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नई दिल्ली: एक दशक की तुलना में भारत में अधिक बच्चों ने समेकित बच्चों को विकास सेवाओं (आईसीडीएस) के तहत एक या एक से अधिक सेवाएं मिली हैं। यह विशेष रुप से कुपोषित बच्चों को पूरक पोषण देकर बाल मृत्यु दर को कम करने और जल्दी सीखने के परिणामों में सुधार के लिए दुनिया का सबसे बड़ा एकीकृत प्रारंभिक बचपन कार्यक्रम है।

हालांकि, यह कार्यक्रम परिवार के खाने के व्यवहार और पूर्वस्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार में अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में विफल रहा है, जैसा कि हांगकांग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, निर्मला राव और दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में ‘सेंटर फॉर अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड डेवलप्मेंट’ के वी. कौल द्वारा दिसंबर 2017 के इस मूल्यांकन पेपर में बताया गया है।

12 जनवरी, 2018 को जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 (एनएफएचएस -4) की अंतिम रिपोर्ट में प्रकाशित नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य के आंकड़ों के अनुसार, छह वर्षों के दौरान करीब 54 फीसदी बच्चों को आईसीडीएस के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों (आंगन आश्रयों, एडब्लूसी) में उपलब्ध कई सेवाओं में से कम से कम एक सेवा मिली है। एक दशक पहले ये आंकड़े 33 फीसदी थे। बच्चों के लिए भोजन के प्रावधान में बच्चों की सबसे अधिक भागीदारी दिखती है। इस संबंध में आंकड़े 48 फीसदी हैं, जबकि 2005 में ये आंकड़े 26 फीसदी थे। भोजन की खुराक में, घर ले जाने वाला पंजीरी ( गेहूं, चीनी, घी और सूखे फल से बना पोषण पूरक) और एडब्ल्यूसी में पकाया हुआ भोजन दोनों का वितरण शामिल है।

आईसीडीएस के अंतर्गत 1975 में स्थापित लगभग 13 मिलियन एडब्लूसी, बच्चों के जन्म से छह वर्ष तक स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा सेवाएं ( भोजन की खुराक, पूर्व-स्कूल शिक्षा, स्वास्थ्य जांच, प्रतिरक्षण और विकास निगरानी ) प्रदान करता है। लगभग 1.4 मिलियन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में शामिल हैं।

भारत के 11 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों ने 2015 से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायकों को अतिरिक्त वेतन में कोई बदलाव नहीं करने का ऐलान नहीं किया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 23 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

भारत में आईसीडीएस कार्यक्रम के तहत सेवाएं प्राप्त करने वाले बच्चे

आईसीडीएस कार्यक्रम के तहत प्राप्त की सेवा के प्रकार

करीब 40 फीसदी बच्चों ने प्रतिरक्षण, 39.7 फीसदी ने स्वास्थ्य जांच, 38.2 फीसदी प्रारंभिक बचपन की देखभाल / पूर्व-स्कूल सेवाएं प्राप्त किया है। यह एक दशक पहले के क्रमश: 20 फीसदी, 15.8 फीसदी और 22.8 फीसदी के आंकड़ों से ज्यादा है। एक देश में जो 190 मिलियन कुपोषित लोगों का घर है ( विश्व में सबसे ज्यादा ) आईसीडीएस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन सीमित परिणामों को प्राप्त करने में ही सक्षम रहा है, जैसा कि 2017 के अध्ययन में बताया गया है।

अध्ययन में पाया गया है कि, शिक्षित श्रमिकों की कमी, सेवाओं की गुणवत्ता और संसाधनों की कमी पर कम ध्यान केंद्रित करना सीमित परिणामों के प्राथमिक कारणों में से है। इस कार्यक्रम में बजट आवंटन भी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी पर संकेत देते हैं, जैसा कि पेपर कहता है।

सरकार ने बजट 2018 में आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए 15,240 करोड़ रुपये (लगभग 2.3 बिलियन डॉलर) आवंटित किए हैं, जो कि 2013 में 15,800 करोड़ रुपये (लगभग 3 बिलियन डॉलर) के बजट आवंटन से 600 करोड़ रुपये कम है।

पेपर में कहा गया है कि, "कागज पर यह एक उत्कृष्ट और प्रासंगिक रूप से प्रासंगिक योजना है, लेकिन इस योजना के कार्यान्वयन को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दी गई थी, शायद कमजोर संस्थागत क्षमता और / या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण।"

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 2 मार्च 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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