New Delhi: Prime Minister Narendra Modi addresses in Lok Sabha in New Delhi on Feb 7, 2019. (Photo: IANS/RSTV)

( नई दिल्ली: 7 फरवरी, 2019 को लोकसभा में संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। )

मुंबई: भारतीय संसद के इतिहास में लोकसभा में सबसे अधिक व्यवधान कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दूसरे कार्यकाल में हुआ है। इस अवधि (2009-2014) में, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्य विपक्षी पार्टी थी, लोकसभा के निर्धारित कार्य घंटों में 37 फीसदी व्यवधानों का सामना करना पड़ा है।

सत्ता में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ 16 वीं लोकसभा में मौजूदा, काम के घंटों के दौरान दूसरा सबसे अधिक (16 फीसदी) नुकसान हुआ है। फिर भी, यह पिछली यूपीए -2 सरकार की तुलना में 20 फीसदी अधिक उत्पादक घंटे पैदा करने में कामयाब रही है।

ये निष्कर्ष लोकसभा द्वारा जारी किए गए कार्य के बारे में हालिया बयान और और गैर-लाभकारी संस्था ‘पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च’ द्वारा वर्तमान लोकसभा कार्यकाल के कामकाज पर किए गए एक अध्ययन के हैं। लोकसभा के सत्र में कार्यवाही रिकॉर्ड पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार दो सबसे हाल के लोकसभा सत्रों के दौरान व्यवधान का सबसे लगातार कारण ‘स्कैम’ यानी घोटाले थे।

सरकार को काम करने के लिए विपक्ष महत्वपूर्ण रूप से संतुलन प्रदान करता है। संसदीय लोकतंत्र विधायी मामलों पर चर्चा के बाद पहुंची सहमति के आधार पर काम करता है। हालांकि, लोकसभा रिकॉर्ड पर विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय संसद विधायी कार्य पूरा करने की तुलना में व्यवधानों से निपटने के लिए अधिक समय खर्च करती है। औसतन, पांच साल पूरे करने वाले लोकसभा ने 2,689 घंटे काम किया है।

(यदि सत्तारूढ़ सरकार अपना बहुमत खो देती है, तो लोकसभा अपने पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग हो सकती है।)

यूपीए-II के तहत लोकसभा ने केवल 1,350 घंटे काम किया। वर्तमान एनडीए शासन ने 1,615 घंटे के काम किया है, यानी 20 फीसदी ज्यादा।

पीआरएस विश्लेषण के अनुसार, पहले, दूसरे और तीसरे लोक सभा में काम सबसे अधिक सुचारू रूप से हुए थे और औसतन 3,500 घंटे से अधिक काम किया ।

पांचवीं लोकसभा के दौरान, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (1971-1977) ने 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया और चुनाव स्थगित कर दिए। इस विस्तारित अवधि में सबसे अधिक काम के घंटे दर्ज किए गए, करीब 4,000 से अधिक।

पिछले दो लोक सभाओं में सबसे अधिक व्यवधान क्यों देखा गया?

तीन उदाहरणों में, विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को बाधित किया। पहली बार फरवरी 2015 को पूर्व-बजट प्रस्ताव के दौरान तब बाधित किया गया था, जब पीएम ने पिछली सरकार की गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना स्थायी संपत्ति बनाने के लिए इसकी ‘विफलता’ के लिए की आलोचना की थी। दूसरी बार, 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान, प्रधान मंत्री ने आरोप लगाया था कि विपक्ष ने काले धन का समर्थन किया, और व्यवधान उत्पन्न हुआ। आखिरी व्यवधान 2018 के बजट सत्र के दौरान था जब ‘प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में टिप्पणी की गई थी’, जैसा कि लोकसभा के रिकॉर्ड से पता चलता है।

Source: Ministry Of Parliamentary Affairs, 2018

पीआरएस के अनुसार, वर्तमान एनडीए सरकार के लिए, 2018 (जनवरी-अप्रैल) का बजट सत्र संसद के दोनों सदनों के लिए सबसे बाधित और सबसे कम उत्पादक था। सभा ने 161 में 127 घंटे या 79 फीसदी बैठक घंटे बर्बाद हुए हैं। संसद के कई सदस्यों ने 2018 के बजट सत्र के दौरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया। हालांकि, व्यवधानों के कारण प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया था। व्यवधान के कारण विविध थे -- "आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, पंजाब नेशनल बैंक घोटाला और कावेरी जल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संबंधित मुद्दे," जैसा कि लोकसभा रिकॉर्ड से पता चलता है। ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ के एक विश्लेषण के अनुसार, इस सत्र में सरकारी खजाने की कीमत 190 करोड़ रुपये (27 मिलियन डॉलर) है। उदाहरण के तौर पर कि 190 करोड़ रुपये क्या प्राप्त कर सकते हैं, यह प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा 2017-18 में तेलंगाना राज्य सरकार को आवंटित की गई राशि थी। (इस योजना को लागू करने में विफल होने के बाद तेलंगाना सरकार को यह पैसा वापस करने के लिए कहा गया था।)

यूपीए-II के दौरान कारण रहे घोटाले, मुद्रास्फीति और लोकपाल बिल

इंडियास्पेंड ने आगे संसदीय मामलों के मंत्रालय की 2018 रिपोर्ट का उपयोग करते हुए खोए समय के विवरण और रुकावट के कारणों की जांच की है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यूपीए -II सरकार को भारत की संसद के इतिहास में सदन में सबसे अधिक विरोध का सामना करना पड़ा है। राष्ट्रमंडल खेलों में वित्तीय अनियमितताएं, कोयला ब्लॉक वितरण और 2 जी स्पेक्ट्रम बिक्री से संबंधित घोटाले; मुद्रास्फीति; और लोकपाल बिल (एक भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बनाने के लिए) प्रमुख कारण थे।

Source: Ministry Of Parliamentary Affairs, 2018

यूपीए-II सरकार के कार्यकाल के दौरान सबसे अनुत्पादक लोकसभा सत्र भी बजट सत्र (फरवरी-मार्च 2013) था। उपलब्ध 163 घंटों में से 146 घंटे “पेट्रोल में मूल्य वृद्धि, श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा, श्रीनगर में आतंकवादी हमले, श्रीलंकाई (नौसेना) नौसेना द्वारा तमिल मछुआरों की हत्या, सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप से संबंधित मुद्दे, कोलगेट घोटाला, लद्दाख में चीनियों की घुसपैठ, रेलवे बोर्ड में पदोन्नति के लिए रिश्वत, यूपी में कानून और व्यवस्था की स्थिति” पर खर्च हुए थे,जैसा कि लोकसभा रिकॉर्ड से पता चलता है।

यूपीए-II सरकार के दौरान पिछली लोकसभा के सभी 14 सत्रों में विलंब और स्थगन की कीमत लगभग 199.9 करोड़ रुपये थी, जैसा कि 2013 से इंडियास्पेंड के पहले के विश्लेषण में बताया गया है।

करीब 800 घंटे व्यवधान और मजबूरन स्थगन के कारण बर्बाद हुए हैं। नौकरशाहों के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं में सुधार करने के लिए उस वर्ष कार्मिक मंत्रालय को 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।

( तिवारी, मुबंई टीआईएसएस में पीएचडी स्कॉलर हैं और इंडियास्पेंड के लिए लगातार लिखती हैं । सालवे वरिष्ठ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 मार्च 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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