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बजट भाषण में काव्य प्रवृति को जारी रखते हुए वित्त मंत्री, अरुण जेटली ने वैश्विक मंदी और देश के कृषि संकट के दौरान उनकी सरकार का बजट प्रबंधन की ओर इशारा करते हुए बजट भाषण की शुरुआत इन्हीं पंक्तियों के साथ की।

अक्टूबर से दिसंबर 2015 तिमाही के दौरान कृषि विकास सिकुड़ते हुए 1 फीसदी एवं वित्त वर्ष 2015-16 में केवल 1.1 फीसदी के विकास (अग्रिम अनुमान है, नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के एक्सट्रपलेशन द्वारा प्राप्त) के साथ; लगातार सूखा पड़ना, 30 वर्षों में सबसे बद्तर स्थिति; और सर्दियों (रबी) फसल की बुआई में 60 मिलियन हेक्टर की गिरावट, चार वर्षों में सबसे बद्तर; और वर्ष 2015 में कुछ हज़ार किसानों का आत्महत्या करना, इन सब के साथ, जेटली ने 2016-17 का बजट उन 834 मिलियन किसानों पर केंद्रित रखा जो भारत के ग्रामिण इलाकों में रहते हैं।

इसके अलावा, ग्रामीण मजदूरों की मजदूरी में (मुद्रास्फीति समायोजित), सदी के पहले आधे समय में पहली बार गिरावट हुई है जैसा कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री हिमांशु ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है।

जेटली के बजट के नौ मुथ्य खंभे हैं: कृषि, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अवसर , बुनियादी ढांचे, वित्तीय सुधार , प्रशासन और व्यापार करने की सुविधा, विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन, और कर प्रशासन सुधार।

ग्रामीण-फोकस व्यक्त करने के साथ, भाषण के दौरान शेयर बाजार (बीएसई सेंसेक्स) 2 फीसदी फिसला एवं बाद में जैसे ही जेटली ने कर अनुपालन और प्रशासन में त्वरित सुधारों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए योजना रखी, शेयर बाज़ार में सुधार देखा गया एवं 0.66 फीसदी नीचे बंद हुआ।

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जेटली का लक्ष्य – 2020 तक किसानों की आय दोगुना करना – जोकि आसान नहीं

जेटली ने कृषि और किसान कल्याण के लिए अब तक सबसे ज्यादा पैसे अलग रखे हैं : 47,912 करोड़ रुपए (7 बिलियन डॉलर) जो पिछले साल के 25,988 रुपए (4 बिलियन) से 84 फीसदी अधिक है। इसमें भूजल प्रबंधन के लिए 6,000 करोड़ रुपए, सिंचाई के लिए 12,500 करोड़ रुपए और फसल बीमा के लिए 5,500 करोड़ रुपए है शामिल हैं।

सिंचाई, बीमा और भूजल के लिए उपयोग पैटर्न बदलना आसान नहीं होगा।

65 वर्षों के दौरान, दो लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने के बावजूद भारत के केवल 34 फीसदी भूमि सिंचित है, जैसा कि हमने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है एवं 138 मिलियन किसानों (2010-11 कृषि जनगणना) में से 15 फीसदी या 20 मिलियन किसानों से अधिक के पास फसल बीमा नहीं है, हालांकि वास्तव में, इनमें से 10 फीसदी (12.5 मिलियन) से अधिक को बीमा लाभ प्राप्त नहीं हुआ है।

जहां तक भूजल का सवाल है, भारत की स्थिति दुनिया में सबसे बुरी है। इस संबंध में भी इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है। भारत के आधे से अधिक इलाके अब, जैसा कि कहा जाता है "उच्च" से "अत्यंत उच्च "पानी के संकट से जूझ रहे हैं, अधिकतर उपजाऊ गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन भर में, जैसा कि नीचे दिए ग्राफ से पता चलता है।

