मुज़फ़्फ़रनगर: केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में सारी कृषि मंडियों को इंटरनेट से जोड़कर एक संयुक्त राष्ट्रीय मंडी बनाने के उद्देश्य से ई-मंडी योजना की शुरुआत की। ई-मंडी यानी इंटरनेट पर चलने वाली इस मंडी के ज़रिए किसान देश के किसी भी राज्य में फसल का दाम जानकर कहीं के भी व्यापारी को अपनी फसल बेच सकता है।

साल 2021-22 का वित्तीय बजट पेश करते वक़्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि ई-मंडी की सफलता और कृषि बाज़ार में इसके द्वारा लायी गयी पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को देखते हुए सरकार ऐसी और 1000 मंडियाँ ई-मंडी से जोड़ी जाएँगी।

लेकिन देश के किसानों को अभी इस ई-मंडी व्यवस्था पर भरोसा नहीं। लगभग पाँच साल के बाद भी ये मंडियाँ देश के किसानों को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल रही हैं। देश में कुल 8,900 मंडियाँ हैं जिनमें से अब तकसिर्फ़ 18 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों की 1,000 मंडियाँ, ई-मंडी योजना से जुड़ पायी हैं। देश भर में लगभग 12 करोड़ किसान हैं जिनमे से महज़ 1.69 करोड़ ई-मंडियों से जुड़े हुए हैं, और ये आँकड़ा भी सरकारी है, ज़मीनी हक़ीक़त इस से कुछ अलग है। जो मंडियाँ पाँच साल से जुड़ी हुई हैं वहाँ भी व्यापार ना के बराबर हो रहा है।क्योंकि इन मंडियों के सुचारु होने में जिन आधारभूत सुविधाओं की ज़रूरत होती है वे अभी नदारद हैं।

क्या है ई-मंडी और इन्हें क्यों बनाया गया?

ई-मंडी का पोर्टल एक ऐप और वेबसाइट है जो 12 भाषाओं में उपलब्ध है। किसान इस ऐप के इस्तेमाल से 100 किलोमीटर तक मंडी ढूँढ कर वहाँ अपनी फसल ले जा कर, उसकी गुणवत्ता की जाँच करवाकर, उसे ऐप पर बेचने के लिए डाल सकते हैं। इसी ऐप के ज़रिए देश का कोई भी व्यापारी इस फसल को ख़रीदने के लिए इस पर बोली लगा सकता है जिसकी सूचना किसान को लगातार ऐप के ज़रिए मिलती रहती है। ऐप के ज़रिए किसान ये भी देख सकता है कि उसकी फसल का दाम अन्य मंडियों में कितना चल रहा है।

व्यापारी ये फसल ख़रीदने से पहले फसल की गुणवत्ता का सर्टिफ़िकेट, फसल की तस्वीर आदि देख सकते हैं और ख़रीद के बाद इंटरनेट के माध्यम से पैसे भी दे सकते हैं। व्यापारियों को एक लाइसेंस दिया जाता है जो देश भर की किसी भी ई-मंडी में व्यापार के लिए वैद्य होता है। साथ ही व्यापारी को पहली थोक ख़रीद के वक्त एक बार सिंगल-प्वाइंट मंडी फ़ीस देनी होती है।

ये व्यवस्था किसान और व्यापारी दोनो को सीधे जोड़ती है जिससे बिचौलियों को जाने वाला ख़र्च किसान और व्यापारी दोनो के लिए ही बचता है। इस पूरी प्रक्रिया को चलाने के लिए सरकार के अनुसार मंडी के कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी दी गयी है।

आधारभूत सुविधाओं की कमी

मुज़फ़्फ़रनगर की गुड़ मंडी भारत की सबसे बड़ी गुड़ मंडियों में से एक है और इस मंडी को साल 2016 में ई-नाम योजना से जोड़ा गया था। इस मंडी के व्यापार के बारे में बात करते हुए इस मंडी के सचिव राकेश कुमार सिंह बताते हैं कि यहाँ हर रोज़ लगभग 3,000 से 4,000 क्विंटल गुड़ आता है।

