Menstrual Hygiene_620

चेन्नई: कला की उम्र तब11 वर्ष थी, जब उसे पहला मासिक धर्म हुआ था। वह घर पर स्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रही थी और जब उसने खून देखा तो घबरा गई।

दक्षिण तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के एक कॉलेज की छात्र, कला (पहचान बदलने के लिए नाम बदल दिया गया था) याद करते हुए बताती हैं कि, “पहली बार में मैं बहुत घबरा गई थी। मुझे लगा कि मुझे कोई गंभीर बीमारी हो गई है और मैं मरने वाली हूं। मेरी परीक्षा का क्या होगा? क्या मुझे अपने पिता को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कहना चाहिए? ” कला ने घबरा कर अपनी मां को पुकारा था। कला आगे बताती हैं, “मेरी मां नहीं आई। इसके बजाय, अगले दरवाजे पर रहने वाली बूढ़ी औरत आई। मेरे स्नान करने के बाद, वह मुझे गौशाला के पास एक कमरे में ले गई, मुझे एक लकड़ी के तख़्त पर बैठने के लिए कहा, जो मेरे लिए पहले से ही तैयार था और मुझे वहां से कहीं नहीं जाने के लिए कहा गया।”

कला को कुछ भोजन और पानी दिया गया और अकेला छोड़ दिया गया। जब उसने अपनी मां को देखा, तब तक शाम हो चुकी थी। कला कहती हैं, "मुझे आराम देने और मुझे घर ले जाने के बजाय, मेरी मां ने मुझे बताया कि मैं अब एक बड़ी लड़की हूं और मुझे पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना बंद करना चाहिए।"

कला की कहानी ग्रामीण और शहरी तमिलनाडु में न तो अजीब है और न ही अलग है, जैसा कि तमिलनाडु अर्बन सैनिटेशन सपोर्ट प्रोग्राम ( टीएनयूएसएसपी) द्वारा किए गए मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता पर एक अध्ययन में पाया गया है। टीएनयूएसएसपी तमिलनाडु सरकार के साथ काम करता है और बेंगलुरु के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स’ द्वारा समर्थित है। अध्ययन में पाया गया है कि, अज्ञानता और अंधविश्वास मासिक धर्म के दौरान स्वच्छ प्रथाओं से युवा लड़कियों को दूर कर देता है। यह अध्ययन कोयंबटूर शहर के पास दो नगर पंचायतों, पेरियानानकेन-पलयम और नरसिम्हानकेन-पलयम में आयोजित किया गया था। अध्ययन के अनुसार, युवा लड़कियां शुरुआत में इस चीज के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी। लगभग 84 फीसदी किशोर लड़कियों ने साक्षात्कार में कहा कि वे आश्चर्यचकित थीं, जब उन्हें पहली बार मासिक धर्म हुआ था। 2012 के संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि अध्ययन के अनुसार सामान्य योनि मार्ग संक्रमण से पीड़ित लगभग 60 फीसदी महिलाओं ने खराब मासिक धर्म स्वच्छता की सूचना दी थी। मासिक धर्म स्वच्छ प्रथाओं पर 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 15 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी सुरक्षा का उपयोग करती हैं, जबकि 85 फीसदी घर-निर्मित उत्पादों का उपयोग करती हैं। इस अध्ययन के दौरान साक्षात्कार में पता चला कि ये उत्पाद कपड़े से लेकर राख, भूसी या रेत से भरे पैड से बनते हैं।

संक्रमण का खतरा- कपड़े के पैड अक्सर धोए नहीं जाते, उन्हें ठीक से सुखाया नहीं जाता है...

एक सेनेटरी पैड की कीमत 3 से 10 रुपये के बीच होती है, इसलिए खरीदने की क्षमता एक ऐसा कारक हो सकता है, जो मासिक धर्म के दौरान स्वच्छ प्रथाओं को निर्धारित करता है। लेकिन बाजार से खरीदे सेनेटरी पैड के बारे में गलत धारणाएं भी हैं। पेरियानिकेन-पालयम में विवेकानंदनगर बस्ती में रहने वाली एक 45 वर्षीय गृहिणी, ललिता ( बदला हुआ नाम ) कहती हैं, "मैं अपनी बेटी को पैड के इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दूंगी। यह शरीर में गर्मी को बढ़ाता है। एक कपड़ा नैपकिन सुरक्षित है। मेरी मां ने मुझे कपड़े का इस्तेमाल करना सिखाया और यही मैं अपनी बेटी को सिखाऊंगी।"

