रभावों के बाद भी भारत में जून के अंत तक 10% मानसून की कमी रही।

30 जून तक भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप में 45% वर्षा की कमी थी। मध्य भारत में 6% और पूर्व उत्तर-पूर्व भारत में 18% की कमी थी। चक्रवात के कारण केवल उत्तर-पश्चिम भारत में इस तिथि तक 42% अतिरिक्त बारिश हुई थी। 30 जून तक दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में वर्षा (88.6 मिमी) 1901 के बाद से सबसे कम थी

बिहार संभावित सूखे जैसी स्थिति से न‍िपटने के लिए तैयारी कर रहा था। लेकिन जुलाई की शुरुआत से वहां बारिश बढ़ गई है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय कृषि उत्पादन केवल मामूली रूप से प्रभावित हुआ है। देश में इस सीजन में खरीफ फसलों की बुवाई शुरू हो जाती है जैसे धान, अरहर, कपास, मक्का और सूरजमुखी आद‍ि। लेकिन मानसून में देरी की वजह से इन फसलों की बुआई में 13% से 79% के बीच ग‍िरावट देखी गई। जबकि बाजरा और अरंडी जैसी अन्य फसलों की बुआई में 28% से 177% की वृद्धि देखी गई। जुलाई की शुरुआत में इसमें बदलाव आया क्योंकि कुछ क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई। लेकिन अरहर, मक्का, सूरजमुखी, कपास और चावल की बुआई में कमी अभी भी बनी हुई है।

केंद्र सरकार भी मानसून की प्रगति पर करीब से नजर रख रही है क्योंकि अल नीनो घटना खाद्य सुरक्षा और मुद्रास्फीति को प्रभावित कर सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को बताया कि रिजर्व बैंक हेडलाइन मुद्रास्फीति को अपने 4% लक्ष्य तक लाने का प्रयास करेगा। लेकिन यह भी कहा कि अल नीनो उसके प्रयासों के लिए एक चुनौती होगी।

क्या कहते हैं मौसम वैज्ञानिक

आम तौर पर केरल में मानसून की शुरुआत 1 जून के आसपास घोषित की जाती है। इस साल मानसून 8 जून को केरल पहुंचा। फिर दक्षिणी प्रायद्वीप और मध्य भारत में इसके आगे बढ़ने में सात से 12 और पूर्वोत्तर भारत में पांच दिन की देरी हुई।

1 जून से 21 जून के बीच भारत में 33% बार‍िश की कमी थी जिसमें 60% की कमी के साथ मध्य भारत, 58% की कमी के साथ दक्षिणी प्रायद्वीप, 18% की कमी के साथ पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत और 18% की कमी और उत्तर-पश्चिम 37% ज्‍यादा बार‍िश के साथ शामिल था। 25 जून के बाद हुई बारिश के कारण ही इनमें से कुछ क्षेत्रों में कमी कम हुई और कुल कमी 10% पर आ गई। 2 जुलाई तक मानसून छह दिन पहले ही पूरे भारत में पहुंच गया था। लेकिन फिर भी 6 जुलाई तक, 35% जिलों में बार‍िश कम हुई। 32% में सामान्य वर्षा हुई और 28% में अधिक या बहुत अधिक बार‍िश हुई।


वास्तव में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तटीय आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पूर्वी मध्य प्रदेश, विदर्भ और तेलंगाना में जून में सामान्य से अधिक द‍िनों में हीट वेव देखे गये।

इस वर्ष जून असामान्य रूप से गर्म था। अधिकतम औसत तापमान के मामले में ये महीना भारत का 10वां से सबसे अध‍िक गर्म महीना रहा। दक्षिण भारत के लिए यह 1901 के बाद से दर्ज इतिहास का सबसे गर्म जून था जिसमें औसत अधिकतम तापमान 34.05ºC था।

बिहार में 1 से 22 जून के बीच, पश्चिम बंगाल में 1 से 18 जून के बीच और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 12 से 21 जून के बीच लगभग हर दिन भीषण लू चली।

अल नीनो प्रभाव

अंतर-वार्षिक भिन्नताएं मानसून के वार्षिक चक्र में भिन्नताएं हैं जो असामान्य रूप से बार‍िश या सूखे वर्ष का कारण बनती हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून की अंतर-वार्षिक भिन्नता को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कारक अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) और हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) हैं। आईएमडी ने चेतावनी दी है कि भारत के लिए मानसून के मौसम के मध्य में अल नीनो की स्थिति विकसित होने और 2024 की पहली तिमाही तक जारी रहने की उच्च संभावना है। यदि ऐसा होता है तो अल नीनो इस वर्ष के मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। और यह घटना सिर्फ भारत को ही प्रभावित नहीं करेगी। 4 जुलाई को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने चेतावनी दी कि सात वर्षों में पहली बार उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो की स्थिति विकसित हुई है जिससे वैश्विक तापमान और विघटनकारी मौसम और जलवायु पैटर्न में संभावित वृद्धि के लिए मंच तैयार हो गया है।