कैप्शन: मुज़फ़्फ़रनगर की गुड़ मंडी में तोलने के बाद व्यापारी की गाड़ी में रखा जा रहा गुड़। फोटो: साधिका तिवारी

जब इंडियास्पेंड की टीम इस 'नवीन मंडी स्थल' पहुंची तो दो बड़े चबूतरों पर किसान अपना गुड़ व्यापारियों और आढ़तियों को बेचते दिखाई दिए। इन चबूतरों के बीच एक नई बनी तीन मंज़िल इमारत दिखाई दी, जिसपर बड़े-बड़े अक्षरों में 'ई-एनएएम मुज़फ़्फ़रनगर' लिखा हुआ था। हालांकि बिल्डिंग के अंदर सब वीरान था और इससे ज़्यादा अचम्भे की बात थी कि मंडी के किसान और को इस इमारत पर लिखे शब्दों का मतलब भी नहीं पता था।

ढूंढने पर हमें एपीएमसी मंडी का सरकारी दफ़्तर मिला, इस दफ़्तर में कहने पर ताला खुलवाया गया। ई-मंडी की नयी तैयार की जा रही बिल्डिंग से दूर, इस दफ़्तर की दूसरी मंज़िल पर एक बड़ा हॉल था जिसमें कुछ कम्प्यूटर रखे हुए थे। इस हॉल को 'डिजिटल व्यापार सुविधा केंद्र' कहा जाता है जहां ई-मंडी योजना के तहत व्यापारी किसानों द्वारा लाए गए उत्पाद को ख़रीदने के लिए इंटरनेट पर बोली लगा सकते हैं। हालांकि इस हॉल में कोई भी मौजूद नहीं था ।

मुज़फ़्फ़रनगर की ई-मंडी का ख़ाली पड़ा 'डिजिटल व्यापार सुविधा केंद्र'। फोटो: साधिका तिवारी

योजना को इस मंडी में लागू हुए पाँच साल से ऊपर बीतने के बाद भी इतनी बड़ी मंडी में जहाँ हज़ारों किसान रोज़ आते हैं, हमें ना तो ऐसा कोई किसान मिला जो ई-मंडी के बारे में जानता हो और ना ही हमें यहाँ ई-मंडी योजना के तहत कोई व्यापार होता दिखाई दिया ।

इस मंडी की स्थिति देश की ज़्यादातर ई-मंडियों की एक झलक है जो कि योजना के हिसाब से नामांकित कर दी गयी है लेकिन संसाधनों और सुविधाओं से कोसों दूर हैं।

किसानों को ऐप का इस्तेमाल नहीं आता। मंडियों में गुणवत्ता की जाँच के लिए सही उपकरण नहीं है। अगर किसान अपने ज़िले की मंडी में मौजूद कम्प्यूटर के ज़रिए भी ई-मंडी में फसल बेचने की कोशिश करे तो यहाँ उनकी सहायता के लिए कोई नहीं है।

ई-मंडी का पूरा काम पारम्परिक किसानों के लिए बिलकुल नया हैं और उन्हें इसे सीखने के लिए ट्रेनिंग की भी आवश्यकता होगी लेकिन जिले के ई-मंडी केंद्र में ये जानकारी किसानों तक पहुँचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई भी अधिकारी या सहायक किसानों की सहायता लिए इस केंद्र में मौजूद नहीं है।

सरकार के अनुसार ई-मंडियाँ किसानों को ये सारी ही सुविधा दिलाएँगी, पर ऐसा हो नहीं पा रहा है।

ई-मंडी के बारे में पूछने पर, मुज़फ़्फ़रनगर के शोरम गाँव के 66 साल के रमेश चंद, जिनकी 8 बीघा ज़मीन है, ने अपनी जेब से अपना फ़ोन निकलते हुए कहा, "हमें इसमें एक बटन दबा कर सिर्फ़ फ़ोन उठाना आता है, हम इंटरनेट पर अपनी फसल कैसे बेच लेंगे?"

