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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरु किए गए “2022 तक सबके लिए आवास” योजना को समाप्त होने में केवल सात वर्ष रह गए हैं। इस योजना के तहत शहरी गरीबों एवं झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को कम ब्याज दर पर सस्ते मकान उपलब्ध कराए जाएंगें। इस योजना का महत्व ऐसे में और बढ़ जाता है जब हर रोज़ गांव से शहर आने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।

योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य को यदि पूरा करना है तो हर साल 16 मिलियन या हर रोज़ 44,000 मकान का निर्माण करना होगा।

इंडियास्पेंड ने छह मुख्य अड़चनों की पहचान की है जिसे सरकार को अपने लक्ष्य पूरा करने के लिए हर हाल में पार करना होगा।

  1. 1. शहरों की बढ़ती आबादी: संयुक्त राष्ट्र के साल 2014 के रिपोर्ट के मुताबिक भारत के दो मेट्रो शहर, दिल्ली एवं मुंबई दुनिया के दस ऐसे बड़े शहरों में से हैं जहां सबसे ज़्यादा लोग रहते हैं। साल 2030 तक कोलकाता की ऐसे ही पंद्रहवें स्थान तक पहुंचने की संभावना है। 2011 के जनगणना के आकंड़ों के मुताबिक शहरी भारत के झुग्गी बस्तियों की आबादी 65 मिलियन दर्ज की गई है। साथ ही शहरी इलाकों में बेघर लोगों की संख्या 0.9 मिलियन देखी गई है। सरकारी आकंड़ों के अनुसार, 90 फीसदी से अधिक आगामी आवास की कमी आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्ग एवं निम्न आय वर्ग ही गठित करते हैं।

  2. 2. प्रवासियों की संख्या में वृद्धि: महीनेकेशुरआतमेंसामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना सर्वेक्षण द्वारा जारी किए गए आकंड़ों से संभावना जताई जा रही है किग्रामीण भारत से भारी संख्या में लोग शहर की ओर आ सकते हैं। गांव से शहर आने का एक मुख्य कारण कृषि विकास दर में भारी गिरावट हो सकता है। गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की आबादी करीब 833 मिलियन है। इंडियास्पेंड से अपनी खास रिपोर्ट में पहले ही बताया है कि ग्रामीण इलाकों की 670 मिलियन जनता 33 रुपए रोज़ पर अपना जीवन यापन करती है। साल 2031 तक शहरी भारत की आबादी 600 मिलियन तक पहुंच जाने की संभावना है, यानि 2011 के मुकाबले 380 मिलियन की वृद्धि हो सकती है। इस आकंड़े में प्रवासियों की संख्या का एक बड़ा हिस्सा होता है। पिछले वित्त वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठ के मुताबिक शहर की कुल आबादी में 35 फीसदी प्रवासी थे।

  3. 3. भारत में झुग्गी बस्तियों की आबादी अधिक : शहरी भारत की करीब 17 फीसदी आबादी ( 65 मिलियन लोग ) झुग्गियों में रहती है। हालांकि यह आकंड़े जनगणना की सर्वेक्षण में सामने आए हैं, लेकिन विश्वस्तर पर देखा जाए तो भारत में अधिक लोग झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। नीचे दिए गए टेबल से स्थिति और साफ होती है।

  4. शहरी इलाकों की झुग्गी बस्ती की आबादी

  5. 4. ज़मीन मिलने की समस्या : एक अनुमान के मुताबिक गरीब एवं बेघर लोगों के मकान की आपूर्ति के लिए करीब 2 लाख हेक्टर ज़मीन की आवश्यकता पड़ेगी। ज़मीन की कमी से निपटने के लिए कुछ विशेषज्ञों नेफ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) के विस्तार का रास्ता सुझाया है। हाल ही में मुंबई में एफएसआई को लेकर कुछ महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं। हालांकि प्रति वर्ग किलोमीटर हजारों की दसियोंघनत्व के साथ, देश के अधिकतर शहरों की आबादी काफी घनी है।

  6. विश्व स्तर पर शहरी जनसंख्या घनत्व

  7. 5. मानक/स्तर बनाए रखना होगी चुनौती :“सबके लिए आवास योजना” के उप घटकों में नई इकाइयों भी शामिल हैं; क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी ; लाभार्थी के नेतृत्व में सुधार / निर्माण ; झुग्गी में रहने वाले परिवारों में सुधार / पुनर्विकास। ऐसे में निर्माण करना और गुणवत्ता बरकरार रखना एक चुनौती भरा काम होगा। जैसा कि नीचे टेबल में दिखाया गया है, भारत में मौजूदा आवासीय इकाइयों का एक तिहाई पहले से ही खराब स्तर के हैं

  8. मौजूदा आवासीय इकाइयों की गुणवत्ता

  9. 6. नियामक कार्यविधि की उलझन: नरेंद्र मोदी के सबसे लिए आवास योजना की सबसे बड़ी उलझन नियामक कार्यविधि साबित हो सकती है। विश्व बैंक के मुताबिक भारत में निर्माण स्विकृति की प्रक्रिया बहुत खराब है ( नीचे दिए गए टेबल में देखें ) अचल संपत्ति परामर्श जोंस लैंग लासेल के अनुमान के मुताबिक भारत में भूमि अधिग्रहण से लेकर निर्माण तक की प्रक्रिया में कम से कम दो साल तक का वक्त लग सकता है।

निर्माण परमिट मिलने में सुविधा

CountryRank
South Africa32
Japan83
Bangladesh144
Russian Federation156
Brazil174
China179
India184

Source: Ease of Doing Business, 2014 from World Bank

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 18 जुलाई 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है


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