SnehaNGO_620

मुंबई: दो बच्चों की मां, 23 वर्षीय सुमिता अनिल धूमले कहती हैं, “जब तक मेरे बच्चे नहीं हुए, तब तक मुझे यह पता था कि बच्चे को गोद में कैसे लेना है और उनके साथ कैसे खेलना है। जब मैं गर्भवती हुई तो मुझे नहीं पता था कि किन चीजों का ध्यान मुझे रखना चाहिए। मुझे बच्चों को पालने का ज्ञान, आहार के बारे में और अच्छे भोजन के बारे में कोई चीज मुझे पता नहीं थी। ”

कम शिक्षा पाई हुई कई अन्य माताओं की तरह, जिनकी शादी कम उम्र में हुई और शादी के बाद घर से दूर आ गई, सुमिता को भी एक अनजान शहर में, अपने पहले बच्चे को लेकर ढेर सारी काफी व्यवस्था करनी पड़ी। भोजन और स्वच्छता प्रथाओं के बारे में वह अक्सर अपनी सास से सलाह लेती थी। हालांकि, दूसरे बच्चे के समय, एक स्थानीय आंगनवाड़ी (सरकारी संचालित बाल देखभाल केंद्र) कार्यकर्ता ने सुनिश्चित किया कि वह केंद्रीय मुंबई में सरकारी संचालित सायन अस्पताल में प्रसव कराए और बच्चे के विकास के दौरान उसके वजन और चेक-अप के लिए नियमित रुप से अस्पताल जाए।

हाल ही में इंडियास्पेंड से बात करते हुए सुमिता ने बताया कि, “मैंने सीखा कि वही गलतियां न दोहराई जाएं। इससे पहले, मैं काम पर जाने के दौरान उसे शांत रखने के लिए उसके दूध में ग्राइप वॉटर (शराब और अन्य गैर-प्राकृतिक अवयवों वाला एक खाद्य-पेय) मिला देती थी। जब मैंने आंगनवाड़ी का दौरा करना शुरू किया तो मैंने जाना कि यह बच्चों के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है और उसकी वृद्धि को प्रभावित कर सकता है। इसलिए मैं अब ऐसा नहीं करती हूं। ”

Sumita_400

मुंबई के धारावी की झुग्गी में अपने तीन महीने से बेटे के साथ 23 वर्षीय सुमिता। वह बताती हैं जब तक मेरे बच्चे नहीं हुए तब तक मुझे यह पता था कि बच्चे को गोद में कैसे लेना है और उनके साथ कैसे खेलना है। जब मैं गर्भवती हुई तो मुझे नहीं पता था कि किन चीजों की उम्मीद मुझे करनी चाहिए।

एक कमरे में मकान में सुमिता अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती है। बच्चे वहां नालियों को ढंकने वाले संकीर्ण तख्ते पर नंगे पांव भागते हैं। घरों में गैस स्टोव पर खाना पकाया जाता है और इससे निकलने वाला धुआं एक-दूसरे के घरों को पूरी तरह से घेर लेता है।

सुमिता पालवाड़ी में रहती है, जो कि धारावी में कम आय वालों के लिए रहने का एक क्षेत्र है और आबादी के आधार पर एशिया का तीसरी सबसे बड़ी झुग्गी है। बांद्रा-कुर्ला-कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) जो ग्लोबल व्यंजन परोसने वाले चमकीले ग्लास-फ्रंट इमारतों और रेस्तरां से भरे मुंबई का सबसे नया बिजनेस इलाका है, यहां से शायद 10 मिनट की दूरी पर है। धारावी में, स्वच्छता और नागरिक सुविधाएं नहीं के बरबर हैं, और पर्यावरण इतना प्रदूषित है यहां रहने वालों पर बीमारियों का खतरा हमेशा रहता है।

एक स्थानीय, गैर सरकारी संगठन, ‘सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन, एजुकेशन एंड हेल्थ एक्शन’ (स्नेहा) ने पांच साल तक धारावी में 10 बीट पर काम किया है। उनके प्रयासों ने 23 फीसदी तक, तीन साल के बच्चों के बीच वेस्टिंग कम किया है। स्नेहा के फील्ड स्टाफ द्वारा दर्ज आंकड़ों के मुताबिक स्वास्थ्य, खाद्य और प्राथमिक शिक्षा को कवर करने वाले सरकारी कार्यक्रम, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (आईसीडीएस) के माध्यम से क्षेत्र में बच्चों द्वारा प्राप्त सेवाओं में 109 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कुपोषण को क्यों समाप्त किया जाना चाहिए?