मुज़फ़्फ़रनगर के शोरम गाँव के 66 साल के रमेश चंद (बीच में) और उनके साथी अपना फ़ोन दिखाते हुए जिसमें ई-मंडी ऐप काम नहीं कर सकती। फोटो: साधिका तिवारी

ई-मंडी योजना के सफल होने के पहले कुछ ज़रूरी सुविधाओं का किसानों तक पहुँचना ज़रूरी है, इनमे इंटरनेट जैसे आम हो चुकी सुविधा तक शामिल है। ई-मंडी ऐप पर किसान को अपना उत्पाद बेचना शुरू करने से पहले अपना पंजीकरण ऐप पर खुद ही करना पड़ता है, "कोई बताये, कहाँ जा कर क्या करना है, तो हम कर भी लें। खुद से तो ना हमारे पास इंटरनेट है ना हमें मोबाइल चलाना आता है। हम तो अनपढ़ लोग हैं," शोरम गाँव के तेजपाल सिंह ने बताया।

सरकार का कहना है कि ई-मंडी चलाने के लिए मंडी के कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गयी है पर इन कर्मचारियों का कहना है कि इनके पास पहले ही बहुत काम है, ई-मंडी इनका कार्यभार और बढ़ा देगी। ई-मंडी के लिए जिन कम्प्यूटर चालकों को रखा गया था, लॉकडाउन के समय उन्हें भी नौकरी से निकालने के आदेश दे दिए गए थे।

मुज़फ़्फ़रनगर की ई-मंडी में ई-ऑक्शन की सुविधा उपलब्ध है, हालाँकि इसे कैसे इस्तेमाल करना है और कम्प्यूटर कैसे चालने हैं, किसानो को ये बताने के लिए यहाँ कोई मौजूद नहीं है। फोटो: साधिका तिवारी

"पहले स्टाफ़ हुआ करता था पर 5 जून, 2020 में सरकार ने ई-मंडी ऑपरेटर को भी नौकरी से निकाल दिया। हमारे पास अपना ही काफ़ी काम होता है, ये ऊपरी कार्यभार कौन सम्भालेगा," अजय कुमार, मुज़फ़्फ़रनगर मंडी के एसएएमआई यानी सीन्यर ऐग्रिकल्चर मार्केटिंग इन्स्पेक्टर ने कहा।

"यहाँ पर मैं अकेला व्यक्ति हूँ ये सब देखने के लिए, मेरा काम मुख्य तौर पर रेट इखट्टा करना है, ई-नाम को लेकर रोज़ नयी नीतियाँ आती रहती हैं, एक अकेला व्यक्ति लैब भी देखे, ई-मंडी का और काम भी देखे और अपना मंडी का काम भी करे, ऐसे में दिक्कत तो होती है। ई-नाम के लिए एक अलग इंस्पेक्टर की ज़रूरत है," अजय ने बताया।

गुणवत्ता के प्रभावहीन मानक

ई-मंडी योजना के तहत जब किसान अपनी फसल ले कर अपने पास की किसी मंडी में जाता है तो उसकी जाँच की जाती है। ई-मंडी पोर्टल पर 175 तरह के कृषि उत्पादों के लिए कुछ सामान्य गुणवत्ता पैमाने दिए गए हैं। उत्पादों की पैमाने पर जाँच करके उन्हें एक गुणवत्ता का सर्टिफ़िकेट दिया जाता है। ज़्यादातर पैमाने रंग, आकार और प्रकार से जुड़े होते हैं। हर उत्पाद के पैमाने की अलग सूची होती है। उदाहरण के तौर पर गुड़ के लिए देखा जाता है कि ये साफ़ और ठोस हो, चिपचिपा ना हो, समान आकार का हो, कोई भी असमान्य स्वाद या सुगंध, फ़ंगस, गंदगी ना हो।

