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कर्नाटक का कान्हा रेज़व्वार, मई 2014 में सूख गया है। आगामी तीन महीने की लंबी गर्मी का सामना करने के लिए भारत में 91 प्रमुख जलाशयों में केवल 29 फीसदी पानी बचा है।

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के नवीनतम साप्ताहिक बुलेटिन के अनुसार, देश भर के 91 प्रमुख जलाशयों में केवल 29 फीसदी पानी बचा है। यह इस दशक में सबसे कम पानी का स्तर दर्ज किया गया है।

साजब्लूयी के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय जलाशयों में पानी का स्तर, पिछले साल के 71 फीसदी या पिछले एक दशक में औसत भंडारण का 74 फीसदी है।

जुलाई 2015 में लोकसभा में सरकार द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार, 91 प्रमुख जलाशयों में 157.8 बिलियन घन मीटर (बीसीएम) पानी हैं; इन जलाशयों की क्षमता 250 बीसीएम है। 400 बीसीएम पानी भूजल के माध्यम से भारत में सिंचाई के लिए उपलब्ध है।

मानसून आने में तीन महीने से अधिक समय होने के साथ, जो जुलाई 2016 के पहले सप्ताह में पहुंचेगा, इस दशक में सबसे खराब पानी की कमी गवाही दे रहा है।

मार्च में उपलब्ध पानी (बीसीएम) एवं 91 जलाशयों में कुल प्रतिशत

Source: Weekly bulletins of Central Water Commission, March 2016 and April 2015.

बड़े पैमाने पर पानी की कमी की रिपोर्ट पहले ही कृषि, घरेलू उपयोग और निर्माण के लिए पानी इस्तेमाल को लेकर विवाद को सुस्पष्ट कर रहे हैं।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में हज़ारों गांव – जो रिकॉर्ड तोड़ सूखे का सामना कर रहे हैं – पानी के लिए पूरी तरह से राज्य आपूर्ति टैंकरों पर निर्भर हैं। लातूर के शहर में सप्ताह में केवल तीन दिन ही पानी बांटा जाता है। पिछले हफ्ते, लातूर जिला प्रशासन ने हिंसा के डर से, लोगों का टैंकरों के पास जमा होने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

सूखे ग्रामीण महाराष्ट्र में, चारा शिविर न केवल मवेशियों को शरण देते हैं बल्कि हज़ारों परिवार भी वहां रहते हैं। सरकार ने अब शहरों और कस्बों को स्विमिंग पूल में पानी की आपूर्ति रोकने की सिफारिश की है।

मध्यप्रदेश में भी सूखा संकट की दस्तक दे रहा है। सरकार अब वहां गांवों में टैंकर भेजने की तैयारी में है। बुंदेलखंड में – जो मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में फैला है - सर्दियों की फसल बोने के लिए पानी नहीं है, कृषि उत्पादकता आधी हो गई है एवं वहां लोगों के लिए नमक खरीदना भी मुश्किल हो गया है। ओडिसा में, किसानों ने फसलों की रक्षा के लिए सार्वजनिक झीलों के तटबंधों को तोड़ दिया है।

हाल ही में, पानी की मांग करते हुए किसानों से बंगलुरु में घेराबंदी की है। और कर्नाटक में जल संकट आंध्र प्रदेश (एपी) और तमिलनाडु में पानी की कमी का परिणाम है। इस वर्ष गर्मी में, एपी, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सबसे अधिक पानी की कमी होने की संभावना है।

दक्षिण भारत की स्थिति बद्तर, जलाशयों का स्तर 20 फीसदी

44 फीसदी और 36 फीसदी स्तर की क्षमता के साथ, भारत के पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में जलाशयों में पानी सबसे अधिक है। जबकि, सीडब्ल्यूसी आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में पानी का स्तर 20 फीसदी, 26 फीसदी और 27 फीसदी है।

पानी के स्तर के लिए 10 साल का औसत 38.5 फीसदी है।

प्रायद्वीपीय भारत में कृष्णा नदी बेसिन, विशेष कर पानी की कमी है जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को प्रभावित करती है।