आहार एशिया में शहरी कुपोषण को खत्म करने का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। वर्ष 2011 में स्थापित, इसका उद्देश्य जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर और स्थानीय आंगनवाड़ी के काम का समर्थन करके बाल कुपोषण के प्रसार को कम करना है, जो आईसीडीएस के तहत चल रहे हैं।

2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पांच वर्ष से कम आयु के करीब 20 फीसदी बच्चे वेस्टेड हैं और 7 फीसदी गंभीर रुप से वेस्टेड हैं। यह एक दशक पहले के 19.8 फीसदी और 6.4 फीसदी से थोड़ा ऊपर है।

बद्तर पोषण और पहले दो वर्षों में बीमारियां आजीवन शारीरिक और संज्ञानात्मक क्षति का कारण बन सकता है जो काफी हद तक अपरिवर्तनीय है। यह अकादमिक क्षमता और बड़े होने पर स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह अंततः देश के आर्थिक उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। तीन साल से कम आयु के बच्चों में पोषण की कमी ठीक करने से से देश में ग्रैजुएटों की संख्या में 11 फीसदी (3.17 मिलियन) की बढ़ोतरी हो सकती है और जीडीपी के 0.8-2.5 फीसदी (15-46 बिलियन डॉलर के बराबर) की हानि को रोक सकता है।

प्रारंभिक जीवन पोषण में ऐसी विफलताओं को कम करने के लिए आर्मिडा फर्नांडीज ने 1999 में ‘स्नेहा’ की स्थापना की थी। सायन अस्पताल में काम करने के एक दशक के अनुभव के बाद वह ये देख कर थक गई थीं कि जैसे ही बच्चों को अस्पताल से छुट्टी मिलती है और वे वापस झुग्गियों में जाते हैं, उन पर वापस कुपोषण का खतरा मंडराने लगता है। उसने महसूस किया कि सामुदायिक हस्तक्षेप अनिवार्य है।

स्नेहा की एसोसिएट प्रोग्राम डाइरेक्टर अनाघा वायनंकर ने इंडियास्पेंड को बताया, "कुपोषण सिर्फ ग्रामीण समस्या नहीं है। शहरी क्षेत्रों में सहयोग की कमी है, जबकि गांवों में गर्भवती माताओं को परिवार से समर्थन मिलता है।"

वह आगे कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में कुपोषण की समस्या भोजन तक पहुंच की समस्या हो सकती है, लेकिन शहर में कुछछ अलग मामला है। अक्सर मां घरेलू सहायक के रूप में काम करती हैं, पिता कारखाने में हैं और बच्चों को अपने खान-पान के प्रबंधन के लिए भाई-बहनों पर छोड़ दिया जाता है। "

2016 के सर्वेक्षण से स्नेहा का बेसलाइन डेटा दिखाता है कि धारावी में तीन साल की उम्र तक के बच्चों में से 18 फीसदी वेस्टेड थे और 24 फीसदी स्टंट (उम्र के अनुसार कम कद) थे।

कम्यूनिटी बेस्ड मैनेजमेंट ऑफ अक्यूट मैल्नूट्रिशन (सीएमएएम) के विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामुदायिक-आधारित प्रबंधन के आधार पर एक मॉडल का उपयोग करते हुए, स्नेहा के लोग समुदाय के बीच पोषण समझ को विकसित करने में अपना योगदान देते हैं।

अक्सर ऐसी माताओं से बात करते हुए, जो अपने बच्चे की बीमारी के बारे में खुल कर बोलने से डरती हैं, हालिया प्रवासियों जिन्हें क्षेत्र और इसकी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ आंगनवाड़ी के अंडर-रिसोर्स नेटवर्क के बारे में जानकारी नहीं है, स्नेहा के लोग उन समुदायों के पुरुषों और महिलाओं को प्रशिक्षित करते हैं और इन मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।