गुड़ के प्रकार का नाम और लाए गए पूरे उत्पाद की एक तस्वीर चढ़ायी जाती है। इसके बाद अगर इसका रंग हल्का सुनहरा, या पीला-सफ़ेद है तो ये पहली श्रेणी में रखा जाएगा और अगर हल्का भूरा, या गाढ़ा लाल होगा तो तीसरी श्रेणी में रखा जाएगा। इसके बाद इसे तीन ज़रूरी पैमाने पर जाँचा जाता है-- नमी, मिलावट और टूटे हिस्से।

मुज़फ़्फ़रनगर की गुड़ मंडी में ई-मंडी होने के बावजूद आढ़तियों को गुड़ बेचते किसान जहाँ गुड़ की जाँच आढ़ती खुद देख कर करता है और व्यापारी तक पहुँचाता है। फोटो: साधिका तिवारी

जाँचने के लिए तय नियमों के हिसाब से लायी गयी कुल फसल में से रैंडम सैम्पल उठाकर, उन्हें आपस में मिलाकर, गुड़ की जाँच लैब में की जाती है।जाँच के नतीजे के अनुसार गुड़ को प्रथम, द्वितीय या तृतीय श्रेणी में रखा जाएगा।

"हमारे पास कुछ उपकरण हैं, कुछ अभी नहीं हैं," अजय कुमार ने बताया, "नयी इमारत में सब कुछ जल्द ही शिफ़्ट होगा तब तक ये सारे उपकरण आ जाने चाहिये।" जिस लैब की ये बात कर रहे हैं वो अप्रैल 2016 में सुचारु हो जानी थी।

"गुड़ की ग्रेडिंग हमारे लैब में अभी फ़िलहाल नहीं हो पा रही है," अजय ने बताया। हालाँकि इस मंडी में सबसे बड़ा व्यापार गुड़ का ही किया जाता है। अजय ने ये भी कहा कि हम गुड़ को सिर्फ़ दो पैमानों पर नापते हैं, "रंग और नमी," जबकि सरकार के अनुसार इसे कई और पैमानो पर भी जाँचा जाना चाहिए।

"हमारे पास कोई आधुनिक उपकरण तो है नहीं, मैन्यूअली ही सारा काम होता है और मैन्यूअल जाँच में तो थोड़ी बहुत कमी रह ही जाती है। अगर आधुनिक उपकरण हों तो सैम्पल डालने पर खुद ही पता चल जाएगा कि फसल का क्या ग्रेड है और उसमें क्या कमियाँ हैं," अजय ने बताया।

मुज़फ़्फ़रनगर की ई-मंडी में मौजूद उपकरण जो फसल की ग्रेडिंग और जाँच के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। देश की सबसे बड़ी गुड़ मंडियों में शामिल होने के बावजूद इन उपकरणों में गुड़ की जाँच के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं है। फोटो: साधिका तिवारी

ई-मंडी व्यवस्था में भरोसे की कमी

"गुड़ जैसी वस्तु की सही जाँच कर पाना बहुत मुश्किल है, मेरी समझ में व्यापारी के लिए एक सर्टिफ़िकेट भरोसे के लिए काफ़ी नहीं है, यहाँ पर ज़्यादातर ग्रेडिंग फ़िज़िकल पैमानो पर ही की जाती है," नवीन स्थल मंडी, मुज़फ़्फ़रनगर, के सचिव, राकेश कुमार सिंह ने बताया। "कोई भी सर्टिफ़िकेट कुछ चीजों की जाँच ही नहीं कर सकता, जैसे रंग साफ़ करने के लिए गुड़ में हाइड्रो सल्फ़र नाम का एक रसायन मिलाया जाता है, इसकी मात्रा 40 के अंदर होनी चाहिए पर सब जानते हैं कि कुछ किसान अपने गुड़ में 200 की मात्रा से भी ज़्यादा डालते हैं, हमारे पास इसे जाँचने का कोई तरीक़ा ही नहीं है" सिंह ने कहा।

