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मुंबई: भारत ने स्कूली शिक्षा पर अपने खर्च में 9.35 फीसदी वृद्धि की है। यह खर्च 2014-15 में 45,722.41 करोड़ रुपये का था, जो बढ़ाकर 2018-19 में 50,000 करोड़ रुपये हुआ है। लेकिन इस अवधि में कुल बजट में शिक्षा का हिस्सा 2.55 फीसदी से गिरकर 2.05 फीसदी हो गया है, जैसा कि बजट डेटा पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है।

1 फरवरी, 2019 को, जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आम चुनावों से पहले अपना आखिरी बजट पेश करेगी । ऐसे में उसे भारत की स्कूली शिक्षा में एक महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करना होगा। कई दक्षिण एशियाई और ब्रिक्स देशों के साथ तुलना की जाए तो भारत में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बद्तर है, हालांकि, देश शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का उच्च प्रतिशत खर्च करता है। ग्रामीण भारत में, ग्रेड V के करीब आधे बच्चे ग्रेड II की किताब नहीं पढ़ सकते हैं और उनमें से करीब 70 फीसदी गणित का विभाजन नहीं कर सकते हैं, जैसा कि एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 से पता चलता है। ये बातें पिछले 10 वर्षों में मानकों में गिरावट का संकेत देती है।

इस बजट में स्कूली शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता क्यों है?

भारत में स्कूल शिक्षा प्रणाली प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी और उचित इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी का सामना कर रही है। यहां कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं, जिनपर बजट में ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है:

  • मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्य पाल सिंह ने 7 जनवरी, 2019 को लोकसभा को बताया कि प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तरों पर 92,275 सरकारी स्कूलों में सभी विषयों को पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षक है।
  • एएसईआर के अनुसार ग्रामीण भारत के प्रत्येक चार स्कूलों में से एक में बिजली कनेक्शन नहीं है और लगभग इतनी ही संख्या में एक पुस्तकालय का अभाव है। केवल 21.3 फीसदी ग्रामीण स्कूलों में एक कंप्यूटर उपलब्ध है।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2017 में भारत में करीब 25.053 करोड़ बच्चे 6 से 15 आयु वर्ग के हैं और उन्हें अच्छी शिक्षा की आवश्यकता है।

एएसईआर के आंकड़ों पर द मिंट-द एचटी विश्लेषण और नेशनल अचीवमेंट सर्वे द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार भारत के गरीब जिलों के बच्चे स्कूलों में कम सीखते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, "उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से में देश के स्कूलों में सबसे कम सीखने के नतीजे देखे गए हैं। देश के ये हिस्से सबसे गरीब इलाकों में से हैं।" घरेलू विशेषताएं भी छात्रों में सीखने के परिणामों को भी प्रभावित करती हैं, जैसा कि एक और एएसईआर डेटा पर जनवारी 2019 मिंट-एचटी विश्लेषण में उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि गरीब या कम शिक्षित माता-पिता से पैदा हुए बच्चे दूसरों की तुलना में कम सीखते हैं। भारत के विकास के लिए बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना महत्वपूर्ण है। यदि भारत जैसे निम्न मध्यम आय वाले देश में हर 15 वर्षीय व्यक्ति प्रारंभिक पठन कौशल और मास्टर बेसिक गणित का प्रदर्शन कर सकता है, तो जीडीपी औसतन 80 वर्षों में 28 फीसदी तक बढ़ सकती है, जैसा कि ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कोपरेशन एंड डेवललपमेंट’ की रिपोर्ट से पता चलता है।

स्कूल फंडिंग की जुड़वां समस्याएं: कम आवंटन और कम लागत

अप्रैल 2018 तक, भारत में स्कूली शिक्षा ज्यादातर तीन-प्रायोजित योजनाओं द्वारा कवर की गई थी:

  • सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए या सभी के लिए शिक्षा) जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए या राष्ट्रीय मध्य शिक्षा मिशन) जो माध्यमिक शिक्षा की सुविधा देता है।
  • शिक्षकों की शिक्षा, जिसका उद्देश्य प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के पूर्व-सेवा और इन-सर्विस प्रशिक्षण के लिए मजबूत संस्थागत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है।

अप्रैल 2018 में, सरकार ने तीन योजनाओं को एक नई योजना में शामिल किया, जिसे समग्र शिक्षा कहा जाता है।

