हाल ही की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर 10 में से आठ भारतीय शहरों में रहने वाले लोग जहरीली वायु में सांस लेते हैं। यानी वायु में राष्ट्रीय सुरक्षा सीमा से अधिक स्तर के विषाक्त धूल कण, पीएम 10 होते हैं।

संस्था,ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट ‘ एयरपोकैलिप्स’ के अनुसार देश भर में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सबसे खराब हवा है।

रिपोर्ट कहती है कि, भारत के 280 शहरों में, जहां हवा की गुणवत्ता की निगरानी की जाती है, कहीं की भी वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के पीएम 10 के 10–20 μg/m³ के सुरक्षित स्तर के बराबर नहीं है।

हम बता दें कि पीएम 10 वायु में पाए जाने वाले छोटे कण हैं, जो मानव बाल से सात गुना ज्यादा महीन होते हैं और सांस के द्वारा हमारे शरीर के अंदर जा कर हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं। पीएम 10 के लिए भारतीय वार्षिक सुरक्षित स्तर 60 μg / m³ पर तीन गुना अधिक नरम है।

राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक पा करने वाले शहर

Source: Greenpeace India; Data for 2015-16

यह साबित करने के लिए कि वायु प्रदूषण दिल्ली तक ही सीमित नहीं है, रिपोर्ट में 630 मिलियन की आबादी ( देश की कुल आबादी का 53 फीसदी ) वाले 280 शहरों की वायु गुणवत्ता का विश्लेषण किया गया है। इनमें से, 55 मिलियन ( प्रत्येक 10 में से 9 भारतीय ) ऐसे क्षेत्र में रहते हैं, जहां का पीएम 10 राष्ट्रीय मानक से ज्यादा है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।

रिपोर्ट कहती है कि, इसी तरह, प्रत्येक 10 में से तीन भारतीय उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण के स्तर निर्धारित मानकों की तुलना में दो गुना अधिक हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, " 580 मिलियन भारतीय ऐसे जिले में रहते हैं, जहां वायु गुणवत्ता वाले आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।"

ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक और रिपोर्ट के लेखक सुनील दहिया के अनुसार, "जिलों (जहां हवा की गुणवत्ता पर नजर रखी जा रही है) में रहने वाले केवल 16 फीसदी आबादी के पास वास्तविक समय वायु गुणवत्ता वाले डेटा उपलब्ध हैं। यह दर्शाता है कि हमारे पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट का क्या है? "

यहां तक ​​कि 300 शहरों और कस्बों के लिए एकत्र किए गए मैनुअल डेटा को समय पर और एक प्रारूप में साझा नहीं किया जाता है, जो सामान्य जनता तक आसानी से पहुंच सके।

रिपोर्ट के लिए इस्तेमाल किए गए आंकड़ों को कई स्रोतों से प्राप्त किया गया- राष्ट्रीय वायु निगरानी कार्यक्रम, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से सूचना का अधिकार (आरटीआई) प्रतिक्रियाएं और विभिन्न राज्य प्रदूषण निकायों की वेबसाइट पर जारी वार्षिक रिपोर्ट।

प्रदूषण से दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित

पीएम 10 स्तरों के अपने वार्षिक औसत के आधार पर शहरों की रैंकिंग से पता चलता है कि दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहर है, जो कि राष्ट्रीय मानक के पांच गुना, करीब 290 μg / m3 है। इसके बाद फरीदाबाद, भिवाडी और पटना का स्थान है। इन तीन क्षेत्रों के लिए आंकड़े 272 μg / m3, 262 μg / m3 और 261 μg / m3 हैं। 238 μg/m3 की वार्षिक औसत के साथ उत्तराखंड में देहरादून का 10 सबसे खराब शहरों की सूची में अप्रत्याशित प्रवेश है।

20 सबसे प्रदूषित शहरों के लिए वार्षिक औसत पीएएम 10 स्तर 290 μg / m3 और 195 μg / m3 के बीच रही है।

भारत के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर ( 280 शहरों में से )

Source: Greenpeace India; Data for 2015-16

रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर इंडो-गंगा बेसिन में फैले हुए हैं, जबकि दक्षिणी शहर थोड़े बेहतर है। हालांकि, दक्षिण में शहरों को भी डब्ल्यूएचओ मानकों को प्राप्त करने के लिए एक केंद्रित और समयबद्ध कार्य योजना की आवश्यकता है।

20 फीसदी से कम शहर करते हैं वायु गुणवत्ता मानक का अनुपालन

दहिया कहते हैं, "तथ्य यह है कि 20% से कम भारतीय शहर राष्ट्रीय, या सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) का पालन कर रहे हैं। दुख की बात है कि आज तक भी हम व्यावहारिक, मजबूत और समय पर कार्रवाई करने में असमर्थ हैं। "

प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए दिल्ली में ग्रेडिंग रिस्पांस एक्शन भारत में एकमात्र उपलब्ध कार्यक्रम है। जैसे ही हवा की गुणवत्ता में गिरावट होती है, कई कार्यों को किए जाने की जरुरत होती है। इनमें कचरा जलने पर रोक लगाने, शहरों में ट्रकों के प्रवेश पर रोक, बिजली संयंत्रों को बंद करने, और ईंट भट्टों और पत्थर तोड़ने के काम पर रोक लगाना शामिल है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

5 जनवरी, 2018 को लोकसभा के इस उत्तर के अनुसार , सरकार देश भर में वायु प्रदूषण की समस्या को व्यापक तरीके से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू करने की योजना बना रही है।

क्या राष्ट्रीय कार्यक्रम हो सकता है एक हल?

एनसीएपी देश भर में एक प्रभावी परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क विकसित करने पर जोर देता है, साथ ही वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के लिए एक व्यापक प्रबंधन योजना सुनिश्चित करता है।

उत्तर में कहा गया है कि, "एनसीएपी प्रासंगिक केन्द्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और अन्य हितधारकों के बीच प्रदूषण और समन्वय के सभी स्रोतों को शामिल करने वाले सहयोगी और सहभागिता के दृष्टिकोण पर केंद्रित है।"

एनसीएपी को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

ग्रीनपीस रिपोर्ट ने एनसीएपी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कुछ सिफारिशें की हैं। सबसे पहले, तय जवाबदेही के साथ इसे व्यापक, व्यवस्थित और समयबद्ध योजना की आवश्यकता है। दूसरा, इसे जल्द ही सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिससे सामान्य जनता की भागीदारी के लिए माहौल बन सके और सरकार के सभी पक्षों को सामने रख सके।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए वास्तविक समय डेटा साझा करने की क्षमताओं, प्रदूषण नियंत्रण के लिए कानूनों का सख्त प्रवर्तन और बिजली के वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के साथ पूरे देश में एक सतत परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र का सुझाव है।

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 5 फरवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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