"स्थानीय व्यापारी के सामने ट्रॉली खड़ी है, वो इंटेरनेंट पर गुड़ देख कर क्यों ख़रीदेगा और बाहर का व्यापारी बिना देखे भरोसा कैसे करेगा, ऐसे में व्यापारी या तो खुद गुड़ को देखे या उसका कोई भरोसेमंद आढ़तिया, इतने बड़े लेन देन के लिए किसान और व्यापारी का आपस में भरोसा होना ज़रूरी है," उन्होंने कहा।

नवीन स्थल मंडी, मुज़फ़्फ़रनगर, के सचिव, राकेश कुमार सिंह। फोटो: साधिका तिवारी

"गुड़ कोई इंटरनेट पर ख़रीदने वाली चीज़ है! ऊपर से कुछ और हो अंदर कोई ख़राब क्वालिटी हो, ये हमें क्या पता कि जो हमने फ़ोटो देखी वो ही फसल आएगी या नहीं?," गुड़ व्यापारी किसान चंदर मूँडना ने बताया।

दूसरी और किसानों को भी अपने भुगतान को लेकर डर लगा रहता है।

"किसानों को मंडी में बेचने पर तुरंत नकद राशि मिल जाती है, ऑनलाइन पेमेंट पर किसान भरोसा नहीं करेंगे और व्यापारी से लेकर किसान को पैसा देने के लिए भी आढ़तिये चाहिए जो इस व्यवस्था में मौजूद नहीं है," सिंह ने बताया।

"हम इंटरनेट पर वेरिफ़ाई कैसे करेंगे कि हम किसे बेच रहे हैं, बेच भी दिया तो उस से पैसा कैसे लेंगे, इतना बड़ा लेन-देन इंटरनेट पर थोड़े हो सकता किसी अनजान व्यक्ति के साथ," 60 वर्ष के चंदन कुमार सिंह जिनकी 50 बीघा ज़मीन है, ने बताया। "और हज़ार मंडियाँ बनाने के पहले सरकार किसान को ट्रेनिंग तो दे, उन्हें इसके बारे में कौन बताएगा। हम पढ़े लिखे हैं, हम फिर भी इस दफ़्तर में नहीं गए, किसान कभी नहीं कर पाएगा ये," चंदन ने कहा।

मुज़फ़्फ़रनगर गुड़ मंडी में अपना गुड़ बेचने आया किसान। फोटो: साधिका तिवारी

ई-मंडी की ये व्यवस्था किसान और व्यापारी के बीच भरोसे की महत्वपूर्ण कड़ी -- आढ़तियों -- को तोड़ती है जिसकी वजह से व्यापारी और किसान दोनों ही इस व्यवस्था को अपनाने से घबराते हैं। किसान का कहना है कि वो इंटरनेट पर बैठे व्यापारी के बारे में कुछ नहीं जानता, उसे अपनी फसल किसी अनजान को बेचने पर भरोसा नहीं है। व्यापारी का कहना है कि अगर किसान ने फसल के साथ धोखाधड़ी करी तो वो क्या करेगा, बिचौलिया होने पर उसे भरोसा रहता है कि जिस फसल के उसने पैसे दिए हैं उसे वही फसल पहुँचायी जाएगी।

एक सरकारी लाइसेंस के साथ आढ़तिए का होना भी ज़रूरी है किसान और व्यापारी दोनो के लिए, "किसान के लिए फसल की पैकिंग, लोडिंग आदि में सहायता के लिए और व्यापारी की तरफ़ से ये गारंटी लेने के लिए कि जिसके उसने पैसे दिए हैं वो फसल भेजी जाए और रास्ते में उसे ठीक से पहुँचाने की ज़िम्मेदारी ले सके। राज्यों से बाहर के व्यापारी किसी एजेंट या कमिशनर के द्वारा ख़रीदना ही बेहतर समझते हैं पर ई-मंडी की व्यवस्था में ऐसे कोई आढ़ती मौजूद नहीं है," राकेश कुमार सिंह ने बताया।

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