Farmer crisis_620

मुंबई: कर्नाटक आय असमानता, कृषि संकट और बाल कुपोषण से जूझ रहा है,हालांकि,2017-18 में 9.5 लाख करोड़ रुपये (141 अरब डॉलर) के सकल घरेलू उत्पाद से इसकी अर्थव्यवस्था में 8.57 फीसदी (2017 में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से दूसरा सबसे ज्यादा ) की वृद्धि हुई है, जैसा कि नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है।

राज्य के लिए 2018-19 बजट 2.09 लाख करोड़ रुपये (31 अरब डॉलर) है, जो 2017-18 के लिए 1.86 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से 12 फीसदी अधिक है।राज्य के राजस्व में भी वृद्धि हुई है। 2018-19 के लिए कर्नाटक के राजस्व कर, माल और सेवा कर (जीटी) मुआवजे सहित, 1.07 लाख करोड़ (15 अरब डॉलर) होने का अनुमान है। यानी 2017-18 के संशोधित अनुमान के मुकाबले 13 फीसदी की वृद्धि ।

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर भी कर्नाटक की प्रगति पर प्रकाश डालता है। राष्ट्रीय खातों के अनुसार, सालाना,142,267 रुपये प्रति व्यक्ति आय के साथ,2015-16 में कर्नाटक के नागरिक दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और केरल को पीछे छोड़ते हुए भारत के 10वें सबसे ज्यादा समृद्ध हैं।

हालांकि, इस समृद्धि से धन के समान वितरण, मजबूत कृषि व्यवस्था या सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए अच्छी पहुंच का लाभ नहीं मिला है ।

बेंगलुरु शहर, कलाबुरागी जिले की तुलना में पांच गुना ज्यादा कमाता है।

राज्य में आय असमानता उच्च है। सालाना 320,346 रुपये प्रति व्यक्ति आय के साथ शहरी बेंगलुरु सबसे समृद्ध क्षेत्र है। प्रति वर्ष 65,493 रुपये प्रति व्यक्ति आय के साथ उत्तर में कलाबुरगी सबसे गरीब है, जो राजधानी शहर का लगभग पांचवां हिस्सा है।

Source: Karnataka Economic Survey 2017-18; Figures in Rs

प्राथमिक शिक्षा (ग्रेड I से V) में, पूर्वोत्तर कर्नाटक में यादगीर जिले ने ने 12.3 फीसदी की ड्रॉपआउट दर दर्ज की है। शहरी बेंगलुरु में यह दर 2.9 फीसदी है। शिक्षा के जिला सूचना प्रणाली (डीआईएसई) 2015-16 के अनुसार, यादगीर की औसत प्राथमिक ड्रॉपआउट दर मिजोरम (10.1 फीसदी) से अधिक है।

Source: District Information System on Education 2015-16; Figures in %

स्वास्थ्य संकेतकों में भी यह असमानता स्पष्ट है। उदाहरण के लिए, दक्षिणी कर्नाटक में, लगभग 92 फीसदी परिवारों ने 2015-16 में स्वच्छता की सूचना दी है। लेकिन यदगीर जिले में यह दर 18.1 फीसदी थी, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 में बताया गया है।

Source: National Family Health Survey, 2015-16

इसी प्रकार, जिलों में संस्थागत डिलीवरी का प्रतिशत अलग-अलग था। रामानगर जिले (बेंगलुरू से 50 किमी) ने 99.3 फीसदी संस्थागत प्रसव की सूचना दी, जो पड़ोसी तमिलनाडु के समान ही है। लेकिन पूर्वोत्तर कर्नाटक में रायचूर ने त्रिपुरा के समान ही 79.7 फीसदी की सूचना दी है।

Source: National Family Health Survey, 2015-16

बार-बार सूखे से ग्रस्त, कृषि क्षेत्र कमजोर

2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक कृषि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के एक घटक के रूप में मामूली रूप से गिरावट आई है, जो 11.5 फीसदी से 11.1 फीसदी हुई है। कृषि की वृद्धि दर 2016-17 में 5.7 फीसदी से कम होकर 2017-18 में 4.9 फीसदी हुआ है। यह तूर और धान के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट ( 300,000 हेक्टेयर और 200,000 हेक्टेयर ) के कारण था।

राज्य के लिए सूखा निरंतर एक समस्या बना हुआ है। 2016 कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन निगरानी केंद्र (केएसएनडीएमसी) दस्तावेज के मुताबिक, 2016 में,कर्नाटक के 176 तालुकों में 160 को रबी (सर्दी फसल) के मौसम के दौरान सूखा प्रभावित घोषित किया गया था। यह तब हुआ जब खरीफ (मानसून फसल) के मौसम के दौरान 139 तालुकों में सूखे की स्थिति थी।

2017 केएसएनडीएमसी सूखा भेद्यता मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार 2001 से 2015 तक 15 वर्षों में, कर्नाटक केवल तीन (वर्ष2005, 2007 और 2010 ) साल सूखे से बच पाया है। 2017-18 में, अप्रैल के दौरान औसत वर्षा 35 मिमी के सामान्य के मुकाबले 22 मिमी थी, जो 37 फीसदी की कमी थी।

इसके अलावा, राज्य के खेती वाले क्षेत्र का केवल 31 फीसदी में सिंचाई की सुविधा है। 2015-16 में पड़ोसी तमिलनाडु (56.5 फीसदी) और विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश (50.5 फीसदी) के साथ तुलना करने पर कर्नाटक एक खराब स्थिति में दिखता है।

दूसरी सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या 2016 में कर्नाटक में दर्ज की गई थी। संख्या देखें तो 1,212। यह आंकड़े केवल महाराष्ट्र के 2,550 के आंकड़ों से कम हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 21 मार्च, 2018 की अपनी रिपोर्ट में बताया है।

‘द हिंदू’ में छपे इस रिपोर्ट के अनुसार सूखे के परिणामस्वरूप बुरी फसल हो रही हैं और इस वजह से किसान ऋण लेने और आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं।

केरल और महाराष्ट्र की तुलना में उच्च शिशु मृत्यु दर

राज्य में 100,000 जीवित जन्मों पर 133 मौतों का मातृ मृत्यु दर है, और केरल (61) और महाराष्ट्र (68) की तुलना में बद्तर , राष्ट्रीय औसत (167) से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। यह बात राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल रिपोर्ट-2017 से पता चलती है।

एनएफएचएस -4 के मुताबिक 2015-16 में,राष्ट्रीय औसत (41) से कम,प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 28 मौतों की शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) के साथ, कर्नाटक केरल (6) से पीछे है और अपने पड़ोसी महाराष्ट्र (24) के आस-पास है।

2015-16 में राज्य में पांच वर्ष से कम उम्र के 35.2 फीसदी बच्चे कम वजन के थे, लगभग राष्ट्रीय औसत (35.7%) के बराबर। महाराष्ट्र का आंकड़ा अंक 36 फीसदी है और केरल का 16 फीसदी।

एनएफएचएस -4 के अनुसार, तीन राज्यों में कर्नाटक में सबसे ज्यादा स्टंटिंग दर (36.2 फीसदी) है, जो महाराष्ट्र (34.4 फीसदी) से 1.8 प्रतिशत अधिक और केरल (19.7 फीसदी) से 16.5 प्रतिशत अधिक है। राज्य में 2005-06 में यह दर 43.7 फीसदी थी जो अब 7 प्रतिशत अंक कम हुआ है।

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( सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 14 मई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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