भारत में केवल 57.6 फीसदी महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं - ग्रामीण क्षेत्रों में 48.5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 77.5 फीसदी, जैसा कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 2015-16( एनएफएचएस-4) की रिपोर्ट से पता चलता है।

हालांकि, कपड़े का उपयोग अगर स्वास्थ्कर तरीके से न किया जाए तो इसकी अपनी समस्याएं होती हैं। अध्ययन में पाया गया कि अक्सर मासिक धर्म वाले कपड़े धोने के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। यहां तक ​​कि उन जगहों पर जहां पानी काफी मात्रा में है, मासिक धर्म के आसपास की गोपनीयता महिलाओं को खुले में इन कपड़े को धोने और सूखाने की अनुमति नहीं देती है। इसके बजाय, उन्हें अन्य गीले कपड़े के नीचे, नम शौचालय में या कभी-कभी गद्दे के नीचे भी सुखाया जाता है।

"हम सभी को कैसे बता सकते हैं कि हम मासिक धर्म में हैं?" इस तरह की बातें आम हैं।ओडिशा में 486 महिलाओं के बीच 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की तुलना में कपड़े का उपयोग करने वाली महिलाओं में योनिशोथ और मूत्रमार्ग संक्रमण होने की संभावना दोगुनी होती है।

मासिक धर्म चक्र के दौरान महिलाओं के लिए पांच दिनों का निर्वासन

दक्षिणी तमिलनाडु के कोठागिरी से लगभग 12 किलोमीटर दूर बनगुड़ी आदिवासी कॉलोनी में 49 परिवारों की एक छोटी-सी बस्ती का पता हमारी यात्रा के दौरान चला। उन्हें नीलगिरी आदिवासी कल्याण संघ द्वारा 40 साल पहले मनाली आड़ा से यहां स्थानांतरित किया गया था। यहां मासिक धर्म अंधविश्वास से बंधा हुआ है। 38 वर्षीय पुष्पा ( बदला हुआ नाम ) ने शर्म से बचने के लिए अपनी साड़ी के साथ अपना चेहरा छिपाते हुए बताया, "जिस पल एक लड़की को मासिक धर्म शुरू होता है, उसे बस्ती के बाहरी इलाके में एक छोटी सी झोपड़ी में ले जाया जाता है, जहां उसे पांच दिनों तक रखा जाता है। उसे स्नान के बाद समुदाय में वापस लाया जाता है। जब मैं छोटी थी, तब किसी ने मुझे इसके बारे में नहीं बताया था और मैंने अपनी बेटियों को भी तैयार नहीं किया है। उन्हें इससे निपटना होगा। " 2014 के एक अध्ययन से पता चलता है कि मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में अजीबोगरीब बातें ग्रामीण और शहरी किशोर लड़कियों के बीच प्रचलित है। नरसिम्हाकेन-पल्यम में बातचीत से पता चला कि विवाहित महिलाओं के बीच भी स्थिति अलग नहीं है। बालावीनगर नगर झुग्गी में रहने वाली 26 वर्षीय नागावनी (पहचान की गोपनीयता के लिए नाम बदल दिया गया) ने कहा कि वह अपने पति को दुकान से सेनेटरी नैपकिन खरीदने कभी नहीं कहेगी।

सरकार द्वारा वितरित नि:शुल्क सैनिटरी पैड में गुणवत्ता की कमी

तमिलनाडु की सरकार के पुधु युगम (तमिल में अर्थ-नया युग) मुफ्त सैनिटरी पैड प्रदान करने की योजना नवंबर 2011 में सरकार के मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन कार्यक्रम के एक भाग के रूप में शुरू की गई थी। यह ग्रामीण और पेरी-शहरी क्षेत्रों में 11-19 वर्ष की आयु की लड़कियों को हर महीने 20 सेनेटरी नैपकिन प्रदान करता है। यह योजना अब तक लगभग 88,000 किशोर लड़कियों को कवर कर चुकी है, लेकिन इन पैड्स की गुणवत्ता पर सवाल अब भी है।

पुडु युगम योजना के तहत तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रदान किए गए सब्सडाइजड नैपकिन। स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने कहा ये नैपकिन एक अच्छी गुणवत्ता के नहीं हैं और केवल कुछ घंटों के उपयोग के लिए ही अच्छे हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता किशोरियों को मासिक धर्म को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

टीएनयूएसएसपी अध्ययन में भाग लेने वाली लड़कियों में से एक ने कहा, “हम स्टोर से खरीदे गए पैड का उपयोग करना पसंद करते हैं। हम अपनी माताओं को ये देते हैं। ''

स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, जो किशोरियों को मासिक धर्म को समझाने में मदद करती हैं, कहती हैं कि सब्सिडाइजड नैपकिन अच्छी गुणवत्ता के नहीं थे और केवल कुछ घंटों के उपयोग के लिए अच्छे थे। नरसिंहानिकेन-पल्यम में ओम शक्ति नगर झुग्गी की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पद्मा ( बदला हुआ नाम ) ने बताया कि "यह उन लोगों के लिए बहुत मुश्किल है जो केवल योजना के तहत वितरित पैड पर निर्भर हैं।" मलिन बस्तियों में आंगनवाड़ी केंद्र से उम्मीद की जाती है कि प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल, टीकाकरण, गर्भावस्था और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर महीने एक ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस (वीएचएनडी) आयोजित हो। इन जिलों में नियमित रूप से आयोजित नहीं होती है। एक साक्षात्कारकर्ता ने कहा, "वीएचएन दिवस में किशोर लड़कियों को मासिक धर्म और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है।"

गंदे नैपकिन का निपटारा कायदे से नहीं

गंदे पैड के निपटान पर चर्चा किए बिना मासिक धर्म स्वच्छता चर्चा अधूरी है। मासिक धर्म के समय से जुड़ी शर्म और गोपनीयता का परिणाम अनुचित निपटान है। बहुलक सैनिटरी नैपकिन, जिसने कपड़े के नैपकिन को काफी हद तक बदल दिया है, वे उस सामग्री से बने होते हैं जो गैर-बायोडिग्रेडेबल है, जो लैंडफिल में इस्तेमाल किए गए नैपकिन के संचय के लिए अग्रणी है।

नरसिम्हानिकेन-पल्यम जैसे स्थानों में, स्वच्छता अपशिष्ट को अन्य सभी कचरे के साथ मिलाया जाता है और नगर पंचायत की सीमा से 3 किमी दूर लैंडफिल में फेंक दिया जाता है। नाम न छापने की शर्त पर एक निवासी ने कहा, “यह प्रथा 20 सालों से चली आ रही है।”

मासिक धर्म के समय से जुड़ी शर्म और गोपनीयता का परिणाम अनुचित निपटान विधियां है। बहुलक सैनिटरी नैपकिन, जिसने कपड़े के नैपकिन को काफी हद तक बदल दिया है, वे ऐसी सामग्री से बने होते हैं जो गैर-बायोडिग्रेडेबल हैं।

सरकार की स्वास्थ्य सेवा मशीनरी की पहल है कि महिलाओं और युवा लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन, आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां और पूरक आहार उपलब्ध कराए जाएं। लेकिन मासिक धर्म और प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य के विषय को लेकर अभी भी शर्म और गोपनीयता है और इसे बदलने का एकमात्र तरीका मासिक धर्म स्वास्थ्य जागरूकता में परिवार, समाज और समुदाय को शामिल करना है।

दृष्टिकोण में बदलाव हो रहा है, और युवा उम्र की लड़कियों में यह बदलाव ज्यादा है। कला कहती हैं, "मेरे साथ जो हुआ वो मेरी बेटी के साथ नहीं होगा। मैं उसे उस कठिन अनुभव से गुजरने नहीं दूंगी।"

(यह लेख ‘तमिलनाडु अर्बन सेनिटेशन सपोर्ट प्रोग्राम’ (टीएनयूएसएसपी) द्वारा लिखा गया है, जो बेंगलुरु के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स’ का प्रोग्राम है। टीएनयूएसएसपी का उद्देश्य तमिलनाडु में स्वच्छता के पूर्ण चक्र के साथ सुधारों को प्रोत्साहित करना है।)

यह लेख अंग्रेजी में 22 जनवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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