बहुत से लोग समुदाय के स्वयंसेवकों के रूप में काम शुरू करते हैं। वे अपने पड़ोसियों को पोषण के गुणों के आधार पर शिक्षित करने और स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अपने खाली समय में काम करते हैं। आगे चल कर वे पूर्णकालिक भुगतान सदस्य 'समुदाय आयोजक' (सीओ) बनते हैं। अपने कीमती ऑन-द-ग्राउंड अनुभव का लाभ उठाते हुए वे पोषक विज्ञान की समझ में सुधार करने के लिए सेविका (आंगनवाड़ी श्रमिकों) को प्रशिक्षित करते हैं और प्रत्येक बच्चे की प्रगति की निगरानी के लिए डेटा रिकॉर्ड करते हैं।

कम आय वाले लोगों के रहने के इलाके और छोटे-मोटे उद्योग धंधों के एक मिले-जुले इलाकों माटुंगा श्रम शिविर के पास आहार कार्यक्रम ऑफिस में काम कर रहीं 37 वर्षीय सीओ लक्ष्मी ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया," स्नेहा में शामिल होने से पहले मेरी अपनी बेटी कुपोषित थी। मैंने गलतियां की थी। वह पांच साल की उम्र तक हर महीने बीमार पड़ती थी, लेकिन अब वह बहुत बेहतर कर रही है। मैंने घर पर अच्छी आहार विविधता और स्वच्छता का अभ्यास करना सीखा है। "

बात जागरूकता की है...

‘स्नेहा’ समुदाय के स्वयंसेवक पता करते हैं कि इलाके में कौन-कौन मां बनने वाली हैं, हाल ही में क्षेत्र में कौन आए हैं या कौन नवजात शिशु के आहार के लिए संघर्ष कर रहा है? वे इस जानकारी को आंगनवाड़ी श्रमिकों के साथ साझा करते हैं। इसके बाद, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता समुदाय में अपनी भागीदारी में सुधार करने, घनिष्ठ संबंध विकसित करने और खराब स्वच्छता और पोषण से जुड़ी समस्याओं के बारे में संवेदनशीलता से बात करने में सक्षम होते हैं।

इसका मतलब है कि धारावी के 30 वर्षीय निवासी फरीदा शकीर जैसी महिलाएं इस तरह के मॉडल के महत्वपूर्ण घटक हैं, जिसका उद्देश्य व्यवहार में बदलाव करना और स्वास्थ्य सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

शकीर कहती हैं, "समुदाय आयोजक और सेविकाएं मेरे क्षेत्र का दौरा करती रहती थीं। वे टीकाकरण के बारे में बहुत बाते करती थी और स्थानीय बच्चों का चेक अप करते थे। चूंकि मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं, इसलिए मुझे फिर से छोटे बच्चों के साथ रहने का विचार पसंद आया और मुझे लगा कि मैं इस काम को बढ़िया करुंगी और स्वयंसेवक बनने का फैसला किया। लोग सोचते थे कि उनके उनके पास पर्याप्त जानकारी है, लेकिन अब वे सुनने के लिए तैयार हैं। "

Farida_400

धारावी में अपने घर में 30 वर्षीया स्नेहा समुदाय स्वयंसेवक फरीदा शकीर

लेकिन अक्सर एक ऐसे मंच तक पहुंचने में समय और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता होती है जहां माता कुशन्ना की तरह अच्छी सलाह सुनने के लिए धैर्य की भी मांग करती हैं।

मिसाल के तौर पर, परिवारों के लिए यह सुनना मुश्किल हो सकता है कि एक बच्चा कुपोषित है और वे इसे तत्काल रुप से मानते नहीं हैं। माता-पिता बच्चे के शरीर को परिवार के अन्य सदस्यों से तुलना करने के आदि होते हैं और सोचते हैं कि आगे चल कर वे ठीक हो जाएंगे और फिलहाल सब-कुछ सामान्य है।

2015 तक, पहले चरण के अंत में, धारवी में 10 बीट में आहार अनुमानित तौर पर 31,000 बच्चों और 6,000 गर्भवती महिलाओं तक पहुंचे थे। हालांकि, ये आंकड़े इस क्षेत्र में काम करने की चुनौतियों और जटिलताओं, जो करीब हर मामले में शामिल होते हैं, को अक्सर गौण कर देते हैं।

अक्सर, परिवार की जागरूकता और व्यक्तिगत परिस्थितियों में एक वार्ता की आवश्यकता होती है ताकि मां के साथ बच्चे के स्वास्थ्य के संवेदनशील मुद्दे पर प्रभावी ढंग से चर्चा की जा सके, जैसा कि वडाला में रहने वाली 41 वर्षीय निवासी और स्नेहा की सीओ, भारती ने इंडियास्पेंड को बताया है।

