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राष्ट्रीय स्तर पर अपराध के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009 से 2015 के बीच भारत में पुलिस गोलीबारी में औसतन हर सप्ताह दो नागरिकों की मौत हुई है।

इन आंकड़ों को आप 6 जून, 2017 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में छह किसानों की मौत के संदर्भ में भी देख सकते हैं,जब पुलिस ने बेहतर कीमतों की मांग करने वाले किसानों पर गोलीबारी की थी।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2009 से वर्ष 2015 के बीच पुलिस गोलीबारी के कारण 796 नागरिकों की मौत हुई है।

पुलिस गोलीबारी में नागरिकों की मौत, वर्ष 2009-15

Source: National Crime Records Bureau, Crime In India reports for 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014 & 2015

वर्ष 2016 में पर्याप्त फसल और आयात के कारण कीमतों में 63 फीसदी की कमी हुई है। नोटबंदी के कारण हुई नकद की कमी से बिक्री कम हुई और कीमतों में और गिरावट हुई है। पिछले छह दशकों से वर्ष 2011 तक, 3.5 लाख करोड़ रुपए निवेश करने के बावजूद, आधे से ज्यादा खेत वर्षा पर ही निर्भर हैं। हम बता दें कि यह राशि टिहरी आकार के 545 बांधों को बनाने के लिए काफी हैं। ये तीन कारक हैं जो खेती पर निर्भर भारतीयों में क्षोभ पैदा करते हैं।

यहां हम फिर बताते चलें कि 9 करोड़ परिवार या भारत की 120 करोड़ आबादी का 54.6 फीसदी खेती पर निर्भर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग ने किसानों की मौत के बाद राज्य सरकार को नोटिस जारी किए हैं। राज्य के गृह मंत्री ने शुरू में किसानों के आंदोलन पर स्थानीय पुलिस द्वारा गोलीबारी की रिपोर्टों को खारिज कर दिया, लेकिन बाद में स्वीकार किया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने दंगे करने वाली भीड़ पर नियंत्रण पाने के लिए गोलीबारी की थी।

12 जून, 2017 को ‘द मिंट’ के एक कॉलम में हिंदुस्तान के संपादक शशि शेखर लिखते हैं, “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष1995 और वर्ष 2015 के बीच 318,528 किसानों ने आत्महत्या की है। एक अध्ययन से पता चलता है कि देश भर में 2,000 से अधिक किसान प्रतिदिन शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ”

वह आगे लिखते हैं, “समय आ गया है जब नई दिल्ली और राज्य का नेतृत्व इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे। स्वतंत्र भारत की पुलिस या अर्धसैनिक बल अपने ही लोगों पर गोलीबारी करते अच्छे नहीं लगते। हमें ‘और मंदसौर’ की जरूरत नहीं है।”

जम्मू-कश्मीर में पुलिस गोलीबारी की घटनाओं में कमी

वर्ष 2009 और वर्ष 2015 के बीच पुलिस गोलीबारी की कम से कम 4,747 घटनाएं दर्ज हुई हैं। वर्ष 2008 से वर्ष 2010 के बीच बेहद अशांति का सामना जम्मू-कश्मीर ने किया है। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर में उग्र घटनाओं में गिरावट के कारण कई सालों में गोलीबारी की घटनाओं में कमी आई है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2010 में, जम्मू-कश्मीर में पुलिस की गोलीबारी की 662 घटनाएं हुईं, जिसमें 91 नागरिक और 17 पुलिस कर्मियों की मृत्यु हुई, और 494 नागरिक और 2,952 पुलिसकर्मी घायल हुए ।

पुलिस गोलीबारी की घटनाएं, 2009-15

Source: National Crime Records Bureau, Crime In India reports for 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014 & 2015

वर्ष 2015 में 55 फीसदी गोलीबारी की घटनाएं 'अन्य अवसर पर' के रूप में वर्गीकृत

2015 में पुलिस की गोलीबारी की 156 घटनाओं में से 86 को 'अन्य अवसर पर', 30 गिरफ्तार करने और 21 दंगों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इन घटनाओं में क्रमश:16, 5 और 11 नागरिक मारे गए। उसी वर्ष, आत्मरक्षा में पुलिस की गोलीबारी की 19 घटनाओं में 10 नागरिकों की मौतें हुईं।

कारण अनुसार पुलिस गोलीबारी की घटनाएं, 2014-15

Source: National Crime Records Bureau, Crime In India reports 2014, 2015

राजस्थान में वर्ष 2015 में पुलिस द्वारा अधिकतम गोलीबारी की घटना दर्ज की गई थी। यह संख्या 35 है। दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है, जहां 33 घटनाएं हुईं। तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है, जहां पुलिस द्वारा गोलीबारी की 29 घटनाएं दर्ज की गई थीं।

वर्ष 2014 से पहले, पुलस फायरिंग की घटनाओं को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया था: दंगों को रोकने, डकैती विरोधी ऑपरेशन, आतंकवादियों और उग्रवादियों को रोकने और अन्य। वर्ष 2009 से 2013 के बीच, इन श्रेणियों में पुलिस गोलीबारी की क्रमश:1,371, 174, 815 और 775 घटनाएं दर्ज हुई हैं।

कारण अनुसार पुलिस गोलीबारी की घटनाएं, 2009-13

Source: National Crime Records Bureau, Crime In India reports for 2009, 2010, 2011, 2012 & 2013

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2009 और वर्ष 2015 के बीच, पुलिस गोलीबारी में 471 पुलिस कर्मियों मौत हुई है।

गोलीबारी घटनाओं में पुलिसकर्मियों की मौत, 2009-15

Source: National Crime Records Bureau, Crime In India reports for 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014 & 2015

(साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ संकाय से वर्ष 2016-17 के लिए जेंडर एवं डिवलपमेंट के लिए एमए के अभ्यर्थी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 16 जून 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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