डब्ल्यूएमओ की स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट के अनुसार बहुत शक्तिशाली एल नीनो घटना और ग्रीनहाउस गैसों से मानव-प्रेरित वार्मिंग की दोहरी मार के कारण वर्ष 2016 रिकॉर्ड सबसे गर्म रहा। वैश्विक तापमान पर प्रभाव इसके विकास के एक साल बाद देखा जाता है और इसलिए इस वर्ष का प्रभाव 2024 में सबसे अधिक स्पष्ट होगा।

इन सबके बावजूद आईएमडी इस तथ्य पर भरोसा करते हुए जुलाई में अच्छी बारिश को लेकर आश्वस्त है कि 25 अल नीनो वर्षों में से 16 में जब जून में बारिश सामान्य से कम थी जुलाई में बारिश सामान्य थी।

किसान चिंतित

किसानों के लिए मानसून में इस तरह की देरी से फसल कैलेंडर पर असर पड़ता है।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर के मरियाहू गांव के निवासी प्रमोद मिश्रा ने इस साल के अंत में अपनी धान की नर्सरी लगाई। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हर साल हम 15 मई से जून के पहले सप्ताह के बीच नर्सरी लगा देते थे। लेकिन इस साल उस दौरान तापमान बहुत ज़्यादा था। ऐसी स्थिति में नर्सरी के जलने (पौधों के मरने) का डर मंडरा रहा था। इसलिए हमें कुछ बारिश का इंतजार करना पड़ा। लेकिन मानसून में देरी के कारण फसल की बुआई में 15 से 20 दिन की देरी हो गई। अब इसका असर बुआई के अगले चक्र पर पड़ेगा क्योंकि हमारे पास तैयारी के लिए कम समय होगा।”

इसकी वजह से उनकी इनपुट लागत भी बढ़ गई।

“मैंने अभी जो नर्सरी लगाई है उसे भूजल से सींचना पड़ा। अन्य किसान जिनकी नर्सरी खराब हो गई थी उन्हें दोबारा बुआई करने में अधिक खर्च करना पड़ा। इसके अलावा जब धान को पानी की जरूरत होगी, तब तक मानसून खत्‍म हो चुका होगा। इसका मतलब है कि हमें सिंचाई के लिए फिर से भुगतान करना होगा,” मिश्रा ने आगे कहा।

इसके अलावा ग्रामीण यूपी में भी बिजली कटौती हुई।

“इससे पानी की अनुपलब्धता हुई जिससे नर्सरी बोने में देरी हुई। अगर समय पर बारिश हो जाती तो यह नुकसान नहीं होता। एक फसल में देरी से पूरे फसल चक्र में गड़बड़ी हो जाती है, ”लखीमपुर खीरी के किसान हरीश सिंह ने कहा।

बिहार का दरभंगा जिला मखाना की खेती के लिए जाना जाता है। लेकिन इस बार कम बारिश के कारण किसानों को नुकसान हुआ है।

किसान धीरेंद्र कुमार ने कहा, ''इस बार जून में बारिश की कमी और अधिक गर्मी के कारण मखाना के पौधे मुरझा गये। अगर बारिश होती तो हम इन्हें जुलाई या अगस्त में तालाब से निकाल लेते। लेकिन इस बार कटाई पहले करनी पड़ेगी जिससे उत्पादन में 15-20% की कमी आएगी।”

धीरेंद्र ने यह भी बताया कि कम बारिश के कारण उनकी सिंघाड़े की नर्सरी अभी तक नहीं लग पाई है1 इसकी खेती 15 से 20 दिन पिछड़ रही है.

पटना मौसम विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी सी. आनंद शंकर ने कहा, 27 जून तक, बिहार में 29 मिमी बारिश हुई थी, जबकि राज्य की जून में औसत बारिश लगभग 167.2 मिमी थी। 6 जुलाई तक बिहार में वर्षा की कमी 24% तक कम हो गई थी। तब भी केवल तीन जिलों में सामान्य और तीन में अधिक बारिश हुई थी। शेष में या तो बारिश नहीं हुई या कम बारिश हुई।

किसानों की परेशानी इस साल भारत के खरीफ बुआई के आंकड़ों में भी झलकती है। चालू वर्ष में खरीफ फसलों का बोया गया क्षेत्रफल 12.95 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) था, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 13.56 मिलियन हेक्टेयर (26 जून तक के आंकड़े) था। मोटे अनाजों का बुआई क्षेत्र पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 507,000 हेक्टेयर अधिक था। लेकिन धान (-569,000 हेक्टेयर) और कपास (-465,000 हेक्टेयर) के साथ कम क्षेत्र बोया गया था।

30 जून तक इसमें सुधार हुआ क्योंकि खरीफ फसल के तहत बोया गया कुल क्षेत्रफल 20.3 मिलियन हेक्टेयर था जबकि पिछले इस समय तक यह 20.2 मिलियन हेक्टेयर था।