उन्होंने एक महिला के बारे में बताया, जो हाल ही में छह महीने के बच्चे के साथ ग्रामीण उत्तर प्रदेश से आई थी: "वह पोषण के बारे में पूरी तरह से अनजान थी । उसके परिवार ने उसे घर से बाहर नहीं निकलने दिया, इसलिए वह इलाके से भी अनजान थी। यह किस्मत की बात थी कि सेविका और मैं उससे मिली क्योंकि उसका बच्चा बीमार था और उसके यहां स्वच्छता कीस्थिति अच्छी नहीं थी। "

भारती बताती हैं, "चूंकि वह हमें सुनने के लिए तैयार नहीं थी। हम उसके पास वापस 4 बजे शाम को गए, जब उसका पति सब्जियां बेच कर वापस आता था। हम उन्हें बच्चे को आंगनवाड़ी में लाने और उसे टीका करने के लिए राजी करने में कामयाब रहे। वे अपने बच्चे को हर महीने आंगनवाड़ी लेकर आते हैं और वह बच्चा ठीक हो रहा है।"

‘स्नेहा’ ने देखा है कि हर महीने 30 फीसदी आबादी बदलती है, इसलिए सेविका के लिए उन्हें ढूंढना मुश्किल हो सकता, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है। अनिवार्य रूप से, यह तीन साल से कम उम्र के सबसे छोटे बच्चे हैं जो अपने भोजन और पर्यावरण में परिवर्तन के रूप में सबसे ज्यादा पीड़ित हैं; यहां तक ​​कि स्वस्थ बच्चे भी बीमार पड़ सकते हैं।

स्नेहा के सहयोगियों को जो स्वास्थ्य संदेश पढ़ाया जाता है उसे मजबूती से लागू किया जा रहा है या नहीं, स्नेहा की ओर से इसकी भी देखरेख होती है। अब बाधाएं कम हो रही हैं और इलाके में माताओं को बेहतर ढंग से सूचित किया जा रहा है।

लक्ष्मी बताती हैं, "पहले जब हम घर-घर जाते थे तो लोग यह जाने बिना कि हम क्या पूछ रहे हैं और हम वहां क्यों आए हैं, अपना दरवाजा बंद कर लेते थे। एक बार तो एक बच्चे की मां ने मुझे बताया कि वे बच्चों के वजन के लिए आंगनवाड़ी नहीं जाते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चों पर बुरी नजर पड़े। लेकिन अब लोग हमारे नीले स्नेहा कोटों को पहचानते हैं और वे सुनने और भाग लेने के लिए तैयार हैं। चीजें बदल रही हैं।"

आईसीडीएस श्रमिकों का समर्थन

कठिन परिस्थितियां, प्रशिक्षण की कमी और बोझिल पेपरवर्क से राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे आंगनवाड़ी के 1.34 मिलियन-लोगों के नेटवर्क का भारी दबाव है।

महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2013-14 की रिपोर्ट के मुताबिक इन बुनियादी परिवार स्वास्थ्य केंद्रों में से केवल 29 फीसदी आईसीडीएस द्वारा अनिवार्य सभी सेवाओं को वितरित करने में सक्षम थे (जिसमें टीकाकरण, पूरक पोषण और चिकित्सा रेफरल शामिल हैं)।

लगभग 68 फीसदी परिसर में बिजली कनेक्शन नहीं था। 57 फीसदी में शौचालय की सुविधा नहीं थी और 65 फीसदी में पानी की सुविधा नहीं थी।

वर्ष 2016 में, एसएनईएचए ने मुंबई बाल स्वास्थ्य और पोषण समिति (एमसीएचएनसी) बनाने के लिए आईसीडीएस और ग्रेटर मुंबई (एमसीजीएम) के नगर निगम के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था।

जबकि आहार कार्यक्रम के पहले चरण में अपने कर्मचारियों ने आंगनवाड़ी श्रमिकों के साथ सीधे काम किया। 2016 के बाद के चरण में आईसीडीएस कर्मचारियों से उनकी छह प्रमुख सेवाओं को वितरित करने के साथ-साथ डेटा और संसाधन परिनियोजना के समन्वय में भी सहयोग लिया गया।