2017-18 और 2018-19 के बीच एसएसए के तहत आवंटन 11.18 फीसदी बढ़ाकर 23,500 करोड़ रुपये से 26,128.81 करोड़ रुपये किया गया है। आरएमएसए के तहत आवंटन 7.6 फीसदी बढ़ाकर 3914.90 करोड़ रुपये से 4213.00 करोड़ रुपये किया गया है।

हालांकि, एसएसए के तहत आवंटन मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा किए गए संसाधन अनुमानों से काफी नीचे है, जैसा कि एक थिंक टैंक, अकाउनबिलिटी इनिश्यटिव के फरवरी 2018 के विश्लेषण से पता चलता है।

लगातार दो वर्षों के लिए, एसएसए को एमएचआरडी द्वारा मांगे गए धन के आधे से भी कम आवंटित किया गया था। 2016-17 में, मंत्रालय ने एसएसए के लिए 55,000 करोड़ रुपये की मांग का अनुमान लगाया, लेकिन इसे केवल 22,500 करोड़ रुपये सौंपा गया था। 2017-18 में, जबकि एमएचआरडी द्वारा अनुरोधित धनराशि 55,000 करोड़ रुपये थी, जबकि एसएसए का बजट 23,500 करोड़ रुपये था।

इसके अलावा, एसएसए के लिए धनराशि को लगातार कम किया गया है, जैसा कि 2017 के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया है। “एसएसए का अव्ययित राशि 24 फीसदी बढ़ी है। 2010-11 में 10,680 करोड़ रुपये से बढ़कर 2015-16 में 14,112 करोड़ रुपये हो गया। 2014-15 में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा 17,281 करोड़ रुपये था। हालांकि उपयोग नहीं किए गए धन का अनुपात गिर गया, ” जैसा कि इंडियास्पेंड ने 14 नवंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

वित्त वर्ष 2018-19 में, दिसंबर 2018 तक, केंद्र सरकार ने एसएसए को आवंटित धनराशि का 74.27 फीसदी (19,668.26 करोड़ रुपये) जारी किया था, जैसा कि मंत्री सत्य पाल सिंह ने लोकसभा को 7 जनवरी, 2019 को जारी राशि के बारे में बताया। जारी किए गए राशि में से 31.76 फीसदी (6246.97 करोड़ रु) अप्रयुक्त है।

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, "राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में साल-दर-साल बड़े संतुलन को बनाए रखना कमजोर आंतरिक नियंत्रण का संकेत था।"

दुनिया के साथ भारत की तुलना

जैसा कि हमने पहले कहा था, शिक्षा पर भारत का खर्च कई दक्षिण एशियाई और ब्रिक्स देशों को पार करता है। भारत ने 2016 में अपनी जीडीपी का 4.38 फीसदी यानी चीन (4.22 फीसदी), रूस (3.82 फीसदी), अफगानिस्तान (4.21 फीसदी), श्रीलंका (3.48 फीसदी), बांग्लादेश (1.54 फीसदी) और पाकिस्तान (2.49 फीसदी) से अधिक खर्च किया है।

जीडीपी के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर खर्च

लेकिन गुणवत्ता के मामले में भारत ने बद्तर प्रदर्शन किया है। 2016 में दक्षिण एशिया में शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में भारत का स्कोर दूसरा सबसे कम था ( संभावित 100 में से 66, अफगानिस्तान के 64 के ठीक आगे) और समूह के नेता श्रीलंका (75) से काफी पीछे है, जैसा कि 25 सितंबर 2018 की रिपोर्ट ने इंडियास्पेंड को बताया है। ब्रिक्स देशों में भी, भारत का स्कोर दूसरा सबसे कम है - दक्षिण अफ्रीका (58) से सिर्फ 8 अंक आगे। ब्रिक्स देशों में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए रूस का स्कोर सबसे ज्यादा है। चीनी छात्र 13 साल तक स्कूल में सबसे लंबा समय बिताते हैं और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का अनुभव करते हैं, जो संभावित 100 में से 89 स्कोर करता है।

स्कूल फंडिंग: यूपीए बनाम एनडीए

स्कूली शिक्षा के लिए वित्त पोषण ने भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के नेतृत्व में निरन्तर वृद्धि देखी है, लेकिन जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया है, कुल बजट के संबंध में इसके अनुपात में गिरावट देखी गई है।