बजट में, वर्ष 2020 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है, राष्ट्रीय किसान आयोग की, कृषि उत्पादन लागत के ऊपर 50 फीसदी की न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश (एमएसपी) – जिस कीमत पर राज्य, किसानों से फसल खरीदता है - पर कोई ज़िक्र नहीं किया गया है। 2008-09 एवं 2013-14 के दौरान राबी दालों के अलावा, पिछले चार वर्षों में खाद्यान्न के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि नहीं हुई है। ग्रामीण विकास के लिए 87,765 करोड़ रुपए (12.8 बिलियन डॉलर) दिया गया है जोकि 2015-16 में दिए गए 71,695 रुपए (11 बिलियन डॉलर) की तुलना में 22 फीसदी अधिक है।

ग्रामीण विकास के लिए राशि, 2013 से 2017

पंचायती राज (महात्मा गांधी द्वारा परिकल्पित और संविधान के 73 वें संशोधन में संहिताबद्ध) संस्थाओं की स्वायत्तता की रफ्तार बढ़ाने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी 655 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ है (राष्ट्रीय ग्राम स्वराज योजना के लिए)।

ग्रामीण सड़कों – विशेष रुप से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 27,000 करोड़ रुपए (केंद्र और राज्य संयुक्त) दिए गए हैं जोकि पिछले साल के संशोधित अनुमान से 13 फीसदी अधिक है।

जेटली ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए 38,500 करोड़ रुपए (5.6 बिलियन डॉलर) अलग रखा है - दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक नौकरी कार्यक्रम – जिसकी एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मज़ाक उड़ाया था।

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लोकसभा में बजट भाषण के फौरन बाद, डीडी न्यूज़ को दिए गए साक्षात्कार में अरुण जेटली ने कहा कि मनरेगा के लिए दिया गया यह अब तक सबसे बड़ी राशि है। वर्ष 2009-10 की संशोधित अनुमान (करीब अक्टूबर-नवंबर में जारी किया गया) से पता चलता है कि 39,100 करोड़ रुपए का आवंटन करना था जबकि 2010-11 का बजट अनुमान (आय के अनुमान का उपयोग कर तैयार , चालू वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले) 40,100 करोड़ रुपए बताती है जोकि जेटली के 2016-17 के आंकड़ों की तुलना में अधिक है।

2009-10 में अधिकतम प्रदर्शन, जब इस कार्यक्रम के तहत 33 फीसदी ग्रामीण परिवारों को काम मिला था, के बाद से मनरेगा का संघर्ष जारी है। जैसा कि इंडियास्पेंड ने बताया है कि 2014-15 के दौरान, इस कार्यक्रम के तहत केवल 22 फीसदी ग्रामीण लोगों को काम मिला है।

ग्रामीण कार्यक्रमों के लिए मध्य वर्ग करेगें भुगतान

भारत के ग्रामीण संकट से उबरने के लिए राशि, हवाई और रेल टिकट, रेडीमेड कपड़े, कारों , हीरे, मोबाइल बिल, फिल्मों और केबल , सोना, सिगरेट, बाहर खाना खाना सहित, मध्यम वर्ग के लिए एकत्रित लागत में वृद्धि से आएगा।

बजट 2016 – सस्ता बनाम महंगा

बजट में होटल, संचार , संपत्ति, बीमा और यात्रा जैसी सभी कर योग्य सेवाओं पर 0.5 फीसदी की कृषि कल्याण उपकर का प्रस्ताव रखा गया है। बुनियादी 14 फीसदी सेवा कर के लिए, 0.5 फीसदी स्वच्छ भारत उपकर एवं कृषि कल्याण उपकर के बाद केंद्रीय सेवा कर प्रभावी ढंग से 15 फीसदी हो जाएगा। यह पैटर्न आने वाले वर्षों में भी दोहराया जा सकता है , क्योंकि भारत में बदलते मानसून के कारण कृषि संकट जल्द ही खत्म होने की संभावना नहीं है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी जानकारी दी है।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 29 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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