प्रबंधकों से मार्गदर्शन और प्रतिक्रिया की कमी के साथ कम और अक्सर अनियमित वेतन का मतलब है कि कई आंगनवाड़ी कर्मचारियों को उनके काम में शामिल होने के लिए प्रेरणा की कमी महसूस हो सकती है। कई को पर्याप्त कौशल-आधारित प्रशिक्षण या सलाह नहीं मिलती है, और एसएनईएचए इस अंतर को भरने की कोशिश करता है।

महीने में चार बार प्रत्येक आंगनवाड़ी का दौरा स्नेहा सीओ द्वारा किया जाता है, जिसकी देखभाल में पांच आंगनवाड़ी हैं। महीने के लिए गतिविधियों की योजना बनाई गई है। बाल स्वास्थ्य डेटा दर्ज किया जीता है। एक फ्लैशकार्ड गेम, जिसमें भोजन की पौष्टिक सामग्री को समझाया गया था, उस सप्ताह के अंत में पोषण ड्राइव में उपयोग के लिए खेला जा रहा था, जब इंडियास्पेंड का दौरा किया गया था।

धारावी, पालवाडी में एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता 44 वर्षीय नूरजहां कमबल ने कहा, "मैंने स्नेहा सीओ से बहुत उपयोगी 'चाल' सीखी हैं। उनके प्रशिक्षण ने हमें उन कई मुद्दों से निपटने में मदद की है, जिनका हम नियमित रूप से सामना करते हैं। कभी-कभी माता-पिता हमारी सलाह नहीं सुनना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने मुझे सिखाया है कि कैसे बात करनी चाहिए और चीजों को अलग ढंग से समझाने के तरीकों को अपनाना चाहिए।"

Jamila_620

‘स्नेहा’ समुदाय आयोजक जमीला शेख (30 वर्ष )और आंगनवाडी सेविका, नूरजहां कुंबले(44 वर्ष)

स्वास्थ्य श्रमिकों का समर्थन करने और स्थानीय समुदायों को संगठित करने के लाभ स्पष्ट हैं। केवल सबसे कमजोर समुदायों के साथ काम करते हुए, आहार के दूसरे चरण ने धारावी में क्षेत्र में बड़े सुधार के बाद 10 बीट्स में से तीन में अपना कवरेज घटा दिया है। इसकी सफलता का मतलब है कि इसने वडाला के दो बीट में विस्तार किया है और जो एक पड़ोस का इलाका है, जहां कुपोषण का भी उच्च प्रसार है।

यहां, कार्यक्रम के सामने आने वाली चुनौतियां समान हैं - दैनिक मजदूरी से जुड़ेमाता-पिता के बीच अच्छे पोषण के महत्व के बारे में कम जागरूकता।

सुमिता बताती हैं, "मैं वास्तव में घर पर अकेले बच्चों को छोड़ने से नफरत करती हूं, लेकिन मैं और कुछ नहीं कर सकती। मुझे दिन में काम पर जाना पड़ता है और फिर मैं छह बजे घर वापस आती हूं। मैं जाने से पहले उनके लिए घर में पका कर खाना रख देती हूं, लेकिन मुझे पता नहीं कि मेरे पीछे वे क्या खाते हैं। "

सुमिता जैसी मां अब कम से कम अच्छे पोषण के महत्व और उपलब्ध आईसीडीएस सेवाओं का उपयोग करने के बारे में जागरूक हैं, भले ही वे हमेशा अपने बच्चों के साथ घर पर नहीं रह सकें। एक कचरा बिनने वाली, जो इससे मिलने वाली आय से बर्तन खरीद कर सड़कों पर बेचती है, बच्चों का बीमार होना वहन नहीं कर सकती है। वह गंभीरता से स्वास्थ्य सलाह लेती है और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ उसका जो सकारात्मक अनुभव रहा है, वह अब दूसरों के साथ साझा करने के इच्छुक है।

स्थानीय सेविका नूरजहां की ओर मुस्कुरा कर देखते हुए, समिता कहती है, "उस लेन के नीचे एक महिला थी, जिससे मैं कुछ दिन पहले मिली थी । वह पांच महीने की गर्भवती थी। वह क्षेत्र में नई थी, इसलिए मैंने उसका आंगनवाड़ी जाना सुनिश्चित किया। अब वह गर्भावस्था के देखभाल के बारे में सीख रही है। जैसा कि मैंने अपनी मैडम से सीखा है।”

(संघेरा लेखक और शोधकर्ता हैं । इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 सितंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :