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नई दिल्ली: बारत मलेरिया की बीमारी के बोझ को कम करने में सफल रहा है। दुनिया भर में इस बीमारी का 70 फीसदी बोझ 11 देशों पर थी, लेकिन केवल भारत अपनी इस बीमारी के बोझ को कम करने में सफल रहा है। विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत ने 2016 और 2017 के बीच 24 फीसदी कमी दर्ज की है।

वर्ष 2016 की तुलना में 3 मिलियन कम मामले और 2017 में 9.5 मिलियन मलेरिया के मामलों के साथ, भारत अब शीर्ष तीन देशों में नहीं है, जिनमें सबसे ज्यादा मलेरिया बोझ है। हालांकि, बड़ी आबादी अब भी मलेरिया के जोखिम में हैं, जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।

वैश्विक स्तर पर, मलेरिया के खिलाफ हुई प्रगति लगातार दूसरे वर्ष के लिए रुक गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वार्षिक रिपोर्ट ने स्थिरता का खुलासा किया है। 2017 में, मलेरिया के अनुमानित 219 मिलियन मामले थे, जबकि एक साल पहले यह संख्या 217 मिलियन थे। पहले, दुनिया भर में मलेरिया से ग्रसित होने वाले लोगों की संख्या घट रही थी, 2010 में यह संख्या 239 मिलियन थी जो 2015 में 214 मिलियन तक पहुंची थी। भारत ने 2030 तक मलेरिया को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में वैश्विक मलेरिया मामलों में इसकी हिस्सेदारी 4 फीसदी और अफ्रीकी क्षेत्र के बाहर मलेरिया से होने वाली मौतों में 52 फीसदी की हिस्सेदारी है।

भारत की अनुमानित मलेरिया मामले और मौत, 2010-2017

एक ईमेल साक्षात्कार में डब्ल्यूएचओ प्रवक्ता ने कहा, “भारत की सफलता काफी हद तक ओडिशा में बीमारी की पर्याप्त गिरावट के कारण है, जहां देश में सभी मलेरिया मामलों में से लगभग 40 फीसदी लोग रहते हैं।” 2017 में, ओडिशा ने मलेरिया मामलों और मौत में 80 फीसदी गिरावट की सूचना दी है। राज्य में सूचित मलेरिया मामले भी 2017 में 347,860 से घट कर 2018 में 55,365 ( जनवरी से सितंबर ) रिपोर्ट की गई है और इसी अवधि के दौरान मौत के मामले 24 से कम हो कर चार हुए हैं, जैसा कि सरकारी आंकड़ों से पता चलता है।

इंडियास्पेंड ने विशेषज्ञों से बात की कि कैसे ओडिशा इस बीमारी से लड़ने में सफल रहा है और इस उद्हारण से देश के बाकी हिस्से क्या सीख सकते हैं?

ओडिशा ने दूरदराज इलाकों में मलेरिया के खिलाफ लड़ाई लड़ी

जैसा कि हमने कहा, ओडिशा भारत के मलेरिया बोझ का 40 फीसदी के लिए जिम्मेदार है, और इसके दूरस्थ, बिखरे हुए जनजातीय आबादी के साथ भारी-वन क्षेत्रों सबसे संवेदनशील थे।

राज्य ने 2010 और 2013 के बीच मलेरिया कमी में जल्दी सफलता देखी थी लेकिन मामलें फिर से बढ़नी शुरू हो गई है और 2016 में राज्य ने मामलों की सबसे बड़ी संख्या दर्ज की, करीब 444,843।

2016 में करीब इसी समय, राज्य सरकार ने दुर्गामा अंचलारे मलेरिया निराकरण ( दमन ) नाम का कार्यक्रम को लागू करना शुरु किया। कार्यक्रम राज्य के सबसे ज्यादा बोझ वाले जिलों में से 21 में लागू किया गया था और मलेरिया के लिए बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग शामिल किया गया था। सकारात्मक रूप से इलाज किया गया और मच्छर नियंत्रण उपायों को अपनाया गया और साल भर नियमित स्वास्थ्य शिक्षा गतिविधियां आयोजित की गई। राज्य सरकार के साथ कार्यक्रम में भागीदारी करने वाले चैरिटी, टाटा ट्रस्ट्स के हेड-हेल्थ एच एस डी श्रीनिवास ने कहा, "ओडिशा सरकार ने संसाधनों को आवंटित करके और बड़ा लक्ष्य देखने और भागीदारों के साथ काम करके राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाई। सरकार ने अपना मन बना लिया है कि (मलेरिया उन्मूलन) में निवेश करना सही है। "

भारत और ओडिसा, रिपोर्ट किए गए मालेरिया मामले और मौतें, 2010-2018

Source: National Vector Borne Disease Control Programme, National Health Profile 2015

"मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए, आपको मलेरिया परजीवी और मच्छरों को नियंत्रित करना होगा," जैसा कि ओडिशा में स्वास्थ्य विभाग के पब्लिक हेल्थ फॉर वेक्टर बॉर्न डीजिज के अतिरिक्त निदेशक मदन मोहन प्रधान कहते हैं। मोहन प्रधान ने ही इस कार्यक्रम की परिकल्पना की थी और पूर्व में नेतृत्व किया था। ( ओडिशा में इस कार्यक्रम के जरिए मलेरिया से लड़ने की इंडियास्पेंड की सितंबर 2017 की स्टोरी यहां पढ़ें। ) इंडोर कीटनाशक छिड़काव, मच्छर प्रजनन धब्बे और लंबे समय से स्थायी कीटनाशी जाल (एलएलआईएन ) के नि: शुल्क वितरण कुछ उपाय थे, जिसे शुरु किया गया था। एलएलआईएन को बिस्तर के आसपास लगाया गया, जो संपर्क पर मच्छरों को मारने और एक महत्वपूर्ण मलेरिया नियंत्रण हस्तक्षेप माना जाता है। 2017 में, 11 मिलियन एलएलआईएन, ओडिशा में वितरित किए गए, जो राज्य के उच्च-स्थानिकमारी वाले क्षेत्रों में हर निवासी को कवर करने के लिए पर्याप्त है। जबकि एलएलआई पहले भी वितरित किया गया था, वहीं इस बार यह बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के साथ किया गया था।

डायग्नोस्टिक किट के माध्यम से स्थानिक जिलों के सभी ग्रामीणों को वर्ष में दो बार ( मानसून से पहले और बाद ) मलेरिया के लिए परीक्षण किया गया था।

स्मीयर माइक्रोस्कोपी द्वारा मलेरिया का निदान करने की पारंपरिक विधि ( माइक्रोस्कोपी ) बोझिल और चुनौतीपूर्ण है, जबकि तेजी से नैदानिक ​​किट 10 मिनट से कम मलेरिया का निदान करता है।आशाओं या गांव स्वास्थ्य स्वयंसेवकों को किट का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था और फिर उन्हें मुफ्त दवाएं सौंपे गए, जिनके परिक्षण सकारात्मक पाए गए थे।

केवल फीवर वाले की ही नहीं, हर किसी का परिक्षण किया गया, क्योंकि मलेरिया से हमेशा बुखार ही नहीं होता है, जिसे एफेब्रिएल या एसिम्प्टोमैटिक मलेरिया कहा जाता है।

रोग, किसी भी लक्षण के बिना खून में रह सकते हैं, जो कमजोरी और एनीमिया और मलेरिया संचरण का कारण बन सकता है।

टाटा ट्रस्ट के एक कार्यान्वयन भागीदार लिवोलिंक फाउंडेशन के वरिष्ठ महाप्रबंधक सुभाषिस पांडा कहते हैं, "राष्ट्रीय दृष्टिकोण (इस्तेमाल किया पहले) केवल तेज बुखार की सूचना देने वालों का परीक्षण किया; इसका मतलब है कि मलेरिया पूरी तरह से पराजित नहीं हुआ । "

राज्य सरकार दमन के तहत बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित करने के लिए 120 करोड़ रुपए आवंटित किया है। जबकि रैपिड परीक्षण किट और दवाएं राज्य द्वारा प्रदान की जाती हैं, एड्स, क्षय रोग और मलेरिया से लड़ने के लिए एलएलआईएन ग्लोबल फंड द्वारा दान किया गया था - एक वैश्विक साझेदारी जो इन बीमारियों से लड़ने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। प्रधान कहते हैं, "वर्तमान में गतिविधियों का संचालन करने के लिए पर्याप्त धनराशि है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना है कि एलएलआईएन डेढ़ साल में बदल दिया जाता है।" एलएलआईएन तीन वर्षों तक चलता है और जैसा कि वे 2017 में वितरित किए गए थे, वे 2020 तक चलेंगे।

भारत में मलेरिया निगरानी मजबूत करने की जरूरत

2000 से, भारत ने मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या दो तिहाई से कम कर ली है और मलेरिया के मामलों में लगभग आधे हिस्से की कमी आई है।

2017 में, भारत ने मलेरिया उन्मूलन के लिए अपनी पांच साल की राष्ट्रीय सामरिक योजना शुरू की है। यह योजना बीमारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक ऐतिहासिक स्थल है जिसने मलेरिया "नियंत्रण" से "उन्मूलन" पर ध्यान केंद्रित किया है। यह योजना 2022 तक भारत के 678 जिलों के 571 में मलेरिया को समाप्त करने के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है।

विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2018 में कहा गया है कि मलेरिया के मामलों में 24 फीसदी की कमी के साथ भारत 2020 तक मलेरिया के मामलों को 20-40 फीसदी तक कम करने के लिए ट्रैक कर रहा है।

हालांकि, कई बाधाएं हैं। विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2017 के अनुसार भारत में "कमजोर" मलेरिया निगरानी है और केवल 8 फीसदी अनुमानित मामले राष्ट्रीय प्रणाली में सूचित किए जाते हैं, जो दुनिया में दूसरा सबसे बद्तर है।

इसके अलावा, 2018 की रिपोर्ट के अनुसार मलेरिया पर भारत का खर्च दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे कम है, प्रति जोखिम में आने वाले व्यक्ति पर 1 डॉलर से कम।

विशेषज्ञों के मुताबिक ओडिशा के सबक आसानी से अन्य मलेरिया-स्थानिक क्षेत्रों में दोहराए जा सकते हैं और यह महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई की गति कम न होने पाए। प्रधान ने कहा, "मलेरिया की बात आने पर कई उतार-चढ़ाव हुए हैं। हमें कम से कम उन्मूलन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पांच साल तक मलेरिया को नियंत्रित करने के प्रयासों को बनाए रखने की जरूरत है। "

( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 23 नवंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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