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मुंबई: आमतौर पर समय-समय पर अपडेट की जाने वाली सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों की एक श्रृंखला को वर्षों से सार्वजनिक नहीं किया गया है। इसमें अपराध, रोजगार, किसान आत्महत्या, जाति और कृषि मजदूरी पर डेटा शामिल हैं। यह जानकारी इंडियास्पेंड के शोध में सामने आई है।

2017-18 के लिए वार्षिक रोजगार सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी नहीं करने का केंद्र सरकार का निर्णय,कथित तौर पर 29 जनवरी, 2018 को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के कार्यवाहक प्रमुख, पीसी मोहनन के इस्तीफे का कारण बना है। हम बताते चलें कि एनएससी को सांख्यिकीय मामलों में नीतियों, प्राथमिकताओं और मानकों को विकसित करने का काम सौंपा गया है।

एनएससी ने 2017-18 के लिए वार्षिक रोजगार सर्वेक्षण की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी, जिसे सरकार ने जारी नहीं किया है, जैसा कि मोहनन ने समाचार पत्र ‘द मिंट’ को अपने इस्तीफे के कारणों में से एक बताया था।

कई टिप्पणीकारों ने नौकरियों पर डेटा को जारी नहीं करने पर सरकार की मंशा पर उठाए हैं सवाल।

रोजगार सृजन और कार्यबल विकास के लिए रणनीतियों पर ध्यान देने वाला एक रिसर्च संगठन, ‘जस्टजब्स नेटवर्क’ की अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक, सबीना दीवान ने इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए बताया कि, "भारत सरकार ने नेशनल सैंपल सर्वे एम्प्लॉयमेंट / अनएम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट को वापस ले लिया है, जिसमें नौकरी में हुए नुकसान के सामने आने की आशंका है, यह निर्वाचक वर्ग को सही सूचना पर निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर करता है। जबकि एक सूचित निर्वाचक वर्ग पर एक कार्यात्मक लोकतंत्र का आधार होता है।"

विकास अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जयति घोष ने इंडियास्पेंड को बताया, "यहां मुख्य मुद्दा विमुद्रीकरण हो सकता है।ऐसा करके सरकार खुद को अच्छी रोशनी में दिखाने का प्रयास कर रही है।"

घोष ने कहा कि डेटा की कमी केंद्र और राज्य सरकारों को सूचित निर्णय लेने से रोकता है। यह उन नागरिकों को भी प्रभावित करता है, जो अपनी बचत, निवेश और अन्य मुद्दों के लिए योजना बनाना चाहते हैं।

दीवान ने कहा कि, यह आर्थिक अस्पष्टता पैदा करता है, जो व्यवसायों और निवेशकों को अच्छे निर्णय लेने से रोकता है और गैर-सरकारी संगठनों और अन्य विकासोन्मुखी संगठनों को साक्ष्य-आधारित तरीके से अपना काम करने से रोकता है। वह कहती हैं, “हम सरकार को कैसे जवाबदेह ठहरा सकते हैं, यदि वे सूचना को नियंत्रित करते हैं या रोकते हैं, जिन्हें सार्वजनिक रूप से सुलभ होना चाहिए? यदि सरकार ऐसे आंकड़ों को रोकती है, जिससे नीतियों को निर्धारित करने में मदद मिलेगी या वास्तव में नौकरियों के संकट को दूर करने में मदद मिलेगी, तो पीछे फिसल जाने का खतरा ज्यादा है।" सरकार ने 30 जनवरी, 2019 को एक बयान जारी कर कहा कि एनएससी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है-मोहनन और कृषि अर्थशास्त्री जेवी मीनाक्षी - ने एनएससी की किसी भी बैठक में अपनी चिंताओं को नहीं उठाया था। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, "एनएसएसओ जुलाई 2017 से दिसंबर 2018 की अवधि के लिए त्रैमासिक डेटा को संकलित कर रहा है और इसके बाद रिपोर्ट जारी की जाएगी।"

गायब सांख्यिकी - एक अपूर्ण सूची

Missing Statistics - A Non-Exhaustive List
ReportMinistry/DepartmentLast submitted
NSSO Annual Employment-Unemployment ReportMinistry of Statistics and Programme Implementation2011-12
Socio-Economic Caste Census (data for OBCs was supposed to be released by 2015-16)Office of the Registrar General & Census Commissioner2011-12
Rapid Survey of ChildrenMinistry of Women and Child Development2013-14
Foreign Direct Investment statisticsMinistry of Commerce/DIPPJun-18
Crime in IndiaNational Crime Records Bureau2016
Prison Statistics of IndiaNational Crime Records Bureau2015
Accidents and Suicides dataNational Crime Records Bureau2015
Agricultural Wages DataMinistry of Agriculture/ Directorate of Economics and Statistics2015-16

