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हिमाचल प्रदेश और गुजरात में मिली हाल की जीत के साथ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अब 29 भारतीय राज्यों में से 19 राज्यों पर कब्जा है। 1993 के बाद से भारतीय राजनीतिक दल का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन है, तब कांग्रेस या सहयोगी दल 26 में से 18 राज्यों में शासन कर रहे थे।

जबकि गुजरात में भाजपा का प्रदर्शन ( जहां 16 सीटें खो कम हुई है, 115 से 99 तक ) खुद में संतोषजनक नहीं हो सकता है और भविष्य में चुनावी जोखिमों का पता चलता है, लेकिन यह 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस की वापसी का संकेत नहीं है। एक राजनीतिक पत्रिका के मुख्य संपादक और राजनीतिक टीकाकार सुहास पलशीकर की यही राय है।

वर्ष 1995 के बाद से गुजरात में यह कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन है। इसके विपरीत गुजरात में 22 साल पहले सत्ता में आने के बाद से भाजपा ने यहां कम सीटें जीती हैं, जैसा कि 18 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में इंडियास्पेंड ने बताया है।

हिमाचल में 48.8 फीसदी मतदान के साथ भाजपा ने 68 विधानसभा सीटों में से 44 पर जीत हासिल की है, पार्टी का राज्य में सबसे अच्छा और दूसरा सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है, जैसा हमने बताया है।

61 वर्षीय पलशीकर, लोकनीति ( दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज, में तुलनात्मक लोकतंत्र पर एक शोध कार्यक्रम ) में निदेशक हैं और और सावित्रीबाई फुले, पुणे विश्वविद्यालय में राजनीति विभाग और सार्वजनिक प्रशासन के प्रोफेसर रह चुके हैं। वह स्टडीज इन इंडियन पालिटिक्स’ में मुख्य संपादक हैं। वे भारत की राजनीतिक प्रक्रिया, महाराष्ट्र की राजनीति और लोकतंत्र के राजनीतिक समाजशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। भारतीय राजनीति में चुनाव, राजनीति, लोकतंत्र, पार्टी, वर्ग और जाति व्यवस्था में उनके अंग्रेजी और मराठी में कई प्रकाशन हैं।

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जबकि गुजरात में भाजपा का प्रदर्शन ( जहां 16 सीटें खो कम हुई है, 115 से 99 तक ) खुद में संतोषजनक नहीं हो सकता है और भविष्य में चुनावी जोखिमों का पता चलता है, लेकिन यह 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस की वापसी का संकेत नहीं हो सकता है। राजनीतिक टीकाकार और एक राजनीतिक पत्रिका के मुख्य संपादक सुहास पलशीकर ने इंडियास्पेंड से बातचीच में अपनी यही राय जाहिर की।

इंडियास्पेंड के साथ एक साक्षात्कार के अंश:

भाजपा ने 182 सीटों में से 99 सीटें जीतीं। यह संख्या 1995 में सत्ता में आने के बाद से सबसे कम है। 1995 में भाजपा ने 121 सीटें जीती थी। गुजरात में भाजपा की जीत के बारे में आपकी क्या राय है।

यह बहुत ही अप्रत्याशित या आश्चर्यजनक नहीं है कि एक लंबे समय से सत्ताधारी पार्टी ढलान की ओर जाएगी। भाजपा का प्रदर्शन निश्चित रूप से भाजपा के लिए ही निराशाजनक होगा, क्योंकि गुजरात भाजपा के लिए बहत महत्वपूर्ण है और पार्टी गजरात पर निर्भर भी है। विशेष रुप से इस तथ्य के कारण कि प्रधानमंत्री उस राज्य से संबंधित हैं। लंबे समय से भाजपा का भी यह दावा था कि गुजरात का विकास मॉडल किसी भी अन्य राज्य की तुलना में बेहतर है। इस पृष्ठभूमि में, पार्टी के लिए यह सचमुच शर्मनाक है कि वे किसी तरह बच पाए हैं। सबसे महत्वपूर्ण खतरा तो बस यही है। भाजपा अजेय नहीं है और यह किसी भी अन्य पार्टी की तरह चुनावी मतभेदों से घिरी हुई है।

कांग्रेस ने गुजरात में 77 सीटों की जीत दर्ज की है, जो 22 साल में सबसे अधिक है। 1995 में इसने 45 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसने 41.4 फीसदी वोट प्रतिशत दर्ज किया, जो दो दशकों में सर्वश्रेष्ठ था। क्या इसका मतलब गुजरात में कांग्रेस का पुनरुत्थान है? क्या आप वोटिंग में इस वृद्धि का श्रेय राहुल गांधी के नेतृत्व को देते हैं?

गुजरात में कांग्रेस पार्टी की कोई संस्थागत गहराई नहीं है। पार्टी का बेहतर प्रदर्शन, हालांकि नकारात्मक वोट के जरिये अर्जित किया गया है, लेकिन राहुल गांधी के प्रयासों के कारण मापना भी बढ़िया है। हालांकि यह कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है, फिर भी इसका पुनरुद्धार इस बात पर निर्भर करेगा कि यह किस प्रकार संगठन को मजबूत करता है और मतदाताओं के साथ यहां उनका संवाद कैसा है?

भाजपा ने शहरी गुजरात पर अपना कब्जा बरकरार रखा है, जैसे अहमदाबाद, सूरत और राजकोट। सौराष्ट्र और कच्छ के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस के पक्ष में वोटों की संख्या बढ़ गई है। भाजपा ने 73 (75.3 फीसदी) शहरी सीटों में 55 सीटें जीती हैं। कांग्रेस के खाते में 18 सीटें आई हैं। लेकिन मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में, कांग्रेस को 109 में से 62 सीटें (56.8 फीसदी) मिली हैं, जबकि भाजपा को 43 सीटों पर जीत हासिल हुई है। इस शहरी और ग्रामीण विभाजन के बारे में आपका क्या मानना है?

जहां तक ​​बड़ी आबादी शहरों में रहती है, कांग्रेस को शहरी इलाकों में नेटवर्क बनाने के लिए तत्काल अपने सामाजिक प्रोफ़ाइल को संतुलित करने की आवश्यकता है। साथ ही गुजरात में और कई विकसित राज्यों में भी, शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच का विभाजन चिंताओं और फैसले के स्तर पर गलतियों को दर्शाता है। यह एकतरफा विकास और अर्थव्यवस्था में असंतुलन का संकेत है। किसी भी बड़ी पार्टी की ओर से इस खाई को भरने का संकेत नहीं है।

गुजरात विधानसभा चुनाव में "कोई भी नहीं (नोटा)" में आधे मिलियन वोट (551,580) प्राप्त हुए, या 30.4 मिलियन मतों में से 1.8 फीसदी मत मिले। चुनाव में नोटा की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है?

नोटा की कुल संख्या भ्रामक हैं। अन्य चुनावों में भी, नोटा का विकल्प लगभग 2 फीसदी मतदाताओं द्वारा चुना गया था। इसलिए, अब यह जांच किया जाना है कि क्या इन मतदाताओं को नोटा वोट करने के लिए प्रेरित किया जाता है? और ये भी कि उनकी पहचान क्या है? फिलहाल, यह गुजरात के नतीजे के लिए किसी बड़े महत्व का नहीं है।

हिमाचल प्रदेश में, भाजपा ने 68 विधानसभा सीटों में 48.8 प्रतिशत वोटों के साथ 44 सीटों पर जीत हासिल की है । ​​1982 में राज्य में पहली बार चुनाव लड़ने के साथ यह वोटों के मामले में भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। क्या मोदी लहर ने हिमाचल में भाजपा की मदद की है?

हिमाचल में, मोदी के योगदान नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए। एक, दो पार्टियों का बारी बारी से (एक दूसरे के साथ) लंबा इतिहास है, और दूसरा यह कि कांग्रेस सरकार का प्रदर्शन काफी सामान्य रहा है। इन कारणों से परिणाम निश्चित रूप से प्रभावित हुए हैं।

क्या भाजपा की कर्नाटक में जीत की संभावना है?

इस चरण में राज्य के चुनाव परिणामों का कोई आकलन बेबुनियाद ही होगा। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार इस समय अपेक्षाकृत मजबूत है और फिर भी सांप्रदायिक अपील, लिंगायत पर जीत आदि भाजपा के कवच के प्रमुख हथियार हो सकते हैं।

क्या राहुल गांधी वास्तव में अगली पीढ़ी के मतदाताओं में आशा की प्रेरणा देते हैं?

तथाकथित अगली पीढ़ी के मतदाताओं पर फोकस अदूरदर्शी हैं। मोदी केवल युवा मतदाताओं के कारण ही सफल नहीं हुए। यह वस्तुतः आकांक्षाओं को बनाने की क्षमता है और जब सत्ता में हैं तो प्रदर्शन करने की क्षमता सबसे ज्यादा मायने रखती है। राहुल पर अधिक जोर देना अनुचित और अनौपचारिक दोनो है। पार्टी को सक्रिय होने की आवश्यकता है न कि केवल राहुल गांधी को।

क्या कांग्रेस 2019 के आम चुनावों में वापस आ सकती है? भाजपा के कैडर को चुनौती देने के लिए क्या करना चाहिए?

2019 में कांग्रेस की वापसी एक दूर का लक्ष्य है। उनका तात्कालिक उद्देश्य कर्नाटक में सत्ता बनाए रखना और 2018 के अंत में तीन भाजपा शासित राज्यों (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में सत्ता बनाए रखना होगा। जैसा कि मैंने उल्लेख किया है। कांग्रेस की वापसी के लिए संगठनात्मक कायाकल्प एक गंभीर चुनौती है और ऐसा तब हो सकता है जब शीर्ष नेतृत्व अपने अनुयायियों को एक स्पष्ट दृष्टि या वैचारिक ताकत प्रस्तुत करता है। केवल भाजपा का विरोध करना पर्याप्त नहीं है। समावेशी और अर्थव्यवस्था, दोनो प्रश्न पर पार्टी को स्पष्ट रूप से यह इंगित करना होगा कि वह किसके लिए मौजूद है ।

क्या आप 2018 के चुनावों में भगवा वृद्धि जारी देखते हैं? क्या तब तक मोदी लहर ठहर पाएगा?

2019 का चुनाव सिर्फ मोदी या मोदी लहर से ही प्रभावित नहीं होगी। हालांकि, मोदी वास्तव में सबसे स्वीकार्य नेता के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन 2019 में उन्हें वादों से ऊपर जाना होगा। 2019 में, मतदाता यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि उन्हें वास्तव में मिला क्या है?

(मल्लापुर विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।.)

यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 2 जनवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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