2006-07 तक, प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए अलग से धन आवंटित किया गया था। इसके बाद, प्रारंभिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा को एक विभाग में मिला दिया गया। यदि हम इन परिवर्तनों के बाद के वर्षों के लिए उपलब्ध आंकड़ों पर विचार करते हैं, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के तहत दूसरे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के 2010-11 के बजट ने सकल घरेलू उत्पाद का सबसे बड़ा प्रतिशत शिक्षा को आवंटित किया - 3.29 फीसदी। 2009-10 से 2012-13 तक, यूपीए सरकार द्वारा किए गए आवंटन का प्रतिशत 2.40 फीसदी से बढ़कर 3.24 फीसदी हो गया है। 2013-14 में, यह 0.43 प्रतिशत गिरकर 2.81 फीसदी पर आ गया है।

कुल बजट के प्रतिशत के रूप में स्कूली शिक्षा और साक्षरता के लिए आवंटन, 2007-08 से 2017-18

Source: Union Budget

Note: Figures for 2009-10 to 2016-17 are actuals, figures for 2007-08, 2008-09 & 2017-18 are revised estimates and figures for 2018-19 are budget estimates.

स्कूली शिक्षा में प्राथमिकताएं

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को वैश्विक मानकों के साथ स्कूली शिक्षा में अपने निवेश को बढ़ाने की जरूरत है।

चाइल्ड राइट्स एंड यू ( क्राई ) के पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी की निदेशक, प्रीती महारा कहती हैं," शिक्षा के बुनियादी संसाधनों की कमी जैसे कि शिक्षकों और सुविधाओं की कमी को लेकर केंद्र और राज्यों में सरकारों को एक साथ आना चाहिए जिससे स्कूली शिक्षा निधि में काफी वृद्धि हो सके और उसे बनाए रखा जा सके।"

पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा को लेकर गैर-लाभकारी संस्था,सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटबीलीटी ( सीबीजीए) और क्राई की दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षकों और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटन को बढ़ाने की जरूरत है।

रिपोर्ट में छह राज्यों - उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के शिक्षा बजट का विश्लेषण किया गया।

मार्च 2017 तक, प्राथमिक विद्यालयों में 17.64 फीसदी स्वीकृत शिक्षण पद (900,316 / 5,103,539) और माध्यमिक विद्यालयों में 15.7 फीसदी (107,689 / 685,895) पद रिक्त हैं।

योग्य शिक्षकों की कमी ने कई राज्यों को अयोग्य और अनुबंधित शिक्षकों की भर्ती के लिए मजबूर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर अप्रशिक्षित शिक्षकों का अनुपात सबसे अधिक है।

भारत में स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। 58 फीसदी स्कूलों में, जिसे एएसईआर ने सर्वेक्षण किया था, ग्रेड IV के छात्र एक या अधिक अन्य ग्रेड के साथ अपनी कक्षा साझा कर रहे थे... और 25 फीसदी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन नहीं था।

स्कूली शिक्षा प्राथमिकताएं क्या हो?

2019-20 के बजट में नई समग्र शिक्षा योजना के लिए पहला आवंटन देखा जाएगा। योजना के तहत, सीखने के परिणामों और गुणवत्ता में सुधार के लिए उठाए गए कदमों के आधार पर अनुदान आवंटित किया जाएगा। योजना की आधिकारिक वेबसाइट ने कहा कि शिक्षकों और डिजिटल शिक्षा में क्षमता निर्माण और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रयासों पर ध्यान दिया जाएगा।

वर्तमान मात्रा में 20 फीसदी की वृद्धि के साथ अप्रैल, 2018-मार्च 31, 2020 के लिए 75,000 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी गई है।

2018-19 के लिए 33,000 करोड़ रुपये पहले ही आवंटित किए जा चुके हैं। सीपीआर के एक साथी और एआई के निदेशक अवनी कपूर ने कहा, '' मंजूरियों को ध्यान में रखते हुए आवंटन बढ़कर 41,000 करोड़ रुपये होने की संभावना है।”

कपूर ने कहा, "इस योजना के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यहां राज्यों के पास एक किस्म का लचीलापन है कि वे अपनी जरूरतों के आधार पर किन घटकों को प्राथमिकता दें।"

“हम इस बात में महत्वपूर्ण अंतर देख रहे हैं कि कैसे राज्य प्राथमिक, माध्यमिक या शिक्षक शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं। इस प्रकार, हमारे नवीनतम विश्लेषण में पाया गया है कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में अधिकांश बजट समागम शिक्षा के भीतर प्राथमिक शिक्षा घटकों के लिए जा रहा है। हरियाणा और हिमाचल जैसे राज्य भी माध्यमिक शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं।"

(श्रेया रमण डेटा विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख अंग्रेजी में 25 जनवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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