Source: IndiaSpend research

दुर्घटनाओं और आत्महत्या की रिपोर्ट, जो किसान आत्महत्याओं के बारे में जानकारी प्रदान करती है और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी ) द्वारा सामने लाई जाती है, अब तक चार साल से जारी नहीं हुई है। एनसीआरबी के एक अधिकारी ने दिसंबर 2017 में न्यूज 18 को बताया कि 2016 में भारत में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें और आत्महत्याएं दिसंबर के तीसरे या आखिरी सप्ताह में प्रकाशित होंगी घोष कहते हैं, "हमें लगातार बताया जा रहा है कि डेटा गायब है लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि एनसीआरबी डेटा इकट्ठा करना जारी रखता है। डेटा केवल छिपा हुआ है।"

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर डेटा, जो प्रत्येक तिमाही औद्योगिक नीति और उत्पादन विभाग ( डीआईपीपी) द्वारा लाया जाता है, जून 2018 से जारी नहीं किया गया है, हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा इसे नियमित इनपुट प्रदान की जा रही है, जैसा कि 29 जनवरी 2019 को प्रकाशित बिजनेस टुडे की रिपोर्ट में बताया गया है। जब केंद्र सरकार ने 2015 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के माध्यम से उत्पन्न जनसंख्या की सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल जारी की, सरकार के भीतर विपक्षी दलों और मंत्रियों की मांगों के बावजूद इसने जाति पर डेटा को रोक दिया, जैसा कि द इकॉनॉमिक टाइम्स की सितंबर 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है। सरकार ने कार्य की व्यापकता में देरी के लिए भारत के आकार और जनसंख्या को दोषी ठहराया। उदाहरण के लिए, जनगणना गणनाकार ने 33 करोड़ घरों को कवर किया और 46 लाख प्रविष्टियां निकालीं, जिन्हें पढ़ने के लिए 35512 घंटे की जरूरत थी, जैसा कि ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ की जुलाई 2015 की रिपोर्ट से पता चलता है। ‘इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में सीनियर रिसर्च फेलो पूर्णिमा मेनन ने इंडियास्पेंड को बताया कि, “सभी सर्वेक्षणों को सार्वजनिक डोमेन में डाला जाना चाहिए, ताकि शोधकर्ता और विश्लेषक डेटा गुणवत्ता की जांच और आलोचना कर सकें और अतिरिक्त विश्लेषण भी उत्पन्न कर सकें, जो नीति समुदाय की सेवा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, सीधे वेबसाइटों से डाउनलोड किया जा सकता है।" दीवान ने कहा कि नागरिक यह जानने के लायक हैं कि क्या प्रमुख आर्थिक सुधारों जैसे कि विमुद्रीकरण और माल और सेवा कर की शुरूआत का प्रभाव रोजगार पर पड़ा है। वह कहती हैं, "जानकारी की कमी, या उपलब्ध जानकारी को रोकना, अटकलों और गलतफहमी को बनाए रखने की अनुमति देता है। नौकरियों की बातें अटकलों और गलतफहमी के साथ व्याप्त हैं। इसका एक कारण नौकरियों पर विश्वसनीय और व्यवस्थित डेटा संग्रह की कमी होना है। फिर हमें उपलब्ध आंकड़ों को जारी क्यों नहीं कर रहे हैं? ”

हाल ही में, केंद्र प्रायोजित योजनाओं की वेबसाइटों से गायब होने वाले आंकड़ों पर भी चिंता जताई गई है। उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत-ग्रामीण वेबसाइट से डेटा के कई सेट हटा दिए गए थे, जिसमें खर्च पर डेटा, अस्वास्थ्यकर शौचालय का रूपांतरण, जो मैनुअल स्कैवेंजिंग को बढ़ावा देता है, और शौचालय निर्माण के कई विवरण शामिल हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 6 अक्टूबर, 2018 को बताया था।

राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण की रिपोर्ट ( जिसे प्रीस्कूल -0-4 वर्ष, स्कूली आयु के बच्चों-5-14 वर्ष और किशोरों -15-19 वर्ष के व्यापक पोषण प्रोफाइल बनाने के लिए 2016 के अंत में शुरू किया गया था ), अब तैयार हो गया है लेकिन जारी नहीं किया गया है। रिपोर्ट से भारत की पोषण नीति को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, और राष्ट्रीय आयरन-प्लस पहल जैसी हाल ही में शुरू की गई पहलों की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए आधार रेखा के रूप में कार्य करेंगी। मेनन ने कहा,"कई देश और संगठन सर्वेक्षणों के सार्वजनिक रिलीज की ओर बढ़ रहे हैं, और यह अच्छा अभ्यास है क्योंकि समुदाय वास्तव में ज्ञान के आधार पर योगदान दे सकता है, जब डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होता है।"

दीवान कहते हैं, यदि सरकार गुणवत्ता चिंताओं या अन्य कार्यप्रणाली संबंधी चिंताओं के कारण रिपोर्ट जारी नहीं कर रही है, तो यह पता होना चाहिए। "बहुत कम से कम, जनता, विशेषज्ञों और यहां तक ​​कि अन्य नीति निर्धारक जो इस जानकारी का उपयोग सूचित निर्णय लेने के लिए कर सकते हैं, उनके लिए स्पष्टीकरण होना चाहिए।"

(सालवे वरिष्ठ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। लेख में अतिरिक्त इनपुट जैस्मिन निहलानी का है। निहलानी पत्रकारिता और जनसंचार की छात्रा हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 जनवरी 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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