लेकिन इन आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि खरीफ की बुआई में सब कुछ ठीक नहीं है। धान की बुआई अभी भी -26%, अरहर की -79%, मक्का की -24%, सूरजमुखी की -65% और कपास की 13% कम थी। दूसरी ओर मूंग (28%), मूंगफली (34%), बाजरा (177%) और अरंडी (171%) जैसी फसलों की बुवाई अब तक उम्मीद से अधिक रही हैं।

वहीं राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि असम, बिहार, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और तेलंगाना में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में खरीफ फसलों का बुवाई क्षेत्र बहुत कम है। जैसा कि बार‍िश के आंकड़ों में द‍िखाया गया है, गुजरात और राजस्थान (उत्तर-पश्चिम भारत जहां अधिक वर्षा होती है) दोनों में तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक खरीफ फसलों की बुवाई ज्‍यादा क्षेत्र हुई है।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स के निदेशक (अनुसंधान) पूषन शर्मा ने पुष्टि की कि दक्षिण पश्चिम मानसून के आगमन में देरी और इसकी धीमी गति का जून के पहले तीन हफ्तों में खरीफ की बुआई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

“हालांकि जून के आखिरी सप्ताह से मानसून की गति बढ़ने के साथ, 2023 के खरीफ के लिए कुल रकबे में गिरावट की संभावना नहीं है। 30 जून तक खरीफ फसलों का क्षेत्रफल थोड़ा अधिक होने की सूचना है।”

और क्या इसका असर समग्र खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ेगा? शर्मा ऐसा नहीं सोचते।

शर्मा ने कहा कि अल नीनो प्रभाव के कारण अगस्त और सितंबर के दौरान कम वर्षा की संभावना के साथ, कपास, तिलहन और दालों जैसी फसलों की पैदावार पर मामूली असर पड़ने की उम्मीद है। इन फसलों की बुआई में देरी से उनके देर से विकसित होने-जल्दी फूल आने की स्थिति हो सकती है जो पूर्वानुमानित कम वर्षा की स्थिति (अल नीनो के कारण) के साथ मेल खाती है। शर्मा का मानना है कि मॉनसून की निरंतरता और भारत में कितनी अच्छी तरह से वितरित वर्षा महत्वपूर्ण बनी हुई है।

कृषि अर्थशास्त्री और मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर आर. रामकुमार का भी मानना है कि यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या इसके परिणामस्वरूप इस वर्ष कुल बोए गए क्षेत्र में कमी आएगी।

सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक रामनजनेयुलु जी.वी. ने कहा कि अभी सबसे बड़ी चिंता जुलाई-अगस्त की अवधि में संभावित सूखा है क्योंकि यह फसलों के लिए एक संवेदनशील अवधि है।

“हमें धान का रकबा कम करना चाहिए और उस पानी का उपयोग अन्य फसलों के लिए करना चाहिए। लेकिन हमारी सिंचाई प्रणालियां बाढ़ सिंचाई के लिए बनाई गई हैं न कि किसी नियंत्रित विधि के लिए। धान के कारण मिट्टी में पानी भर जाता है और उस मिट्टी में अन्य फसलें नहीं उगाई जा सकतीं। तब या तो किसान सूखी बुआई की ओर रुख करते हैं या बारिश का इंतजार करते हैं। देरी से बुआई करने से रबी फसल में भी देरी होती है,'' उन्होंने कहा।

रामानजनेयुलु का मानना है कि बीमा और मुआवजे के मामले में किसानों के जोखिम को कवर करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

इंडियास्पेंड ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन से संपर्क किया है कि वे विलंबित खरीफ बुआई की पृष्ठभूमि पर किसानों को जानकारी और सहायता प्रदान करने के लिए क्या उपाय कर रहे हैं, क्या इससे इस वर्ष भारत के समग्र खाद्य उत्पादन पर असर पड़ने की उम्मीद है और सरकार किसानों के लिए बीमा और मुआवजे की दिशा में क्या कदम उठा रही है। अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं आया है। जवाब म‍िलते ही खबर अपडेट कर दी जायेगी।

महाराष्ट्र के नासिक के किसान सुनील पगार अनिश्चितता से थक चुके हैं। अब वह जुलाई के पहले कुछ हफ्तों में अच्छी बारिश की उम्मीद कर रहे हैं ताकि वह अपनी मक्का लगा सकें।

“मेरी पीढ़ी अब खेती से थक चुकी है और हम इसे अब और नहीं करना चाहते हैं। लेकिन हमारे पास आजीविका का कोई अन्य साधन नहीं है और कोई विकल्प भी नहीं है। कोई भी खेत में मजदूरी नहीं करना चाहता क्योंकि अन्य क्षेत्रों में मजदूरी के लिए कृषि की तुलना में अधिक पैसे म‍िलते हैं। मुझे नहीं पता कि अगली पीढ़ियां खेती करना चाहेंगी या नहीं,'' पगार ने कहा।

(इस र‍िपोर्ट में श्रीहरि पलिअथ, नुशैबा इकबाल और नुपुर माले का अत‍िर‍िक्‍त योगदान।)


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