वर्तमान के आंकड़ो से पता चलता है कि सिंधु, तापी, माही, कावेरी और गोदावरी घाटियों पानी की कमी है जिससे आने वाले समय में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के जायकवाड़ा में - मराठवाड़ा में, जहां के कुछ हिस्सों में इस सदी का सबसे बद्तर सूखा पड़ा है, जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है – अपने 2.17 बीसीएम - क्षमता का केवल 1 फीसदी पानी बचा है।

1.5 बीएमसी की क्षमता के साथ महाराष्ट्र में भीमा उज्जैनी जलाशयों एवं 6.8 बीएमसी भंडारण क्षमता के साथ आंध्र प्रदेश में नागार्जुनसागर खाली है।

जलाशय भंडारण, सामान्य से प्रस्थान (राज्य अनुसार, % में)

Source: Central Water Commission Bulletin March 2016; Reservoirs in Madhya Pradesh contain 33% more, while those in Tripura contain 320% more water than average.

कोई सबक नहीं सीखा, समस्या से निपटने की कोई तैयारी नहीं

केंद्रीय जल आयोग की रिएसेसमेंट ऑफ वॉटर रिसोर्सेस पोटेशियल ऑफ इंडिया 1993 की यह रिपोर्ट कहती है कि, “हाल तक पानी की उपलब्धता का सही मूल्य नहीं जाना गया था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि एवं आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि से उपलब्ध जल संसाधनों पर जबरदस्त दबाव पड़ रहा है।”

भारत के जल संकट की चेतावनी नई नहीं है और कोई खबर नहीं बनाती, जैसा कि 1993 में सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में नहीं किया गया, जब जब भारत की जनसंख्या 880 मिलियन ( 8800 लाख) – आज की तुलना में एक-तिहाई था।

इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार से बताया है कि किस प्रकार विश्व में भूजल संकट गहरा रहा है एवं किस प्रकार भारत में आधे से अधिक भूजल - जो चीन की तुलना में 37 फीसदी अधिक ताजा पानी का उपयोग करता है – दूषित है।

राष्ट्रीय जल नीति 2012 में, कृषि और आर्थिक उद्देश्यों जैसे कि उद्योग और विद्युत उत्पादन से पहले पीने के पानी और स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी।

ग्रामीण भारत करीब 1.7 मिलियन (17 लाख) बस्तियों में रहता है (गांवों सहित), जिसमें से तीन-तिहाई – 1.3 मिलियन (13 लाख) - सभी उपयोगों के लिए प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी का 40 लीटर पानी मिलता है। इसमें पीने का पानी एवं अन्य उपयोग जैसे कि स्नान, कपड़े धोने, बर्तन और स्वच्छता शामिल है।

भारत में 66,093 ग्रामीण बस्तियां हैं, जहां पीने के पानी के स्रोत में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, लोहा और लवणता जैसे रसायनों से दूषित है; हालांकि, पिछले दो वर्षों में यह 84,292 से नीचे है, जैसा की इंडियास्पेंड ने पिछले वर्ष बताया था।

जल गटक रहा है फसल और हो रही है बिजली की कटौती

सिंचाई के लिए उपलब्ध 650 बीसीएम पानी में से 15 फीसदी या पानी की 100 बीसीएम गन्ना (फसल जलाशयों के साथ ही भूजल से पानी का उपयोग करता है) के लिए इस्तेमाल होता है, जोकि भारत के 2.5 फीसदी खेतों से अधिक पर नहीं लगाया जाता है। इस नए अध्ययन के अनुसार, गन्ने की खेती असंगति पानी की मात्रा का उपयोग करती है।

कृषि और उद्योग, समान पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, और गन्ने के खेतों के साथ अति प्रयोग करते हैं और भारतीयों को अन्य तरीकों से प्रभावित करता है, जैसे की बिजली उत्पादन इत्यादि।

उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में कम पानी के स्तर से नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशनस फरक्का कोयला आधारित संयंत्र को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा है जिसका प्रभाव झारखंड, बिहार , ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कटौती के रुप में हुआ है।

महाराष्ट्र में परली, एवं कर्नाटक में रायचूर और शारावती में बिजली उत्पादन को इस प्रकार के बंद का सामना करना पड़ रहा है। जल संकट के कारण महाराष्ट्र और कर्नाटक में सक्षम शक्ति से आधा बिजली उत्पादन हो रहा है।

(वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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